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'अगर सीमाएं सुरक्षित रहतीं तो भारत और तेजी से प्रगति करता', NSA अजीत डोभाल ने कहा - NSA Ajit Doval on border security

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By Major General Harsha Kakar

Published : May 29, 2024, 6:10 AM IST

Updated : Jul 9, 2024, 12:37 PM IST

Border Security And Economic Development: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सुझाव दिया कि, देश के विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के बीच उसी तरह का तालमेल और एकजुट होनी चाहिए जैसे कि तीनों सेनाओं के लिए मौजूदा योजना के तहत चल रहा है. बीएसएफ के अलंकरण समारोह में डोभाल ने क्या कुछ कहा, इस विषय पर रिटायर्ड मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ ने विस्तार से बताया...

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अजीत डोभाल (एनएसए) (ANI)

नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा था कि, अगर हमारी देश की सीमाएं अधिक सुरक्षित होतीं तो भारत की आर्थिक प्रगति की गति और ज्यादा तेज होतीं. पिछले हफ्ते, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अलंकरण समारोह में बोलते हुए अजीत डोभाल ने इस बात की जानकारी दी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने देश के विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र बलों के बीच तालमेल और एकजुटता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि, सीमाओं पर तैनात सैन्य बलों के कंधों पर अत्यधिक भार आ गया है. उन्होंने कहा कि, देश के सैनिकों को हमेशा सतर्क रहना होता है. उन्हें हर वक्त देश के राष्ट्रीय हितों और देश की सुरक्षा का ध्यान रखा होता है. अजीत डोभाल का मानना था कि, सीमाओं के सुरक्षित नहीं होने से खर्च में वृद्धि होती है. उन्होंने साफ तौर पर देश की सीमाओं की मजबूती पर बल दिया. उनका मानना था कि, बिना सीमांकित सीमाओं के कारण इन पर स्थायी तौर पर निगरानी रखनी पड़ती है, जिसके कारण खर्च का भार अधिक बढ़ जाता है. इसका उत्कृष्ट उदाहरण यूरोप है, जहां खुली सीमाएं, राज्यों के बीच कोई क्षेत्रीय विवाद नहीं होने के कारण सुरक्षा बजट कम हो गया है.

देश की सीमाएं सुरक्षित होतीं तो....
डोभाल ने पड़ोसी देश का जिक्र करते हुए कहा था कि, पाकिस्तान की तरह विवादित सीमाओं के कारण पड़ोसियों के साथ व्यापार भी प्रतिबंधित हो जाता है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. उनका मानना था कि, भारत के साथ व्यापार का रास्ता खोलने से जहां पाकिस्तान जैसे देश को फायदा पहुंचेगा, वहीं भारत को भी अतिरिक्त बाजार तक पहुंच मिलेगी. उन्होंने कहा कि, पाक नेतृत्व की सोच की वजह से उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है. उनका कहना था कि, पाकिस्तान ने भारत को अपने भूमि मार्गों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी है, जिससे नई दिल्ली को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार संपर्क बढ़ाने के लिए चाबहार के ईरानी बंदरगाह में निवेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इससे आने वाले वर्षों में पाक का महत्व कम हो जाएगा.

दक्षिण एशियाई देशों में भी राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षाएं
कुछ दक्षिण एशियाई देशों में भी राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षाएं हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आबादी भारत में प्रवास कर रही है, जिससे जनसांख्यिकी प्रभावित हो रही है. पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के सीमावर्ती जिलों के साथ-साथ मणिपुर और मिजोरम में भी जनसांख्यिकीय परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं. इससे आबादी के भीतर असुरक्षाएं बढ़ती हैं. इस पर अजीत डोभाल ने कहा कि, सीमा सुरक्षा का देश की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा पर भी असर पड़ता है. उन्होंने इस दौरान कट्टरपंथ का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि, देश में काफी संख्या में रोहिंग्या है. अरकान (म्यांमार) इलाके से भी लोग भारत में आते हैं. अन्य देशों से भारत में माइग्रेशन को रोकने की जिम्मेदारी बांग्लादेश की सीमा पर बीएसएफ और म्यांमार की सीमा पर असम राइफल्स की है. साथ ही एक सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि, सभी सीमाएं बाड़ लगाने और सुरक्षा के योग्य नहीं हैं. जैसे नदी वाले इलाके, पर्वतीय नदियां और घाटियों में बाड़ लगाना और उनका रखरखाव के साथ-साथ निगरानी करना भी चुनौतीपूर्ण है. इस तरह की चुनौतियों का फायदा उठाया जा सकता है. इस तरह की विकट चुनौतियों से निपटने का एकमात्र तरीका भौतिक गश्त और निगरानी के साथ-साथ प्रोद्योगिकी को नियोजित करना है. सीमाओं की निगराने के लिए उच्च तकनीकों वाले उपकरण इस्तेमाल में लाए जाते हैं, जिसके लिए हमें ज्यादा खर्चे उठाने पड़ते हैं.

