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'उत्तराखंड में सत्ता के लिए होती है खरीद-फरोख्त, महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी करेंगे हरक'

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Published : Sep 15, 2021, 11:53 AM IST

Updated : Sep 15, 2021, 12:52 PM IST

उत्तराखंड राज्य के लिए देखा गया सपना धराशायी हो चुका है. उत्तराखंड में सत्ता हथियाने के लिए खरीद-फरोख्त की जाती है. ठेके का रोजगार देना इस सरकार की उपलब्धि रही है. आम आदमी पार्टी में अपने दलों से रिजेक्टेड लोग भाग-दौड़ कर रहे हैं. हरक सिंह रावत अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. ये कहना है भाकपा माले के गढ़वाल संयोजक इंद्रेश मैखुरी का. ईटीवी भारत के साथ इंद्रेश मैखुरी का ये इंटरव्यू पढ़िए और सुनिए.

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इंद्रेश मैखुरी

श्रीनगर: ईटीवी भारत आज अपने पाठकों के लिए उत्तराखंड के डायनमिक जननेता इंद्रेश मैखुरी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लेकर आया है. इंद्रेश का कहना है कि राज्य के लिए देखा गया आंदोलनकारियों का सपना धराशायी हो चुका है. हालत ये हो गई है कि 42 बलिदानों से बने उत्तराखंड में सत्ता हथियाने के लिए जमकर खरीद-फरोख्त होती है. उत्तराखंड के सबसे विवादित नेता हरक सिंह रावत अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

इंद्रेश मैखुरी से जब पहला सवाल ये पूछा गया कि 90 के दशक में उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन राज्य भर में हुआ. वो भी उस दौरान आंदोलन में सक्रिय भूमिका में थे. क्या जो सपने राज्य आंदोलनकारियों के थे, वो राज्य बनने के बाद साकार हो सके हैं?

इंद्रेश मैखुरी का इंटरव्यू

इसके जवाब में उन्होंने कहा- 1994 में हम राज्य आंदोलन को लेकर सक्रिय भूमिका में थे. युवा सड़कों पर थे. उनको उम्मीद थी कि राज्य आंदोलन के बाद बनने वाले राज्य में सबको रोजगार मिल सकेगा. शिक्षा की अच्छी व्यवस्था होगी. स्वास्थ्य क्षेत्र में तरक्की होगी. पलायन नहीं होगा. मानो राज्य आंदोलन के बाद कोई जादुई छड़ी पहाड़ के हर दर्द को कम कर देगी.

राज्य को लेकर देखे गए सपने टूट गए: राज्य बनने के 21 साल बाद भी हालत जस के तस हैं. जो परेशानियां तब थीं वो आज और भी विकराल रूप ले चुकी हैं. पलायन आज उत्तर प्रदेश के दौर से भी ज्यादा हो चुका है. उत्तर प्रदेश के समय गांव भुतहा नहीं थे लेकिन आज हैं. गांवों में ताले लग चुके हैं. अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं. सारे अस्पताल रेफरल सेंटर बन रहे हैं. 3000 सरकारी स्कूल बंद किये जा चुके हैं. ये सारे प्रमाण हैं कि राज्य का देखा गया सपना धरासाई हो चुका है.

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जब उनसे पूछा गया कि- उत्तर प्रदेश के समय में भी बेरोजगारी थी. आज भी बेरोजगारी साल दर साल बढ़ रही है. इसके पीछे क्या कारण हैं, जो राज्य में बेरोजगारी बढ़ती ही जा है?

इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि- बेरोजगारी सरकार की नीतियों से जुड़ा हुआ सवाल है. पिछली बार 7वें वेतन आयोग को लेकर सरकार ने कमेटी बनाई तो कमेटी ने कहा कि 65 हजार के आसपास पद राज्य के विभिन्न विभागों में खाली हैं. लेकिन उसी कमेटी ने कहा कि उन पदों को भरना नहीं है. तब से सरकारों ने नीति बना दी है कि रोजगार नहीं देना है. कम से कम रोजगार देना है. ठेके का रोजगार देना है.

