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सुप्रीम कोर्ट ने जेनरिक दवा लिखने के नियम की जनहित याचिका की स्वीकार, काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी

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Published : Aug 21, 2023, 6:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने जेनरिक दवा लिखने के नियम की जनहित याचिका को स्वीकार कर लिया है. CJI डीवाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने नेशनल मेडिकल कमिशन और सभी स्टेट मेडीकल काउंसिल को नोटिस जारी किए हैं.

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आगरा: हर गरीब के बेहतर उपचार और दवाएं खरीदने को लेकर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने 21 साल पहले डाॅक्टर्स को जेनरिक दवाएं लिखने का नियम बनाया था. लेकिन, अभी भी डाॅक्टर्स पर्चे पर ब्रांडेड दवाएं ही लिखते हैं, जो महंगी होती है. जबकि जेनरिक 80 फीसदी दवाएं ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर से बाहर हैं. इसलिए, सस्ती होती हैं. जेनरिक दवाओं को डॉक्टरों द्वारा पर्चे पर अनिवार्य रूप से लिखा जाए, इसको लेकर आगरा के वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है. जिसे शनिवार को विचारार्थ स्वीकार करके मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने नेशनल मेडीकल कमिशन और सभी स्टेट मेडिकल काउंसिल को नोटिस जारी किए हैं. इस मामले में अगली सुनवाई छह अक्टूबर को होनी है.

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यह भी गड़बड़ हो रही: वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन ने अपनी जनहित याचिका में यह बात उठायी है कि ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के पैरा 14 के अनुसार शेड्यूल्ड दवाइयों को निर्धारित एमआरपी से अधिक नहीं बेचा जा सकता है. लेकिन, पैरा 20 के अनुसार नॉन शेडयूल्ड दवाइयों के एमआरपी निर्धारण की कोई प्रक्रिया नहीं है. इस वजह से दवा बनाने वाली कम्पनियां जेनरिक दवाइयों की एमआरपी कई गुना निर्धारित कर देती हैं. जिसका असर मरीज की जेब पर पड़ता है. शेड्यूल्ड दवाइयों से तात्पर्य ड्रग प्राइस कण्ट्रोल ऑर्डर के शेडयूल में दी गयी दवाइयों से है. अभी केवल 20 फीसदी दवाइयों का ही शेडयूल्ड में उल्लेख है. इस वजह से 80 प्रतिशत दवाइयों की एमआरपी पर कोई नियंत्रण नहीं हैं. जनहित याचिका में मांग है कि इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए. सभी दवाइयों के एमआरपी निर्धारित ढंग से तय होनी चाहिए.

हकीकत उलट: जनहित याचिका में लिखा है कि दवाइयों की अधिक कीमत के कारण कमजोर वर्ग के लोग इसे खरीद नहीं पाते हैं. मेडिकल काउंसिल ने वर्ष 2002 में बनाये रेग्युलेशन के अनुसार डाॅक्टर्स को दवाई जेनरिक नाम से लिखनी चाहिए. ऐसी दवाइयों की कीमत जन औषधि केंद्र पर 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक कम होती है. लेकिन डाॅक्टर्स के पर्चे में न लिखे होने के कारण मरीज उसे नहीं खरीद पाते हैं. इसमें सुधार होना चाहिए. मेडिकल काउंसिल की तरफ से वर्ष 2012, 2013 और 2017 में डाॅक्टर्स को जेनरिक दवाइयां लिखने के आदेश दिए हैं. लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है. जेनरिक दवाओं के प्रचार प्रसार के लिए केंद्र सरकार की ओर से जगह जगह जन औषधि केंद्र भी खोले जा रहे हैं.

2002 में जेनरिक दवाओं को लेकर जारी हुए थे आदेशः बता दें कि मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया ने सन 2002 में जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए आदेश जारी किये थे. राजस्थान, एमपी और यूपी समेत सभी अस्पताल में डॉक्टर्स को जेनरिक दवाएं लिखने की शुरुआत हुई. केंद्र और राज्य सरकारों ने सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवाएं मरीजों को देना शुरू किया. इसके वाबजूद सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स पर्चे पर ब्रांडेड दवाएं लिखकर देते हैं. जबकि, अधिकांश अस्पताल या चिकित्सा संसथान में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र भी हैं.


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