इजरायल में क्या हुआ था?
इस पर डोभाल का कहना था कि, इस तरह की परिस्थितियों में अगर आपके पास बेहतर गुणवत्ता वाले सेंसर, रिमोट सेंसिंग तकनीक हैं, तो आप अच्छा रिस्पांस दे सकते हैं. पिछले साल 07 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमले ने इजराइल की हर सुरक्षा चुनौती को दरकिनार कर दिया था. गाजा बाड़ टेक्नोलॉजी के हिसाब से काफी उन्नत माना जाता रहा है. इसमें सेंसर, सीसीटीवी कैमरे, विद्युतीकरण और इसी तरह की अन्य चीजें थीं, जिनकी निगरानी चौबीसों घंटे की जाती थी. हालांकि, उसके बावजूद सबसे मजबूत चक्रव्यूह को तोड़ दिया गया और बड़े पैमाने पर इजरायलियों को हताहत होना पड़ा.

सीमाओं की सुरक्षा को लेकर क्या है चुनौती
भारत के अधिकांश सीमावर्ती क्षेत्र विशेषकर उत्तरी क्षेत्र रिमोट एरिया में हैं. वे अविकसित हैं. यहां ऐसी धारणा थी कि यदि बुनियादी ढांचा विकसित किया गया तो संघर्ष की स्थिति में दुश्मन इसका फायदा उठा सकता है.इ ससे स्थानीय आबादी अलग-थलग पड़ गई और सुरक्षा बलों की आवाजाही पर भी असर पड़ा. वर्तमान में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है. सीमावर्ती और दूरदराज के क्षेत्रों में विकास लोगों को भारतीय समाज की ओर आकर्षित करेगा. इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा. इस पर डोभाल ने कहा कि बुनियादी ढांचे का विकास सिनेमाघरों और सड़कों के लिए विशिष्ट होना चाहिए, मोबाइल टावर बनाया जाना चाहिए. लेकिन हर थिएटर की अपनी एक अलग तरह की चुनौती होती है.

बॉर्डर से सटे गांव देश की आंख हैं
डोभाल ने अपने संबोधन में बार्डर से सटे गांवों को देश की आंख कहा. उन्होंने सीमावर्ती गांवों को इजरायल की नियोजित टेक्नोलॉजी के साथ जोड़ा. उन्होंने कहा कि, सीमा पर इजरायल की अत्याधुनिक खुफिया जानकारी शून्य थी. इजरायल के पास उच्च तकनीकें होने के बाद भी उन्हें हजारों की संख्या में हमास के लोगों की घुसपैठ की जानकारी नहीं हुई. डोभाल ने कहा कि, भारत इस मामले में भाग्यशाली है, क्योंकि हमारे गांव के रहने वाले लोग ही देश की आंखें हैं. वे सीमा पर नजर रख सकते हैं.

सीमा पर स्थित हर गांव देश का पहला गांव
ग्रामीणों को सुरक्षा प्रणाली में शामिल करना मोदी सरकार के आगे बढ़ाई गई मौजूदा 'पहले गांव' की अवधारणा का हिस्सा है. माणा का दौरा करने के बाद पीएम मोदी ने कहा, 'अब मेरे लिए भी, सीमा पर स्थित हर गांव देश का पहला गांव है...' इन्हें पहले 'आखिरी गांव' कहा जाता था. केंद्र सरकार की 'वाइब्रेंट विलेज' योजना का उद्देश्य अरुणाचल, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सीमावर्ती गांवों को विकसित करना है. सीमावर्ती गांव के निवासी सुरक्षा बलों के लिए 'आंख और कान' होंगे. ये आंख और कान हमेशा स्थानीय चरवाहे ही रहे हैं जिन्होंने दुश्मन की हरकतों पर शुरुआती चेतावनी दी. ये चरवाहे उन रिमोट क्षेत्रों में चले जाते हैं जहां आमतौर पर पूरे समय के लिए निगरानी नहीं की जाती है.