नेताओं के लिए रोजगार है, बेरोजगारों के लिए नहीं: ये जो रोजगारविहीन रोजगार का मॉडल है, वो पूरे देश में है. उत्तराखंड में अगर किसी को रोजगार मिला तो वो 70 विधायकों को मिला. एक एंग्लो इंडियन विधायक भी है. उसे भी रोजगार मिला. 5 साल में प्रदेश को तीसरा मुख्यमंत्री मिला. उन्हें रोजगार है लेकिन आम नौजवान बेरोजगार है. उसके लिए रोजगार सरकार की नीतियों में नहीं है. नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कह रहे हैं कि एंप्लॉयमेंट ऑफिसेस हैं. उन्हें आउटसोर्स एजेंसी बना दिया है. ये उपलब्धि इस सरकार की है. ठेके का रोजगार देना इस सरकार की उपलब्धि रही है.

युवाओं को सरकार अर्द्ध बेरोजगार बना रही है: मुख्यमंत्री 25 हजार रोजगार देने की घोषणा कर रहे हैं. इससे पूर्व भी त्रिवेंद्र सिंह रावत भी रोजगार वर्ष की बात कहते हुए 25 हजार लोगों को रोजगार देने की बात कह रहे थे. दो साल पहले भी 25 हजार नियुक्ति हो रही थी. आज भी 25 हजार नियुक्ति करने की सिर्फ बात हो रही है. 2016 के बाद प्रदेश में पीसीएस का एग्जाम नहीं हुआ. अब वो होने जा रहा है, जब लोगों ने आवाज़ उठाई वो भी तब. सरकार की नीति बन चुकी है कि बेरोजगार युवाओं को ठेकेदारी प्रथा के जरिये अर्द्ध बेरोजगार बनाना है. कुल मिलाकर आज 20 साल बाद भी बेरोजगारी का मुद्दा प्रदेश में सर उठाये खड़ा है.

इंद्रेश मैखुरी से जब पूछा गया कि- उत्तराखंड आंदोलन में युवाओं ने आगे बढ़कर हिस्सेदारी की थी. इन दिनों युवा एक और आंदोलन को लीड कर रहे हैं. युवा प्रदेश के लिए एक सशक्त भू-कानून की मांग कर रहे हैं. प्रदेश के हित में इस आंदोलन को आप किस तरह से देख रहे हैं.

इस पर इंद्रेश मैखुरी ने जवाब दिया- भू-कानून का मसला आज का नहीं है. राज्य आंदोलन के दौरान भू-कानून को लेकर भी राज्य भर में आंदोलनकारी आंदोलित थे. उस दौर में जल, जंगल पर भी राज्य के निवासियों के अधिकार की बात होती रही. राज्य बनने के बाद इन पर सरकारों ने कार्य नहीं किया. प्रदेश में जो कानून बना वो उत्तर प्रदेश के कानून की देखा-देखी है.

2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी एक संशोधन लेकर आये. 2007 में उस समय के मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी द्वारा संशोधन किये गए. उसमें प्रदेश की जमीनों की बेतहासा बिक्री हुई. 2018 में त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नया संशोधन किया. उसने तो देश में ही इतिहास रच दिया. उस संशोधन में भूमि खरीद-विक्रय पर सारी पाबंदियां ही हटा दीं. उन्होंने नए नियम में प्रदेश में औद्योगिक कार्य करने के लिये जितनी भी जमीन चाहिए उतनी जमीन देने का प्रावधान बनाया. जिसमें कोई नियम-कानून नहीं थे.

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जमीनों की खुली लूट के दरवाजे खोले गए: इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि भाजपा की सरकार ने जमीनों की खुली लूट के दरवाजे प्रदेश में खोले. आज यही भाजपा इस मुद्दे पर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की जुगत में लगी हुई है. उन्होंने युवाओं से कहा कि युवा इस मुद्दे को लेकर सजग रहें. भाजपा इसको भी संप्रदाय का मुद्दा बना रही है और प्रदेश को बांटने का कार्य कर रही है.

जब उनसे पूछा गया कि- उत्तराखंड क्रांति दल राज्य आंदोलन को लीड करता रहा. लेकिन राज्य बनने के बाद चुनाव दर चुनाव क्रांति दल हासिये पर जा रहा है. भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रदेश की सरकार रही है. इसे आप किस तरह से देखते हैं.

