ETV Bharat / state

राज्य स्थापना दिवस: 21 साल बाद भी हल नहीं हुए ज्वलंत मुद्दे, पलायन और बेरोजगारी का संकट बरकरार

author img

By

Published : Nov 9, 2021, 8:04 PM IST

उत्तराखंड को बने 21 साल का समय हो गया, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड आज भी नहीं बन पाया. पहाड़ों पर पलायन और बेरोजगारी संकट आज बना हुआ है. कई सरकारें आईं और गईं. लेकिन इन मुद्दों पर किसी भी सरकार ने सही कदम नहीं उठाया. आलम ये है कि 21 साल गुजरने पर भी पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी का संकट हल होने के बजाय और अधिक बढ़ गया है.

Uttarakhand Foundation Day
Uttarakhand Foundation Day

पिथौरागढ़: सपना तो था पहाड़ के विकास का, पहाड़ को चीरते हुए अंतिम छोर को मुख्यधारा में लाने का, मगर राज्य बनने के 21 साल बाद क्या ये सपना पूरा हो पाया है ? क्या पहाड़ की मुश्किलें कम हुई हैं? पहाड़ की जवानी और पानी क्या पहाड़ के काम आ रहा है? कुछ ऐसे ही सवाल राज्य बनने के 21 साल बाद आज भी जिंदा है.

उत्तराखंड की शांत पहाड़ियों में विकास की झटपटाहट दशकों रही है. यही वजह थी कि अलग राज्य बनाने के लिए यहां के लोगों ने अपनी जिंदगी और अस्मिता दोनों को ही दांव में लगा डाला. लेकिन पृथक उत्तराखंड में भी लगता है कि पहाड़ के सुलगते सवाल हल नहीं हो पाये हैं. आलम ये है कि 21 साल गुजरने पर भी पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी का संकट हल होने के बजाय और अधिक बढ़ा है.

कुमाऊं हो या गढ़वाल पिछले 21 सालों में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां के 10 पहाड़ी जिलों में 2 लाख 6 हजार से अधिक घर खाली हो गए हैं. यही नहीं, शुरूआती 8 सालों में ही पहाड़ी जिलों से 6 विधानसभा सीटें भी पलायन के चलते कम हो चुकी हैं. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग जरूर गांव में रूका है. लेकिन उसके हालात भी बद से बदतर हो रहें. पहाड़ के विकास के नाम पर जिस राज्य का जन्म हुआ था. उन्हीं पहाड़ों में आज ना तो डॉक्टर चढ़ना चाह रहे हैं, न ही टीचर. नौकरशाही ने भी पिछले कुछ समय से पहाड़ों से दूरी बना ली है.

उत्तराखंड की राजनीति ना तो दूरदर्शी रही है और ना ही यहां के राजनेताओं में बड़े फैसले लेना का साहस दिखा है, जिस कारण 21 सालों के सफर में भी स्थाई राजधानी और परिसम्पतियों के बंटवारे जैसे ज्वलंत सवाल हल नहीं हो पाये हैं. नीति-निर्माताओं ने पिछले 21 सालों में ऊर्जा, हर्बल और पर्यटन प्रदेश का जुमला तो खूब उछाला. लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी लाने में ये जुमले नाकाम ही रहे हैं. आपदा की सबसे अधिक मार झेलने वाले प्रदेश में आपदा प्रबंधन और पुनर्वास को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दौर में हुक्मरान इन गलतियों से सबक लेंगे और उत्तराखंड आंदोलन की मूल भावना की दिशा में आगे बढ़ेगा.

पढ़ें- US रिपोर्ट पर CDS बिपिन रावत की खरी-खरी, कहा- हमें अपनी सीमा पता है, सरहद पूरी तरह सेफ

पलायन को रोकने के लिए ठोस नीति की जरूरत: पहाड़ में लघु और मझले उद्योगों को बढ़ावा देकर युवाओं को घर पर ही रोजगार मुहैया कराया जा सकता है. यही नहीं, पहाड़ में पारंपरिक खेती के साथ ही हॉर्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, पशुपालन, मौनपालन (मधुमक्खी पालन), मत्स्यपालन के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार दिया जा सकता है. मगर ये तमाम योजनाएं धरातल में धूल चाटती नजर आ रही हैं. जंगली जानवरों की समस्या और प्राकृतिक आपदा में होने वाले नुकसान के कारण लोगों का किसानी से मोहभंग हो रहा है.

पढ़ें- विधानसभा चुनाव से ठीक पहले CM धामी ने खेला पेंशन कार्ड, सुनिए 96 वर्षीय आंदोलनकारी की व्यथा

हर्बल और पर्यटन प्रदेश का सपना साकार करने की जरूरत: प्राकृतिक संसाधनों से लैस उत्तराखंड में बहुमूल्य जड़ी-बूटियों की भरमार है. अगर हिमालयन जड़ी-बूटियों पर शोध किये जाए तो उत्तराखंड राज्य को हर्बल स्टेट का दर्जा मिल सकता है. यही नहीं, उत्तराखण्ड में प्रकृति ने भी अपना खजाना जमकर बिखेरा है. यहां प्राकृतिक और धार्मिक पर्यटन के साथ ही साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. ऐसे में पर्यटन को बढ़ावा देकर राज्य को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के साथ ही खाली हाथों को काम दिया जा सकता है.

तहसील प्रशासन ने राज्य आंदोलनकारियों को किया सम्मानित: राज्य स्थापना दिवस के मौके बेरीनाग तहसील कार्यालय में क्षेत्र में दो दर्जन राज्य आंदोलनकारियों को प्रशासन प्रमाणपत्र देकर और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया. इस मौके राज्य आंदोलनकारियों ने अपनी समस्याओं को रखा और कार्रवाई की मांग की. इस मौके पर तहसीलदार हिमांशु जोशी ने सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.