देश की सुरक्षा में सीमा सुरक्षा बलों की भूमिका
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सुझाव दिया कि देश के विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के बीच उसी तरह तालमेल और एकजुटता होनी चाहिए जैसे कि तीनों सेनाओं के लिए मौजूदा योजना के तहत चल रहा है. करीब 10 लाख की संख्या वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में एनडीआरएफ और एनएसजी के अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ और एसएसबी शामिल हैं और उन्हें भीतरी इलाकों और सीमाओं पर अलग-अलग आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों को पूरा करने के लिए तैनात किया गया है. डोभाल ने कहा कि क्या हमें अपने सीपीओ (केंद्रीय पुलिस संगठनों) में तालमेल के बारे में सोचना चाहिए? तालमेल से हम हथियारों और अन्य चीजों में अंतरसंचालनीयता प्राप्त कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि रक्षा बलों में यह तालमेल अब किया जा रहा है. हम थिएटर कमांड के बारे में सोच रहे हैं.

'एक सीमा एक बल'
डोभाल ने कहा कि, भारत में सीएपीएफ के अंतर्गत बहुत सारे संगठन हैं, इनमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स (हालांकि यह सेना के तहत काम करती है) और आईटीबीपी शामिल हैं. सभी सीएपीएफ गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधीन हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि उनकी जिम्मेदारियां आम तौर पर निर्धारित की जाती हैं, फिर भी हमेशा एक ओवरलैप होता है. असम राइफल्स म्यांमार के साथ सीमा की निगरानी करती है और सेना के साथ-साथ उत्तर पूर्व में आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों में भी कार्यरत है. बीएसएफ को पाकिस्तान और बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात किया गया है, जबकि कुछ बटालियन एलओसी पर भी तैनात हैं. आईटीबीपी को बड़े पैमाने पर उत्तरी क्षेत्र में तैनात किया गया है. सीआरपीएफ आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, इसलिए जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व में सेना के साथ काम करता है, जबकि सीआईएसएफ बंदरगाहों और हवाई अड्डों सहित सरकारी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करता है. एसएसबी नेपाल और भूटान के साथ सीमाओं के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है. विभिन्न सीएपीएफ वामपंथी उग्रवाद क्षेत्रों में काम करते हैं.

भारत ने कभी भी 'एक सीमा एक बल' की अवधारणा पर विचार नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि सीमा की सुरक्षा के लिए एक ही बल जिम्मेदार है. भले ही कितने भी अलग-अलग बल तैनात हों. जबकि बीएसएफ के पास सीमांकित सीमाओं की जिम्मेदारी है और एसएसबी के पास विशिष्ट सीमाओं की जिम्मेदारी है. पाक के साथ एलओसी और चीन के साथ एलएसी के लिए कोई निर्धारित जिम्मेदारियां नहीं हैं, जहां सेना, बीएसएफ और आईटीबीपी के सैनिक तैनात हैं. ये क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये विवादित बने हुए हैं. तार्किक रूप से, ये सेना की जिम्मेदारी होनी चाहिए और क्षेत्र में तैनात सभी अतिरिक्त बलों को इसके तहत काम करना चाहिए.

बेहतर सीमा प्रबंधन
हालांकि, सीएपीएफ गृह मंत्रालय के अधीन हैं, इसलिए ऐसी अवधारणा को लागू करने में झिझक है क्योंकि यह अस्थायी रूप से इन इकाइयों को MoD के तहत रखेगा. इससे परिचालन स्तर पर कठिनाइयां बढ़ जाती हैं क्योंकि निर्देश अलग-अलग नियंत्रण मुख्यालयों, सेना और उनके अपने मुख्यालयों से आते हैं. सीएपीएफ के भीतर संयुक्तता और एकीकरण लाने से भूमिकाओं में बदलाव और कार्यप्रणाली में वृद्धि होगी, वहीं बेहतर सीमा प्रबंधन के लिए एलओसी और एलएसी पर तैनात लोगों के लिए सेना के साथ एकीकरण पर भी विचार करने की समान आवश्यकता है. संभवत: नयी सरकार इस पहलू पर विचार कर सकती है.