राज्य बीजेपी-कांग्रेस के बीच बना फुटबॉल: इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि- देखिए ये सही बात है राज्य, भाजपा और कांग्रेस के बीच फुटबॉल बना रहा है. कभी कोई गेंद लुढ़काता है. कभी कोई. जो तीसरी फोर्स प्रदेश में आती है, वो भी इन्हीं दो राष्ट्रीय पार्टियों की छाया में ही इधर-उधर घूमती रही है. जो नई पार्टी प्रदेश में आ भी रही है, उनमें भी इन दोनों दलों के रिजेक्टेड लोग ही इधर-उधर कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में अगर कोई विकल्प खड़ा होना चाहिए तो वो आंदोलनों से खड़ा होना चाहिए. ये राज्य भी आखिरकार आंदोलन की देन रहा है. यहां तो बिजली, पानी, सड़क, डॉक्टर के लिए भी आंदोलन करने पड़ते हैं. इस राज्य को सड़क के आंदोलन से निकले आंदोलनकारियों की जरूरत है. राज्य को आंदोलनों के मोर्चों की जरूरत है.

जब उनसे स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ा सवाल किया गया कि आज भी वही हालात हैं जो उत्तर प्रदेश के समय में थे. आज भी लोगों को दिल्ली और देहरादून जाना पड़ रहा है. आज भी गांवों में लोग अस्पताल जाने के लिए डंडी-कंडी का इस्तेमाल कर रहे हैं.

स्वास्थ्य केंद्र रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं: इस पर इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि- आज चाहे वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हों, जिला अस्पताल हों, बेस अस्पताल हों, मेडिकल कॉलेज हों ये सभी रेफरल सेंटर बन कर प्रदेश के हर हिस्से में उभर रहे हैं. अगर औसत निकाला जाए तो हर महीने एक प्रेगनेंट लेडी की मौत किसी ना किसी हिस्से में होती रहती है. इलाज की प्रक्रिया के दौरान ये इस प्रदेश की हालत है. राज्य के स्वास्थ्य हालातों के बारे में 2019 की नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि देश का सबसे फिसड्डी राज्य उत्तराखंड है. स्वास्थ्य के मामलों में ये केन्द्रीय नीति आयोग की रिपोर्ट ये कहती है.

सीएजी रिपोर्ट ने बताई स्वास्थ्य व्यवस्था की खस्ता हालत: हाल में सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि राज्य में स्वास्थ्य की हालत खस्ता है. इसका दोष सत्ता में बैठे लोगों के ऊपर रखा जाना चाहिए. क्योंकि वो सत्ता में हैं. ये सरकारों की अस्पतालों के प्रति नीति हीनता को प्रदर्शित करती है. साथ में पलायन आयोग की रिपोर्ट भी यही कहती है कि प्रदेश में 8 प्रतिशत से अधिक लोग स्वास्थ्य कारणों से प्रदेश छोड़ कर जा रहे हैं. ये सरकारों की विफलता को बता रही है.

इंद्रेश मैखुरी से जब पूछा गया कि- भाजपा के इस कार्यकाल की बात करें तो पार्टी ने तीन मुख्यमंत्री प्रदेश को इस कार्यकाल में दिए. क्या ये प्रदेश हित में था. भाजपा की इस नीति को आप किस तरह से देख रहे हैं.

4 साल में तीसरा मुख्यमंत्री है बीजेपी का विकास: इस पर इंद्रेश मैखुरी ने कहा- मोदी जी 2017 में चुनाव प्रचार में कह रहे थे कि दिल्ली की इज्जत के साथ देहरादून की इज्जत जुड़ी तो देखिए कितना विकास होगा. विकास आप देख ही रहे हैं कि चार साल में हम तीसरा मुख्यमंत्री प्रदेश में देख रहे हैं. ये विकास ही तो है. उन्होंने कहा कि ये बताता है कि कोई सक्षम व्यक्ति मुख्यमंत्री का पद नहीं संभाल रहा. इसके लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माफी मांगनी चाहिए कि वो राज्य को कोई सक्षम नेतृत्व नहीं दे पाये. उनके नाम पर लोग जीत कर चले गए और नेताओं की एक पूरी फौज प्रदेश में खड़ी हो गयी जो राज्य को तबाह करने का कार्य कर रहे हैं. कुल मिला कर मोदी जी के नाम पर भाजपा ने प्रदेश की जनता को छलने का कार्य किया है.

