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हर्षिल के प्रतिबंधित इलाके में बिना परमिशन मूर्ति के साथ पहुंचे बालकृष्ण, अधिकारियों में मचा हड़कंप - Balkrishna in Bugyal

Acharya Balkrishna Controversy उत्तरकाशी के हर्षिल के आरक्षित वन क्षेत्र में करीब एक क्विंटल की ग्रेनाइट की मूर्ति (धन्वंतरि) ले जाने को लेकर आचार्य बालकृष्ण विवादों में घिर गए हैं. आरोप है कि बिना इजाजत के यह मूर्ति हजारों फीट की ऊंचाई पर बुग्याल में पहुंचाई गई. जिससे वन महकमे में हड़कंप मचा हुआ है. बताया जा रहा है कि आयुर्वेदिक औषधियों की खोज के लिए निम और पतंजलि की टीम गई हुई है. जिसमें खुद आचार्य बालकृष्ण भी शामिल हैं.

Acharya Balkrishna in Bugyal
आचार्य बालकृष्ण
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : September 4, 2023 at 8:19 PM IST

Updated : September 5, 2023 at 5:00 PM IST

जड़ी बूटियां की खोज में निकले आचार्य बालकृष्ण

देहरादूनः पतंजलि योगपीठ और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान निम उत्तरकाशी के बुग्यालों में जड़ी बूटी खोजने का काम कर रही है. इस काम के लिए पतंजलि के वैज्ञानिकों की टीम के साथ खुद आचार्य बालकृष्ण भ्रमण पर गए हैं, लेकिन उनको लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है. पूरा विवाद एक मूर्ति को उस जगह पर लगाने से जुड़ा है, जहां पर एक कील तक लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. ऐसे में धन्वंतरि की मूर्ति लगाने का विवाद गहरा गया है.

परमिशन जड़ी बूटी की, लेकिन ले गए मूर्तिः बीते 7 दिन पहले पतंजलि योगपीठ ने उत्तरकाशी वन प्रशासन से हॉर्न ऑफ हर्षिल शिखर पर जाने की इजाजत मांगी थी. पत्र में ये कहा गया था कि पतंजलि योगपीठ के 30 लोग और निम के एक्सपर्ट इस दल में रहेंगे. यह दल करीब 23 हजार फीट की ऊंचाई स्थित हॉर्न ऑफ हर्षिल पर जड़ी बूटियां का अवलोकन और रिसर्च करेगा.

पतंजलि योगपीठ ने अपने पत्र में ये भी कहा था कि वहां जाकर जड़ी बूटियां का संरक्षण कैसे हो सकेगा? इसके लिए भी दल काम करेगा. इसी सब बातों को ध्यान में रखते हुए वन प्रशासन ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी थी. निम के एक्सपर्ट पतंजलि योगपीठ के साथ इसलिए गए, ताकि, खतरनाक और जटिल रास्तों को पार करा सके. इसकी पूरी प्लानिंग भी निम को करनी थी. लिहाजा, एक सितंबर को यह दल रवाना हुआ.
ये भी पढ़ेंः जब मुश्किल में थे प्राण, एलोपैथी आई काम, डॉक्टर बोले- तब हमने बचाई थी जान

एक क्विंटल की मूर्ति पहुंची कैसे? किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि पतंजलि योगपीठ का जो दल धराली से ऊपर जाकर जड़ी बूटियां को संरक्षण का काम करने वाला था, वो दल भारी भरकम करीब एक क्विंटल की भगवान धन्वंतरि की मूर्ति भी ले जाना चाहता है. जहां पर इंसानों के जाने की परमिशन भी बड़ी मुश्किल से मिलती है.

पतंजलि योगपीठ उस क्षेत्र यानी बुग्याल में मूर्ति को स्थापित करना चाहता है, जहां पर बिना भारत सरकार के अनुमति के कोई एक कील तक भी ठोक नहीं सकता. हैरानी की बात तो ये है कि यह दल अपने साथ इस भारी भरकम मूर्ति को ऊपर तक ले जाने में भी कामयाब हो गया, लेकिन आज जैसे ही इसकी खबर स्थानीय वन प्रशासन को पहुंची तो वैसे ही पूरे महकमे में हड़कंप मच गया.

