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वृक्षारोपण की असफलता से हुआ मैती आंदोलन का जन्म, ऐसे लिखी कल्याण सिंह रावत ने इबारत

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Published : Jan 27, 2020, 4:34 PM IST

उत्तराखंड में मैती आंदोलन के जनक माने जाने वाले कल्याण सिंह रावत को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. पर्यावरण संरक्षण को लेकर कल्याण रावत ने मैती आंदोलन चलाया था. अब ये आंदोलन उत्तराखंड के साथ साथ देश के कई हिस्सों में अपनाया जा रहा है. जिसे पीएम मोदी ने भी सराहा है.

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कल्याण सिंह रावत

देहरादून: मैती आंदोलन के जरिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात देने वाले कल्याण सिंह रावत को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है. चिपको आंदोलन की धरती उत्तराखंड के लाल कल्याण रावत ने पेड़ों और जंगलों की उपयोगिता को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाने का काम किया. 90 के दशक में वृक्षारोपण की असफलता ने कल्याण सिंह के मन में मैती आंदोलन का विचार आया और ये विचार आज मां के आंगन से लेकर सात समंदर पार तक अपनी चमक बिखेर रहा है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मैती आंदोलन को सराहा है.

मूल रूप से चमोली जिले के बैनोली गांव निवासी कल्याण सिंह रावत वर्तमान में देहरादून में रहते हैं. इनके दो बेटे हैं जो राजकीय सेवा में हैं. मैती आंदोलन के तहत जब किसी बेटी की शादी होती है तो वह विदाई से पहले एक पौधारोपण करती है. इसके जरिए वह पर्यावरण संरक्षण के साथ ही अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई लेती है.

पद्मश्री सम्मान

इस भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान आज उत्तराखंड के साथ ही पूरे भारत में चल रहा है. यह आंदोलन लोगों को पसंद आने लगा और बेहद कम समय में प्रसिद्ध हो गया.

ये भी पढ़े: विधायक धामी की बगावत पर इंदिरा हृदयेश का पलटवार- 'नखरे दिखाने की जरूरत नहीं'

इसके तहत गढ़वाल के किसी गांव में लड़की की शादी होती है तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है. वैदिक मंत्रों के द्वारा दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है और दुल्हन इसे पानी से सींचती है. फिर ब्राह्मण द्वारा इस नव दंपत्ति को आशीर्वाद दिया जाता है. पेड़ को लगाने के एवज में दूल्हे द्वारा दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे दिये जाते हैं. जिसका उपयोग पर्यावरण सुधारक कार्यों में और समाज के निर्धन बच्चों के पठन-पाठन में किया जाता है. दुल्हन की सहेलियों को मैती बहन कहा जाता है. जो भविष्य में उस पेड़ की देखभाल करती हैं.

कल्याण सिंह रावत को पेड़ों और जंगलों के प्रति लगाव उन्हें विरासत में मिला. जिस कारण से वे प्रकृति की और खींचते चले गए. कॉलेज के दिनों से ही कल्याण पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे. इस दौरान वे सर्वोदय से भी जुड़े रहे. जब सीमांत जनपद चमोली में चिपको आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था. 26 मार्च 1974 को वह 150 लड़कों को लेकर भारी बारिश में ट्रक में बैठकर गोपेश्वर से चिपको आंदोलन में शामिल होने जोशीमठ पहुंचे. चिपको आंदोलन की सफलता से कल्याण सिंह रावत अभिभूत हुए और मन में पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करने की ठानी.

1987 में उत्तरकाशी में भयकंर सूखा पड़ा. बारिश न होने से चारों और हाहाकार मच गया. ऐसे में इनके द्वारा वृक्ष अभिषेक समारोह मेला का आयोजन किया गया. जिसमें ग्रामस्तर पर वृक्ष अभिषेक समिति का गठन किया गया और ग्राम प्रधान को इसका अध्यक्ष बनाया गया. उनकी इस पहल की हर किसी ने सराहना की.