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चारधाम परियोजना के नाम पर ऑल वेदर रोड बन रही है. जो रोड 24 घंटे खुली होनी चाहिए थी, वो आज आठ-आठ घंटे बंद हो रही है आप इसे किस तरह से देख रहे हैं. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि- पहले इस रोड को ऑल वेदर रोड के नाम से प्रदेश भर में प्रचारित किया गया. अचानक पता चला कि जब रातों-रात सड़क किनारे लगे बोर्ड पर चारधाम सड़क परियोजना अंकित होता हुआ दिखाई देने लगा. पता चला कि पूरी परियोजना ही बदल दी गयी है. रोड को बनाने में पहले ही दिन से एक भी मानक को फॉलो नहीं किया गया. बेतरतीब पहाड़ काटे गए जो आज लोगों के लिए मुसीबत बने हुए हैं.

मोटे ठेकेदारों के मुनाफे के लिए है ऑल वेदर रोड: कानूनों से बचने के लिए केंद्र सरकार ने 889 किलोमीटर की सड़क परियोजना को 100 किलोमीटर पर उसे 53 टुकड़ों में बांट दिया. जिसके चलते केंद्र सरकार पर्यावरण आकलन से बचती नजर आई. जब पर्यावरण का आकलन ही नहीं किया गया तो उसका प्रभाव अब सड़कों के दरकने, पहाड़ियों के टूटने के रूप में दिखाई दे रहा है. इसकी कीमत हम चुका रहे हैं. ये सब मोटे ठेकेदारों को मुनाफा देने के लिए नियम कायदों में हीला-हवाली की गई और जनता को परेशानियों के साथ छोड़ दिया गया.

जब इंद्रेश मैखुरी से पूछा गया कि- 2022 का विधानसभा चुनाव नजदीक है. आप भाकपा माले के गढ़वाल सचिव हैं. किस रणनीति के तहत आप चुनाव में उतर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि- भाकपा माले और प्रदेश में मौजूद सभी वामपंथी पार्टियां सीपीआई ओर सीपीएम हम सभी मिलकर ये चुनाव लड़ेंगे. इन पांच सालों में जनता के हर सवाल को लेकर हम लड़ते रहे हैं, लड़ते रहेंगे. साथ में एक विचारधारा वाले दल हम लोगों के साथ मिलकर एक साथ चुनाव लड़ सकते हैं.

विधानसभा से सड़क तक चाहिए जुझारू विपक्ष: बीजेपी और कांग्रेस के अलावा उत्तराखंड में तीसरे विकल्प पर उन्होंने कहा कि हम समझते हैं कि सत्ता के भीतर की जो लड़ाई है, सत्ता को हथियाने के लिए जो खरीद-फ़रोख़्त की जाती रही है, प्रदेश में तिगड़म शुरू हो चुकी है. एक दल से कूद कर दूसरे दल में जाने की कवायदें शुरू हो गयी हैं, जो सिद्धांतहीनता को दिखलाता है. ऐसे में विधानसभा से लेकर, सड़क तक एक जुझारू विपक्ष की जरूरत है. इसके लिए हम तैयार हैं. ऐसा हम चाहते भी हैं इसकी प्रदेश को जरूरत भी है.

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इंद्रेश मैखुरी से जब पूछा गया कि इन 10 सालों में देखने को मिल रहा है कि भाजपा के लोग कांग्रेस में जाते हैं. कांग्रेस के लोग भाजपा में जा रहे हैं. विधायक इधर से उधर हो रहे हैं. क्या ये राज्य हित में है या इससे राज्य का अहित हो रहा है.

अपनी सत्ता सुनिश्चित करने के लिए करते हैं दल-बदल: उन्होंने कहा कि ये तो उन लोगों के हित में है जो इधर से उधर कर रहे हैं. वे अपनी सत्ता को सुनिश्चित करने के लिए इधर से उधर जाते हैं. आज का कांग्रेसी कल का भाजपाई है. परसों का भाजपाई आज का कांग्रेसी है. इस पूरी प्रक्रिया में राज्य का कभी हित नहीं हो सकता है. इन राजनेताओं का जरूर हित हो रहा है. वो बात अलग है. जिनको आप राज्य हित में विधान सभाओं में भेज रहे हैं वो सिर्फ अपना हित ही देख रहे हैं.

