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उत्तराखंड की वनाग्नि से वैज्ञानिकों ने इको सिस्टम और ग्लेशियर को बताया खतरा, मानसून सीजन में भूस्खलन की चेतावनी - Uttarakhand Forest Fire

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 22, 2024, 10:21 AM IST

Updated : May 22, 2024, 2:38 PM IST

उत्तराखंड के जंगलों में भले ही वनाग्नि की घटनाएं कम हो गई हों, लेकिन पिछले कुछ महीनों में हजारों हेक्टेयर में फैली वन संपदा जलकर राख हो गई है. जिसका असर न सिर्फ इकोसिस्टम और ग्लेशियर पर पड़ रहा है, बल्कि वनाग्नि की वजह से भूस्खलन की आशंकाएं भी बढ़ जाती हैं. किसी भी वजह से अगर जंगलों में आग लगती है या फिर लगाई जाती है, तो इसका असर किसी एक चीज पर नहीं, बल्कि तमाम ऐसे अन्य फैक्टर पर पड़ता है, जिसको वनाग्नि प्रभावित करती है. आखिर कौन-कौन से ऐसे फैक्टर हैं, जो वनाग्नि की घटनाओं के होने के चलते भविष्य में दिक्कतें पैदा कर सकते हैं. पढ़ें इस खबर में....

UTTARAKHAND FOREST FIRE
वनाग्नि (photo- ETV Bharat)

वैज्ञानिकों ने इको सिस्टम और ग्लेशियर को बताया खतरा (Photo- ETV Bharat)

देहरादून: उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश की स्थितियां खराब हो जाती हैं, क्योंकि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि प्रदेश में हो रही वनाग्नि की घटनाएं भी आपदा को न्यौता दे रही हैं. दरअसल वनाग्नि की घटनाओं से न सिर्फ इकोसिस्टम और ग्लेशियर पर असर पड़ता है, बल्कि इसका असर मिट्टी पर भी पड़ता है, जिससे मिट्टी की धारण क्षमता कम हो जाती है और मानसून सीजन के दौरान भूस्खलन की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.

वनाग्नि से भूस्खलन की आशंका: प्रदेश में पहले से ही भूस्खलन एक गंभीर समस्या बना हुआ है. मानसून सीजन के दौरान भूस्खलन होने से जानमाल को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में हर साल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली वनाग्नि की घटनाओं से भी भूस्खलन की आशंका बढ़ती जा रही है, जो भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है. भूस्खलन होने से आपदा के कई अन्य कारण भी पैदा हो जाते हैं. भूस्खलन होने से लैंडस्लाइड रिलेटेड लेक पैदा हो जाती हैं और फिर ये लेक बाद में आउटबर्स्ट फ्लड की स्थिति भी पैदा करती हैं.

सूरज की गर्मी को सोखती है राख: प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि की घटना होने से पूरा क्षेत्र जलकर ख़ाक हो जाता है. ऐसे में उस क्षेत्र में चारों ओर राख फैल जाती है, जो सूरज की गर्मी को सोख लेती है. जिसके चलते आसपास का क्षेत्र और हवा भी गर्म हो जाती है. हवा का तापमान बढ़ने से तपिश बढ़ती है. ऐसे में ग्लेशियर और बर्फ पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यानी ग्लेशियर और बर्फ के पिघलने की रफ्तार बढ़ जाती है. इसके अलावा, वनाग्नि की घटना से तमाम पार्टिकल हवा में मिल जाते हैं, जिससे सांस संबंधित बीमारियां भी बढ़ जाती हैं.

मिट्टी की गुणवक्ता को होता है नुकसान: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि जब हिमालयी राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में आग लगती है, तो उस दौरान जमीन पर पड़े पत्तों के साथ पेड़ भी जलकर खाक हो जाते हैं. जिसके चलते मिट्टी की गुणवत्ता को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में मानसून सीजन के दौरान अधिक बारिश हो जाए, तो वनाग्नि के दौरान जली भूमि की धारण क्षमता (Retention Power) कम हो जाती है. जिससे ऐसी जगहों पर भूस्खलन की घटना देखते को मिलती है.

वनाग्नि से स्लोप क्षेत्र में सब कुछ जलकर होता है राख: कालाचंद साईं ने बताया कि जंगलों में आग लगने से जब स्लोप क्षेत्र में सब कुछ जलकर खाक हो जाता है, तो उसकी वजह से लैंडस्लाइड होता है. लैंडस्लाइड रिलेटेड लेक पैदा होती हैं और ये लेक बाद में आउटबर्स्ट फ्लड भी स्थिति भी पैदा करती हैं. उन्होंने कहा कि भूस्खलन होने से जो मिट्टी नीचे बहती है, वह छोटी धाराओं का रास्ता भी ब्लॉक कर देती है. इससे एक टेंपरेरी लेक बन जाती है और धीरे- धीरे ये लेक बड़ी होती जाती है. ऐसे में जब ये लेक फटती है, तो उसे लैंडस्लाइड लेक आउटबर्स्ट फ्लड कहा जाता है.

24 घंटे के भीतर 23 जगहों पर वनाग्नि की घटनाएं: वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड में पिछले 24 घंटे के भीतर 23 जगहों पर वनाग्नि की घटनाएं हुई हैं. इन वनाग्नि की घटनाओं में 36.05 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है. वहीं, 1 नवंबर 2023 से 20 मई 2024 तक वनाग्नि की कुल 1,121 घटनाएं हुई हैं. जिसके चलते 1520.09 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ है. साथ ही वनाग्नि की घटनाओं के चलते अभी तक 6 लोगों की मौत और 4 लोग घायल हुए हैं.

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Last Updated : May 22, 2024, 2:38 PM IST
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