ये भी पढ़ें: NSA डोभाल ने सुरक्षित सीमा सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय पुलिस संगठन को एक साथ जोड़ने पर दिया जोर

नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा था कि, अगर हमारी देश की सीमाएं अधिक सुरक्षित होतीं तो भारत की आर्थिक प्रगति की गति और ज्यादा तेज होतीं. पिछले हफ्ते, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अलंकरण समारोह में बोलते हुए अजीत डोभाल ने इस बात की जानकारी दी. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने देश के विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र बलों के बीच तालमेल और एकजुटता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि, सीमाओं पर तैनात सैन्य बलों के कंधों पर अत्यधिक भार आ गया है. उन्होंने कहा कि, देश के सैनिकों को हमेशा सतर्क रहना होता है. उन्हें हर वक्त देश के राष्ट्रीय हितों और देश की सुरक्षा का ध्यान रखा होता है. अजीत डोभाल का मानना था कि, सीमाओं के सुरक्षित नहीं होने से खर्च में वृद्धि होती है. उन्होंने साफ तौर पर देश की सीमाओं की मजबूती पर बल दिया. उनका मानना था कि, बिना सीमांकित सीमाओं के कारण इन पर स्थायी तौर पर निगरानी रखनी पड़ती है, जिसके कारण खर्च का भार अधिक बढ़ जाता है. इसका उत्कृष्ट उदाहरण यूरोप है, जहां खुली सीमाएं, राज्यों के बीच कोई क्षेत्रीय विवाद नहीं होने के कारण सुरक्षा बजट कम हो गया है.

देश की सीमाएं सुरक्षित होतीं तो....
डोभाल ने पड़ोसी देश का जिक्र करते हुए कहा था कि, पाकिस्तान की तरह विवादित सीमाओं के कारण पड़ोसियों के साथ व्यापार भी प्रतिबंधित हो जाता है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. उनका मानना था कि, भारत के साथ व्यापार का रास्ता खोलने से जहां पाकिस्तान जैसे देश को फायदा पहुंचेगा, वहीं भारत को भी अतिरिक्त बाजार तक पहुंच मिलेगी. उन्होंने कहा कि, पाक नेतृत्व की सोच की वजह से उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है. उनका कहना था कि, पाकिस्तान ने भारत को अपने भूमि मार्गों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी है, जिससे नई दिल्ली को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार संपर्क बढ़ाने के लिए चाबहार के ईरानी बंदरगाह में निवेश करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इससे आने वाले वर्षों में पाक का महत्व कम हो जाएगा.

दक्षिण एशियाई देशों में भी राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षाएं
कुछ दक्षिण एशियाई देशों में भी राजनीतिक और आर्थिक असुरक्षाएं हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आबादी भारत में प्रवास कर रही है, जिससे जनसांख्यिकी प्रभावित हो रही है. पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के सीमावर्ती जिलों के साथ-साथ मणिपुर और मिजोरम में भी जनसांख्यिकीय परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं. इससे आबादी के भीतर असुरक्षाएं बढ़ती हैं. इस पर अजीत डोभाल ने कहा कि, सीमा सुरक्षा का देश की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा पर भी असर पड़ता है. उन्होंने इस दौरान कट्टरपंथ का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि, देश में काफी संख्या में रोहिंग्या है. अरकान (म्यांमार) इलाके से भी लोग भारत में आते हैं. अन्य देशों से भारत में माइग्रेशन को रोकने की जिम्मेदारी बांग्लादेश की सीमा पर बीएसएफ और म्यांमार की सीमा पर असम राइफल्स की है. साथ ही एक सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि, सभी सीमाएं बाड़ लगाने और सुरक्षा के योग्य नहीं हैं. जैसे नदी वाले इलाके, पर्वतीय नदियां और घाटियों में बाड़ लगाना और उनका रखरखाव के साथ-साथ निगरानी करना भी चुनौतीपूर्ण है. इस तरह की चुनौतियों का फायदा उठाया जा सकता है. इस तरह की विकट चुनौतियों से निपटने का एकमात्र तरीका भौतिक गश्त और निगरानी के साथ-साथ प्रोद्योगिकी को नियोजित करना है. सीमाओं की निगराने के लिए उच्च तकनीकों वाले उपकरण इस्तेमाल में लाए जाते हैं, जिसके लिए हमें ज्यादा खर्चे उठाने पड़ते हैं.

