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केदारनाथ सीट पर ज्यादातर बीजेपी का ही रहा कब्जा, जानें यहां का इतिहास और रोचक तथ्य

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Published : Jan 21, 2022, 1:46 PM IST

Updated : Jan 21, 2022, 2:47 PM IST

Kedarnath Assembly seat
केदारनाथ विधानसभा सीट

उत्तराखंड की केदारनाथ विधानसभा सीट रुद्रप्रयाग जिले में पड़ती है. केदारनाथ धाम हिंदू आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. यह चार धामों में से एक है. इस सीट का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है. इस सीट पर अधिकांश कब्जा बीजेपी का ही रहा है. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद इस सीट पर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार मनोज रावत विधायक चुने गए थे. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में केदारनाथ विधानसभा सीट के समीकरण और राजनीतिक इतिहास पर ये रिपोर्ट.

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की केदारनाथ विधानसभा सीट पर चुनाव हमेशा रोचक रहा है. केदारनाथ विधानसभा सीट का नाम केदारनाथ 11वें ज्योतिर्लिंग के तौर पर प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ के नाम पर है. इस सीट का सीमांकन तो कई बार बदला, लेकिन वोटरों के मिजाज में यहां बदलाव देखने को नहीं मिला. बीजेपी के गठन से पहले यहां के वोटरों ने पार्टी से अधिक व्यक्ति को महत्व दिया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के उदय और राम लहर के बाद यहां की जनता ने भारतीय जनता पार्टी पर ही अपना विश्वास जताया. यह विश्वास उत्तराखण्ड बनने के बाद भी बरकरार रहा. केदारनाथ विधानसभा सीट के इतिहास पर एक नजर...

इन दो नेताओं का डंका बजा: वर्ष 1951 में उत्तर प्रदेश के पहले आम चुनाव से लेकर 1974 के आम चुनाव तक केदारनाथ विधानसभा सीट कभी गंगाधर मैठाणी के पास रही, तो कभी नरेंद्र सिंह भंडारी के पास. इस दौरान इन दोनों ने ही कई बार पार्टी बदल कर और कई बार निर्दलीय रहकर चुनाव जीता. 1951 के पहले आम चुनाव में यह सीट 06 चमोली पश्चिम सह पौड़ी उत्तर के नाम से जानी जाती थी. इस चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार गंगाधर मैठाणी ने कांग्रेस के केएन गैरोला को हराया और यहां से पहले विधायक बने थे.

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1957 में बदला नाम: 1957 में नया सीमांकन होने के बाद यह सीट 07 केदारनाथ बनी. इस चुनाव में कांग्रेस के नरेन्द्र सिंह भंडारी ने निर्दलीय गंगाधर मैठाणी को हराया. 1962 में गंगाधर मैठाणी फिर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में आकर विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस के नरेन्द्र सिंह भंडारी को हराया.

1967 में फिर बदला नाम: वर्ष 1967 में फिर से सीमांकन होने से इस सीट का नाम 08 बदरी-केदार हो गया था. इसके साथ ही गंगाधर मैठाणी ने कांग्रेस में आकर निर्दलीय नरेन्द्र सिंह भंडारी को हराकर इस सीट पर कब्जा किया. 1969 के चुनाव में नरेन्द्र सिंह भंडारी ने निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस के गंगाधर मैठाणी को हरा दिया.

भारतीय जनसंघ से प्रताप सिंह पुष्पाण ने चुनाव लड़ा: वर्ष 1974 में भारतीय जनसंघ के बनने के बाद प्रताप सिंह पुष्पाण ने चुनाव लड़ा, मगर कांग्रेस के नरेंद्र सिंह भंडारी से पार नहीं पा सके और 1977 में इमर्जेन्सी के बाद जन्मी जनता पार्टी के टिकट पर लड़कर प्रताप सिंह पुष्पाण ने नरेन्द्र सिंह भंडारी से अपनी हार का बदला चुकाया.

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1980 में कुंवर सिंह नेगी बने विधायक: वर्ष 1980 में कुंवर सिंह नेगी निर्दलीय विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस के नरेन्द्र सिंह भंडारी को हराया. वर्ष 1985 में फिर सीमांकन हुआ और ये सीट 07 बदरी-केदार बन गई. इस बार कांग्रेस ने सन्तन बड़थ्वाल को टिकट दिया और उन्होंने लोकदल के कुंवर सिंह नेगी को हराया. 1989 के चुनाव में कुंवर सिंह नेगी कांग्रेस के टिकट पर दोबारा विधायक बने. उन्होंने जनता दल के सुदर्शन कठैत को हराया.

राम लहर में बीजेपी को मिला समर्थन: 1991 की राम लहर में पर्वतीय क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को अपार जन समर्थन मिला. पार्टी के उम्मीदवार केदार सिंह फोनिया ने 1991, 1993 और 1996 में तीन बार इस सीट पर विजय प्राप्त की. 1991 और 1993 में उन्होंने कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी को हराया तो 1996 में कांग्रेस के सत्येन्द्र बर्तवाल को.

आशा नौटियाल बनी पहली महिला विधायक: वर्ष 2000 में उत्तराखंड के गठन के बाद हुए पहले चुनाव 2002 में यह सीट 37 केदारनाथ से जानी गई. सीट का नाम तो बदला, मगर जनता का मिजाज वही रहा. 2002 के चुनाव में भाजपा की आशा नौटियाल ने कांग्रेस की शैलारानी रावत को हराया और इस सीट पर पहली महिला विधायक बनने का गौरव हासिल किया.

2012 में बीजेपी का विजय रथ रुका: वर्ष 2007 में एक बार फिर भाजपा की आशा नौटियाल विधायक बनीं. इस बार उन्होंने कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी को हराया. 2012 में सीटों का सीमांकन नये सिरे से हुआ तो यह सीट फिर से 07 केदारनाथ में बदल गई. इस बार कांग्रेस ने शैलारानी रावत पर दांव खेला और उन्होंने आशा नौटियाल का विजयी रथ रोककर 1989 के बाद इस सीट पर कांग्रेस को विजय दिला दी.

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मोदी लहर में भी कांग्रेस का विधायक बना: वर्ष 2016 में कांग्रेस में भारी बगावत हुई और शैलारानी रावत ने भाजपा का दामन थाम लिया. भाजपा ने आशा नौटियाल का टिकट काटकर शैलारानी रावत को अपना प्रत्याशी बनाया. आशा नौटियाल निर्दलीय लड़ीं और इसका फायदा कांग्रेस के उम्मीदवार मनोज रावत को मिला और उन्होंने पूरे प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की सुनामी के बाबजूद यह सीट जीत ली.

बीजेपी ने नहीं खोले पत्ते: अब संग्राम उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 का है. एक ओर कांग्रेस से मनोज रावत की उम्मीदवारी पर कोई संशय नहीं है तो वहीं भाजपा को अपना उम्मीदवार तय करना है. इस बार आप भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने को तैयार है तो उक्रांद भी गजपाल रावत को उम्मीदवार घोषित कर चुनावी समर में कूद चुकी है. वहीं निर्दलीय कुलदीप रावत पूरे दमखम के साथ पिछली हार का बदला चुकाने चुनाव में उतरे हैं तो कई अन्य निर्दलीय भी अपना भाग्य आजमाने को तैयार हैं. ऐसे में यह देखना रोमांचक होगा कि इस बार जनता का मिजाज किसको विधायक बनाता है.

Last Updated :Jan 21, 2022, 2:47 PM IST
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