नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट दिल्ली दंगा मामले के आरोपी शरजील इमाम की जमानत याचिका पर आज सुनवाई करेगा. एडिशनल सेशंस जज अमिताभ रावत इस मामले की सुनवाई करेंगे.
चार अक्टूबर को कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं. सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की ओर से वकील तनवीर अहमद मीर ने कहा था कि एक व्यक्ति आईआईटी बांबे से ग्रेजुएशन करता है. उसे एक अच्छी नौकरी का ऑफर मिलता है, फिर भी वो छोड़कर आधुनिक इतिहास पढ़ता है. उन्होंने कहा था कि ये उसका अपना फैसला था. मीर ने कहा था कि केदारनाथ के फैसले की व्याख्या देखने की जरुरत है, जिसमें भारतीय दंड संहिता में राजद्रोह की व्याख्या करता है. हम अंग्रेजी कानून का पालन करना चाहते हैं, जहां भारतीयों को उठने की आजादी नहीं होती थी.
मीर ने कहा कि दिल्ली पुलिस कह रही है कि अस्सलाम-ओ-अलैकुम से भाषण शुरु होने का मतलब राजद्रोह था, लेकिन क्या अगर आरोपी गुड मार्निंग से भाषण शुरु करता तो आरोप खत्म हो जाते. मीर ने कहा था कि अभियोजन को अपनी मर्जी से कोई निष्कर्ष निकालने की आजादी नहीं होनी चाहिए. हम किसी व्यक्ति पर मुकदमा केवल कानून के बदौलत नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर करते हैं. उन्होंने कहा था कि दो वर्ष बीतने को है, लेकिन अभी ट्रायल शुरु भी नहीं हुआ है. अगर कोई सरकार की नीतियों की आलोचना करता है तो उसके खिलाफ क्या कई सारे मुकदमे होने चाहिए. किसी नीति का विरोध करने के कई तरीके हो सकते हैं. ये रोड पर प्रदर्शन के जरिये भी हो सकता है. प्रदर्शन के दौरान कोई विवाद नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा था कि केवल संदेह के आधार पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है. मीर ने कहा था कि हाल ही में चीफ जस्टिस ने कहा था कि हमें राजद्रोह नहीं चाहिए. ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि सरकार को जनता के प्यार की जरुरत है. अब राजशाही नहीं है कि लोगों को सरकार के आगे झुकने की जरुरत है. यह देश लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों से बना है. इन मूल्यों के जरिये ही शरजील इमाम की रक्षा हो सकती है. उसके खिलाफ केवल इस आधार पर अभियोजन नहीं चलाया जा सकता है कि उसने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया.
दिल्ली पुलिस की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद ने कहा था कि आरोपी के पास कोई नया तथ्य नहीं है, सिवाय ये कहने के कि उसे प्रदर्शन करने का किसी भी हद तक अधिकार है. अगर सरकार आपकी बात नहीं सुन रही है तो आपको विरोध करने का अधिकार है. उनकी दलील है कि अगर आम आदमी भी प्रदर्शन से परेशान हो जाए तो भी उन्हें प्रदर्शन करने का अधिकार है. अमित प्रसाद ने अमित साहनी के फैसले का उदाहरण दिया था. विरोध प्रदर्शनों के लिए आम रास्तों को रोका जाना कतई ठीक नहीं है और ऐसे में प्रशासन अपना काम जरुर करेगा और अतिक्रमण और बाधाओं को हटाएगा.