इजरायल में क्या हुआ था?
इस पर डोभाल का कहना था कि, इस तरह की परिस्थितियों में अगर आपके पास बेहतर गुणवत्ता वाले सेंसर, रिमोट सेंसिंग तकनीक हैं, तो आप अच्छा रिस्पांस दे सकते हैं. पिछले साल 07 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमले ने इजराइल की हर सुरक्षा चुनौती को दरकिनार कर दिया था. गाजा बाड़ टेक्नोलॉजी के हिसाब से काफी उन्नत माना जाता रहा है. इसमें सेंसर, सीसीटीवी कैमरे, विद्युतीकरण और इसी तरह की अन्य चीजें थीं, जिनकी निगरानी चौबीसों घंटे की जाती थी. हालांकि, उसके बावजूद सबसे मजबूत चक्रव्यूह को तोड़ दिया गया और बड़े पैमाने पर इजरायलियों को हताहत होना पड़ा.

सीमाओं की सुरक्षा को लेकर क्या है चुनौती
भारत के अधिकांश सीमावर्ती क्षेत्र विशेषकर उत्तरी क्षेत्र रिमोट एरिया में हैं. वे अविकसित हैं. यहां ऐसी धारणा थी कि यदि बुनियादी ढांचा विकसित किया गया तो संघर्ष की स्थिति में दुश्मन इसका फायदा उठा सकता है.इ ससे स्थानीय आबादी अलग-थलग पड़ गई और सुरक्षा बलों की आवाजाही पर भी असर पड़ा. वर्तमान में बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता दी जा रही है. सीमावर्ती और दूरदराज के क्षेत्रों में विकास लोगों को भारतीय समाज की ओर आकर्षित करेगा. इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा. इस पर डोभाल ने कहा कि बुनियादी ढांचे का विकास सिनेमाघरों और सड़कों के लिए विशिष्ट होना चाहिए, मोबाइल टावर बनाया जाना चाहिए. लेकिन हर थिएटर की अपनी एक अलग तरह की चुनौती होती है.

बॉर्डर से सटे गांव देश की आंख हैं
डोभाल ने अपने संबोधन में बार्डर से सटे गांवों को देश की आंख कहा. उन्होंने सीमावर्ती गांवों को इजरायल की नियोजित टेक्नोलॉजी के साथ जोड़ा. उन्होंने कहा कि, सीमा पर इजरायल की अत्याधुनिक खुफिया जानकारी शून्य थी. इजरायल के पास उच्च तकनीकें होने के बाद भी उन्हें हजारों की संख्या में हमास के लोगों की घुसपैठ की जानकारी नहीं हुई. डोभाल ने कहा कि, भारत इस मामले में भाग्यशाली है, क्योंकि हमारे गांव के रहने वाले लोग ही देश की आंखें हैं. वे सीमा पर नजर रख सकते हैं.

सीमा पर स्थित हर गांव देश का पहला गांव
ग्रामीणों को सुरक्षा प्रणाली में शामिल करना मोदी सरकार के आगे बढ़ाई गई मौजूदा 'पहले गांव' की अवधारणा का हिस्सा है. माणा का दौरा करने के बाद पीएम मोदी ने कहा, 'अब मेरे लिए भी, सीमा पर स्थित हर गांव देश का पहला गांव है...' इन्हें पहले 'आखिरी गांव' कहा जाता था. केंद्र सरकार की 'वाइब्रेंट विलेज' योजना का उद्देश्य अरुणाचल, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सीमावर्ती गांवों को विकसित करना है. सीमावर्ती गांव के निवासी सुरक्षा बलों के लिए 'आंख और कान' होंगे. ये आंख और कान हमेशा स्थानीय चरवाहे ही रहे हैं जिन्होंने दुश्मन की हरकतों पर शुरुआती चेतावनी दी. ये चरवाहे उन रिमोट क्षेत्रों में चले जाते हैं जहां आमतौर पर पूरे समय के लिए निगरानी नहीं की जाती है.