  • #हिमालय के उत्तुंग शिखर पर लगभग 12000 फीट की ऊंचाई पर यज्ञ के रोमांचकारी आनंद के साथ, सब दैवीय शक्तियों को प्रणाम करते हुए, सबकी शुभकामनाओं के साथ अब हम #अनारोहित #शिखर के आरोहण के लिए इसके आगे प्रस्थान करेंगे और यहां तक साथ आई पूरी टीम वापस बेस कैंप के लिए प्रस्थान करेगी… pic.twitter.com/M88vfrhHQU

    — Acharya Balkrishna (@Ach_Balkrishna) September 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

यहां करना चाहते हैं मूर्ति स्थापितः इस दल के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण हैं. बिना अनुमति के आरक्षित वन क्षेत्र ये मूर्ति कैसे पहुंची? इसको लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे है. अपनी यात्रा पर जाने से पहले आचार्य बालकृष्ण ने कहा था कि हॉर्न ऑफ हर्षिल चोटी के आरोहण के साथ करीब एक क्विंटल भार (ग्रेनाइट) की भगवान धन्वंतरि की मूर्ति को वो उसी क्षेत्र में स्थापित करेंगे. बिना अनुमति के बीती शनिवार को ग्रेनाइट की मूर्ति धराली के पास झिंडा बुग्याल में पहुंचा दी गई.

उत्तरकाशी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी ने मामला संज्ञान में आते ही गंगोत्री (हर्षिल) रेंज अधिकारी को निर्देश दिए थे कि बुग्याल क्षेत्र में बिना अनुमति के पहुंचाई गई मूर्ति को सीज किया जाए. साथ ही इस मामले में डीएफओ ने निम के अधिकारियों से भी बात की थी. इस मामले में गंगोत्री (हर्षिल) रेंज अधिकारी जगमोहन गंगाणी ने कहा कि मूर्ति को सीज करने और उसे धराली लाने के लिए रविवार की सुबह 8 वन कर्मियों को झिंडा बुग्याल क्षेत्र में भेजा गया.
ये भी पढ़ेंः क्या आयुर्वेद में नहीं है हार्ट अटैक का इलाज, स्वामी मुक्तानंद की मौत ने फिर खड़े किये सवाल

अधिकारी बोले, मामला गंभीर, चेतावनी दी गई हैः वहीं, जब ईटीवी भारत ने उत्तरकाशी के डीएफओ डीपी बलूनी से इस पूरे मामले में फोन पर बात की तो उनका कहना था कि 'देखिए यह बहुत ही गंभीर मामला है कि कोई बिना इजाजत के इस तरह का कोई काम करें. हमसे ट्रेकिंग और जड़ी बूटी संबंधित परमिशन मांगी थी, वो हमने दी है, लेकिन मूर्ति स्थापना कैसे हो सकती है? ये गंभीर मामला है.'

डीपी बलूनी ने आगे कहा कि 'हमने आचार्य बालकृष्ण से कहा है कि वो इस प्रोग्राम को तत्काल खत्म करें. उनके दल के साथ हमारे 5 लोगों को भी तैनात किया गया है. गंगोत्री नेशनल पार्क पूरी तरह से प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां किसी तरह का निर्माण या स्थापना नहीं हो सकती है.'

प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी ने आगे बताया कि, 'फिलहाल पतंजलि योगपीठ और आचार्य बालकृष्ण ने उनकी बात को मान लिया है, लेकिन वन प्रशासन को अभी ये लगता है कि क्योंकि अधिक संख्या में बुग्याल में लोग मौजूद हैं, वो लोग मूर्ति को वहीं पर स्थापित या छोड़कर आ सकते हैं. ऐसे में वन वन विभाग की एक टीम लगातार उनके साथ चल रही है और अगर वो वहां पर मूर्ति छोड़ने भी हैं तो विभाग उस मूर्ति को वापस नीचे लेकर आएगा. डीएफओ का कहना है कि बालकृष्ण की टीम ने 7 सितंबर तक वहां ठहरने की परमिशन ली हुई है और 7 सितंबर को वो वापस उत्तरकाशी लौट आएंगे.'

उधर, मामले में ईटीवी भारत ने पतंजलि योगपीठ से पक्ष जानने की कोशिश की. इस मामले में आर्चाय बालकृष्ण से बात तो नहीं हो पाई, लेकिन पतंजलि योगपीठ और स्वामी रामदेव के प्रवक्ता एसके तिजारावाला का कहना है कि, 'हम लोग हिमालय एवं पर्यावरण के लिए ही कार्य कर रहे हैं. फिलहाल, ये जो भी मामला है. इसमें जो भी सही होगा, आगे वही किया जाएगा. आचार्य बालकृष्ण भी वहां पर जड़ी बूटी की खोज में ही गए हैं.'