1994 में ग्वालदम राजकीय इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान प्रवक्ता के पद पर रहते हुए कल्याण सिंह ने स्कूली बच्चों को मैती आंदोलन के लिए प्रेरित किया. धीरे-धीरे समूचे गांव के लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया.

Intro:summary-मैती आंदोलन के जरिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण की अनूठी सौगात देने वाले कल्याण सिंह रावत ने चिपको आंदोलन की धरती से पेड़ों और जंगलों की उपयोगिता का अहसास दिलाया। 90 के दशक में वृक्षारोपण की असफलता ने मन में एक नया विचार दिया मैती और ये विचार आज मां के आंगन से लेकर सात समंदर पार तक अपनी चमक बिखेर रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नें भी मैती आंदोलन को सराहा। 

पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मैती आंदोलन के लिए कल्याण सिंह रावत को दिल्ली में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा जाएगा।




Body:मूल रूप से चमोली जिले के बैनोली गांव निवासी कल्याण सिंह रावत वर्तमान में देहरादून में रहते हैं। इनके दो बेटे हैं जो राजकीय सेवा में हैं। मैती के तहत जब किसी बेटी की शादी होती है, तो वह विदाई से पहले एक पौधा रोपती है। इसके जरिए वह पर्यावरण संरक्षण के साथ ही अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई लेती है। इस भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान आज उत्तराखंड के साथ ही पूरे भारत में चल रहा है। यह आंदोलन लोगों को पसंद आने लगा और बेहद कम समय में प्रसिद्ध हो गया। इसके तहत गढ़वाल के किसी गांव में किसी लड़की की शादी होती है तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधा दिया जाता है। वैदिक मंत्रों के द्वारा दूल्हा इस पौधे को रोपित करता है तथा दुल्हन इसे पानी से सींचती है। फिर ब्राह्मण द्वारा इस नव दंपत्ति को आशीर्वाद दिया जाता है। पेड़ को लगाने के एवज में दूल्हे द्वारा दुल्हन की सहेलियों को कुछ पैसे दिये जाते हैं। जिसका उपयोग पर्यावरण सुधारक कार्यों में और समाज के निर्धन बच्चों के पठन-पाठन में किया जाता है। दुल्हन की सहेलियों को मैती बहन कहा जाता है। जो भविष्य में उस पेड़ की देखभाल करती हैं।


बाइट :- कल्याण सिंह रावत, पर्यावरणविद ।।


कल्याण सिंह रावत को पेड़ों और जंगलों के प्रति लगाव उन्हें विरासत में मिला। जिस कारण से वे प्रकृति की और खींचते चले गए। कॉलेज के दिनों से ही कल्याण पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। इस दौरान वे सर्वोदय से भी जुड़े रहे। जब सीमांत जनपद चमोली में चिपको आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था तो 26 मार्च 1974 को वह 150 लड़कों को लेकर भारी बारिश में ट्रक में बैठकर गोपेश्वर से चिपको आंदोलन में शामिल होने जोशीमठ पहुंचे। चिपको आंदोलन की सफलता से कल्याण सिंह रावत अभिभूत हुए और मन में पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करने की ठानी।  1987 में उत्तरकाशी में भयकंर सूखा पड़ा। बारिश न होने से चारों और हाहाकार मच गया।

ऐसे में इनके द्वारा वृक्ष अभिषेक समारोह मेला का आयोजन किया गया। जिसमें ग्रामस्तर पर वृक्ष अभिषेक समिति का गठन किया गया और ग्राम प्रधान को इसका अध्यक्ष बनाया गया। उनकी इस पहल की हर किसी ने सराहना की। 1994 में ग्वालदम राजकीय इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान प्रवक्ता के पद पर रहते हुए कल्याण सिंह ने स्कूली बच्चों को मैती आंदोलन के लिए प्रेरित किया। फिर धीरे-धीरे समूचे गांव के लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया।




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