देश की सुरक्षा में सीमा सुरक्षा बलों की भूमिका
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सुझाव दिया कि देश के विभिन्न केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के बीच उसी तरह तालमेल और एकजुटता होनी चाहिए जैसे कि तीनों सेनाओं के लिए मौजूदा योजना के तहत चल रहा है. करीब 10 लाख की संख्या वाले केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में एनडीआरएफ और एनएसजी के अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ और एसएसबी शामिल हैं और उन्हें भीतरी इलाकों और सीमाओं पर अलग-अलग आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों को पूरा करने के लिए तैनात किया गया है. डोभाल ने कहा कि क्या हमें अपने सीपीओ (केंद्रीय पुलिस संगठनों) में तालमेल के बारे में सोचना चाहिए? तालमेल से हम हथियारों और अन्य चीजों में अंतरसंचालनीयता प्राप्त कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि रक्षा बलों में यह तालमेल अब किया जा रहा है. हम थिएटर कमांड के बारे में सोच रहे हैं.

'एक सीमा एक बल'
डोभाल ने कहा कि, भारत में सीएपीएफ के अंतर्गत बहुत सारे संगठन हैं, इनमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स (हालांकि यह सेना के तहत काम करती है) और आईटीबीपी शामिल हैं. सभी सीएपीएफ गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधीन हैं. इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि उनकी जिम्मेदारियां आम तौर पर निर्धारित की जाती हैं, फिर भी हमेशा एक ओवरलैप होता है. असम राइफल्स म्यांमार के साथ सीमा की निगरानी करती है और सेना के साथ-साथ उत्तर पूर्व में आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों में भी कार्यरत है. बीएसएफ को पाकिस्तान और बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात किया गया है, जबकि कुछ बटालियन एलओसी पर भी तैनात हैं. आईटीबीपी को बड़े पैमाने पर उत्तरी क्षेत्र में तैनात किया गया है. सीआरपीएफ आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, इसलिए जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्व में सेना के साथ काम करता है, जबकि सीआईएसएफ बंदरगाहों और हवाई अड्डों सहित सरकारी प्रतिष्ठानों की सुरक्षा करता है. एसएसबी नेपाल और भूटान के साथ सीमाओं के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है. विभिन्न सीएपीएफ वामपंथी उग्रवाद क्षेत्रों में काम करते हैं.

भारत ने कभी भी 'एक सीमा एक बल' की अवधारणा पर विचार नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि सीमा की सुरक्षा के लिए एक ही बल जिम्मेदार है. भले ही कितने भी अलग-अलग बल तैनात हों. जबकि बीएसएफ के पास सीमांकित सीमाओं की जिम्मेदारी है और एसएसबी के पास विशिष्ट सीमाओं की जिम्मेदारी है. पाक के साथ एलओसी और चीन के साथ एलएसी के लिए कोई निर्धारित जिम्मेदारियां नहीं हैं, जहां सेना, बीएसएफ और आईटीबीपी के सैनिक तैनात हैं. ये क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये विवादित बने हुए हैं. तार्किक रूप से, ये सेना की जिम्मेदारी होनी चाहिए और क्षेत्र में तैनात सभी अतिरिक्त बलों को इसके तहत काम करना चाहिए.

बेहतर सीमा प्रबंधन
हालांकि, सीएपीएफ गृह मंत्रालय के अधीन हैं, इसलिए ऐसी अवधारणा को लागू करने में झिझक है क्योंकि यह अस्थायी रूप से इन इकाइयों को MoD के तहत रखेगा. इससे परिचालन स्तर पर कठिनाइयां बढ़ जाती हैं क्योंकि निर्देश अलग-अलग नियंत्रण मुख्यालयों, सेना और उनके अपने मुख्यालयों से आते हैं. सीएपीएफ के भीतर संयुक्तता और एकीकरण लाने से भूमिकाओं में बदलाव और कार्यप्रणाली में वृद्धि होगी, वहीं बेहतर सीमा प्रबंधन के लिए एलओसी और एलएसी पर तैनात लोगों के लिए सेना के साथ एकीकरण पर भी विचार करने की समान आवश्यकता है. संभवत: नयी सरकार इस पहलू पर विचार कर सकती है.

ये भी पढ़ें: NSA डोभाल ने सुरक्षित सीमा सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय पुलिस संगठन को एक साथ जोड़ने पर दिया जोर

Last Updated : Jul 9, 2024, 12:37 PM IST
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