कौन है भगवान धन्वंतरिः जिस भगवान धन्वंतरि की मूर्ति लगाई जा रही है, उन्हें भगवान विष्णु का 12वां अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि तमाम देवी देवताओं के चिकित्सक थे. उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक के रूप में हुई थी. आयुर्वेद से जुड़े तमाम चिकित्सा भगवान धन्वंतरि को अपना आराध्य भी मानते हैं. खुद आचार्य बालकृष्ण अपने जन्मदिन को जड़ी-बूटी दिवस के रूप में मनाते हैं.

जड़ी बूटियां की खोज में निकले आचार्य बालकृष्ण

देहरादूनः पतंजलि योगपीठ और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान निम उत्तरकाशी के बुग्यालों में जड़ी बूटी खोजने का काम कर रही है. इस काम के लिए पतंजलि के वैज्ञानिकों की टीम के साथ खुद आचार्य बालकृष्ण भ्रमण पर गए हैं, लेकिन उनको लेकर एक विवाद खड़ा हो गया है. पूरा विवाद एक मूर्ति को उस जगह पर लगाने से जुड़ा है, जहां पर एक कील तक लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. ऐसे में धन्वंतरि की मूर्ति लगाने का विवाद गहरा गया है.

परमिशन जड़ी बूटी की, लेकिन ले गए मूर्तिः बीते 7 दिन पहले पतंजलि योगपीठ ने उत्तरकाशी वन प्रशासन से हॉर्न ऑफ हर्षिल शिखर पर जाने की इजाजत मांगी थी. पत्र में ये कहा गया था कि पतंजलि योगपीठ के 30 लोग और निम के एक्सपर्ट इस दल में रहेंगे. यह दल करीब 23 हजार फीट की ऊंचाई स्थित हॉर्न ऑफ हर्षिल पर जड़ी बूटियां का अवलोकन और रिसर्च करेगा.

पतंजलि योगपीठ ने अपने पत्र में ये भी कहा था कि वहां जाकर जड़ी बूटियां का संरक्षण कैसे हो सकेगा? इसके लिए भी दल काम करेगा. इसी सब बातों को ध्यान में रखते हुए वन प्रशासन ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी थी. निम के एक्सपर्ट पतंजलि योगपीठ के साथ इसलिए गए, ताकि, खतरनाक और जटिल रास्तों को पार करा सके. इसकी पूरी प्लानिंग भी निम को करनी थी. लिहाजा, एक सितंबर को यह दल रवाना हुआ.
ये भी पढ़ेंः जब मुश्किल में थे प्राण, एलोपैथी आई काम, डॉक्टर बोले- तब हमने बचाई थी जान

एक क्विंटल की मूर्ति पहुंची कैसे? किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि पतंजलि योगपीठ का जो दल धराली से ऊपर जाकर जड़ी बूटियां को संरक्षण का काम करने वाला था, वो दल भारी भरकम करीब एक क्विंटल की भगवान धन्वंतरि की मूर्ति भी ले जाना चाहता है. जहां पर इंसानों के जाने की परमिशन भी बड़ी मुश्किल से मिलती है.

पतंजलि योगपीठ उस क्षेत्र यानी बुग्याल में मूर्ति को स्थापित करना चाहता है, जहां पर बिना भारत सरकार के अनुमति के कोई एक कील तक भी ठोक नहीं सकता. हैरानी की बात तो ये है कि यह दल अपने साथ इस भारी भरकम मूर्ति को ऊपर तक ले जाने में भी कामयाब हो गया, लेकिन आज जैसे ही इसकी खबर स्थानीय वन प्रशासन को पहुंची तो वैसे ही पूरे महकमे में हड़कंप मच गया.

  • #हिमालय के उत्तुंग शिखर पर लगभग 12000 फीट की ऊंचाई पर यज्ञ के रोमांचकारी आनंद के साथ, सब दैवीय शक्तियों को प्रणाम करते हुए, सबकी शुभकामनाओं के साथ अब हम #अनारोहित #शिखर के आरोहण के लिए इसके आगे प्रस्थान करेंगे और यहां तक साथ आई पूरी टीम वापस बेस कैंप के लिए प्रस्थान करेगी… pic.twitter.com/M88vfrhHQU

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यहां करना चाहते हैं मूर्ति स्थापितः इस दल के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण हैं. बिना अनुमति के आरक्षित वन क्षेत्र ये मूर्ति कैसे पहुंची? इसको लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे है. अपनी यात्रा पर जाने से पहले आचार्य बालकृष्ण ने कहा था कि हॉर्न ऑफ हर्षिल चोटी के आरोहण के साथ करीब एक क्विंटल भार (ग्रेनाइट) की भगवान धन्वंतरि की मूर्ति को वो उसी क्षेत्र में स्थापित करेंगे. बिना अनुमति के बीती शनिवार को ग्रेनाइट की मूर्ति धराली के पास झिंडा बुग्याल में पहुंचा दी गई.