हरक सिंह के पास दिखाने के लिए एक भी काम नहीं है: इंद्रेश मैखुरी से जब हरक सिंह रावत के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि- उनके पास दिखाने के लिए एक भी कार्य नहीं है. चाहे वो कांग्रेस में रहे हों. चाहे वो भाजपा में रहे हों. उनका हर कार्यकाल विवादास्पद रहा है. इस कार्यकाल में भी श्रम कल्याण कर्मकार बोर्ड में जिस प्रकार के घपले हो रहे हैं, वो सबके सामने हैं. उससे आप समझ सकते हैं कि वो किस प्रकार के मंत्री हैं.

हरक की संपत्ति की जांच हो तो फूटेगा भंडा: अगर इस बात की जांच हो कि जब हरक सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने थे, तब उनकी परिसंपत्तियां कितनी थीं. आज वो कितनी संपत्ति के मालिक हैं तो ज्ञात हो जायेगा कि वो किस पक्ष में खड़े रहे. वो कितना भी बेबाक दिखने की कोशिश करें. मुंहफट तरीके से बात करने की कोशिश करें, लेकिन वो अपने राजनीतिक कैलकुलेशन के आधार पर ही बात करते हैं. वो अपनी कुर्सी को बचाने की राजनीति करते हैं. वे उन लोगों में हैं जो अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

उत्तराखंड के डायनमिक लीडर इंद्रेश मैखुरी से जब पूछा गया कि अगर इन दिनों भाजपा में कुछ अच्छा नहीं है तो कांग्रेस में भी इन दिनों कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने प्रीतम सिंह, हरीश रावत, गणेश गोदियाल को दिल्ली तलब कर दिया है. इसे आप राज्य के लिए किस तरह से देख रहे हैं.

बीजेपी-कांग्रेस का हर तीसरा नेता बनना चाहता है मुख्यमंत्री: इसके जवाब में उन्होंने कहा कि भाजपा कांग्रेस में जो कुछ भी चल रहा है, इसका राज्य से कोई लेना-देना नहीं है. अगर राज्य हित में कुछ होता तो राज्य आज इस बदहाल स्थिति में नहीं होता. बीते 21 साल में यही तो अदल-बदल कर सरकारों में रहा है. लेकिन यहां किसे मुख्यमंत्री बनना है, इस बात की लड़ाई है. इन दोनों दलों के हर तीसरे नेता को यहां मुख्यमंत्री बनना है. ये लड़ाई राज्य को लगातार नुकसान पहुंचा रही है. पूरे पहाड़ को तबाह कर रही है. हम बेरोजगार हो रहे हैं. शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था है. पलायन इन्हीं कारणों से हो रहा है. ये उनके लिए एजेंडा नहीं है. उनका किसी भी तरह सत्ता में आना एकमात्र उद्देश्य है. ये किसी भी हद तक जा सकते हैं. ये इनके कार्यों से दिखाई पड़ता है.

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कौन हैं मैखुरी: भाकपा माले के गढ़वाल संयोजक इंद्रेश मैखुरी की शख्सियत के बारे में थोड़ा बहुत बताते चलें. इंद्रेश ने अपनी राजनीति की शुरुआत गढ़वाल केंद्रीय विवि से की थी. वे गढ़वाल विवि के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रहे. यहां वे छात्रों के हितों के लिए हमेशा आगे रहे. छात्र राजनीति में ही आगे बढ़ते हुए मैखुरी ने आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी संभाला. इंद्रेश उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका में रहे. इस दौरान इंद्रेश मैखुरी कई बार जेल भी गये. राज्य बनने के बाद वे भाकपा माले के गढ़वाल सचिव की भूमिका निभा रहे हैं. इस जिम्मेदारी के बाद भी इंद्रेश मैखुरी राज्य में विभिन्न आंदोलनों में हमेशा सक्रिय भूमिका में रहते हैं.

Last Updated :Sep 15, 2021, 12:52 PM IST
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