उत्तरकाशी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी ने मामला संज्ञान में आते ही गंगोत्री (हर्षिल) रेंज अधिकारी को निर्देश दिए थे कि बुग्याल क्षेत्र में बिना अनुमति के पहुंचाई गई मूर्ति को सीज किया जाए. साथ ही इस मामले में डीएफओ ने निम के अधिकारियों से भी बात की थी. इस मामले में गंगोत्री (हर्षिल) रेंज अधिकारी जगमोहन गंगाणी ने कहा कि मूर्ति को सीज करने और उसे धराली लाने के लिए रविवार की सुबह 8 वन कर्मियों को झिंडा बुग्याल क्षेत्र में भेजा गया.
ये भी पढ़ेंः क्या आयुर्वेद में नहीं है हार्ट अटैक का इलाज, स्वामी मुक्तानंद की मौत ने फिर खड़े किये सवाल

अधिकारी बोले, मामला गंभीर, चेतावनी दी गई हैः वहीं, जब ईटीवी भारत ने उत्तरकाशी के डीएफओ डीपी बलूनी से इस पूरे मामले में फोन पर बात की तो उनका कहना था कि 'देखिए यह बहुत ही गंभीर मामला है कि कोई बिना इजाजत के इस तरह का कोई काम करें. हमसे ट्रेकिंग और जड़ी बूटी संबंधित परमिशन मांगी थी, वो हमने दी है, लेकिन मूर्ति स्थापना कैसे हो सकती है? ये गंभीर मामला है.'

डीपी बलूनी ने आगे कहा कि 'हमने आचार्य बालकृष्ण से कहा है कि वो इस प्रोग्राम को तत्काल खत्म करें. उनके दल के साथ हमारे 5 लोगों को भी तैनात किया गया है. गंगोत्री नेशनल पार्क पूरी तरह से प्रतिबंधित क्षेत्र है. यहां किसी तरह का निर्माण या स्थापना नहीं हो सकती है.'

प्रभागीय वनाधिकारी डीपी बलूनी ने आगे बताया कि, 'फिलहाल पतंजलि योगपीठ और आचार्य बालकृष्ण ने उनकी बात को मान लिया है, लेकिन वन प्रशासन को अभी ये लगता है कि क्योंकि अधिक संख्या में बुग्याल में लोग मौजूद हैं, वो लोग मूर्ति को वहीं पर स्थापित या छोड़कर आ सकते हैं. ऐसे में वन वन विभाग की एक टीम लगातार उनके साथ चल रही है और अगर वो वहां पर मूर्ति छोड़ने भी हैं तो विभाग उस मूर्ति को वापस नीचे लेकर आएगा. डीएफओ का कहना है कि बालकृष्ण की टीम ने 7 सितंबर तक वहां ठहरने की परमिशन ली हुई है और 7 सितंबर को वो वापस उत्तरकाशी लौट आएंगे.'

उधर, मामले में ईटीवी भारत ने पतंजलि योगपीठ से पक्ष जानने की कोशिश की. इस मामले में आर्चाय बालकृष्ण से बात तो नहीं हो पाई, लेकिन पतंजलि योगपीठ और स्वामी रामदेव के प्रवक्ता एसके तिजारावाला का कहना है कि, 'हम लोग हिमालय एवं पर्यावरण के लिए ही कार्य कर रहे हैं. फिलहाल, ये जो भी मामला है. इसमें जो भी सही होगा, आगे वही किया जाएगा. आचार्य बालकृष्ण भी वहां पर जड़ी बूटी की खोज में ही गए हैं.'

कौन है भगवान धन्वंतरिः जिस भगवान धन्वंतरि की मूर्ति लगाई जा रही है, उन्हें भगवान विष्णु का 12वां अवतार माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि तमाम देवी देवताओं के चिकित्सक थे. उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक के रूप में हुई थी. आयुर्वेद से जुड़े तमाम चिकित्सा भगवान धन्वंतरि को अपना आराध्य भी मानते हैं. खुद आचार्य बालकृष्ण अपने जन्मदिन को जड़ी-बूटी दिवस के रूप में मनाते हैं.

Last Updated : September 5, 2023 at 5:00 PM IST
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