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20 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड, नेताओं-ब्यूरोक्रेसी ने किया बंटाधार

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Published : Aug 20, 2021, 5:59 PM IST

Updated : Aug 20, 2021, 6:39 PM IST

कोदा झंगोरा खाएंगे, सपनों का उत्तराखंड बनाएंगे के नारे से शुरू हुआ उत्तराखंड का सफर 20 सालों से अधिक का हो गया है. बावजूद इसके आज तक यहां के लोगों को विकास के नाम पर आश्वासन ही मिलते रहे हैं. नतीजा आज भी सपनों के उत्तराखंड की परिकल्पना अधूरी है. जानकारों का कहना है कि इसके लिए नेता और ब्यूरोक्रेसी जिम्मेदार है.

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20 सालों बाद भी नहीं बन पाया सपनो का उत्तराखंड

देहरादून: जिन मुद्दों के लिए राज्य आंदोलनकारियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया, उनकी शहादत के दो दशक बाद भी ये मुद्दे जस के तस हैं. प्रदेश में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. पहाड़ों से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. बेरोजगारी का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. इतने साल बीतने के बाद भी जिस परिकल्पना के साथ एक अलग पहाड़ी राज्य बनाया गया था, वो परिकल्पना साकार नहीं हो पाई है. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही दो राजनीतिक दल ही सत्ता पर बारी-बारी से काबिज हुए. दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने तरीके से राज्य के विकास को गति दी, लेकिन जिस परिकल्पना और सपने के साथ पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी वह अभी तक पूरा नहीं हो पाया है.

लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी राज्य का गठन हुआ. इस अलग राज्य का गठन पर्वतीय क्षेत्रों के चहुमुंखी विकास और मुख्य रूप से युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किया गया था.

20 सालों बाद भी नहीं बन पाया सपनो का उत्तराखंड

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वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि रोजगार को ध्यान में रखकर एक अलग राज्य की मांग की गई थी. मगर वर्तमान हालात इस बात को बयां कर रहे हैं कि नेता उस बात को भूल चुके हैं. हालांकि, यह सच है कि सरकारी सेक्टर में नौकरियों सीमित हैं, लेकिन सरकारी नौकरी से ही नहीं बल्कि स्वरोजगार के जरिए भी युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है. मगर उस दिशा में कुछ खास काम नहीं किया गया. इससे उलट एक अलग परंपरा शुरू हो गई जिसके अनुसार सभी नेताओं का ध्यान खनन समेत अन्य चीजों में देखा गया. जिस वजह से राज्य गठन के बाद बार-बार आंदोलन होते रहे.

शहीद स्थल पर पहुंचकर नमन करना सिर्फ दिखावा: वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा कहते हैं जिन सपनों को लेकर उत्तराखंड बनाया गया था वो आज भी अधूरे हैं. ये कब तक पूरे होंगे इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है. वह कब तक पूरे होंगे यह कोई नहीं कह सकता. वे कहते हैं जब भी विधानसभा चुनाव नजदीक आते हैं, उस दौरान चुनाव घोषणापत्र में पार्टियां लोक-लुभावने वादे करती हैं, लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद ये वादे हवा हो जाते हैं. उन्होंने कहा ये ही नेता दल बल के साथ शहीद स्थल पर पहुंचकर नमन करते हैं, लेकिन यह नमन सिर्फ एक दिखावा होता है. नेता इससे सिर्फ राज्य हितैषी होने का संदेश देना चाहते हैं. उन्होंने कहा राज्य के आंदोलकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि उनके सपनों का उत्तराखंड ही होगा, जिस दिशा में अभी बहुत काम किये जाने की जरूरत है.

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आंदोलनकारियों का सपना अधूरा: राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती का भी कुछ ऐसा ही मत है. वे कहते हैं जिस परिकल्पना को लेकर पृथक उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए शहादत दी गई थी उस परिकल्पना के अनुरूप अभी तक कोई काम नहीं हो पाया है. यही नहीं, अभी तक उत्तराखंड राज्य की स्थाई राजस्थानी तक नहीं बनाई जा सकी है. राज्य के कुछ नेता और ब्यूरोक्रेसी ने मिलकर प्रदेश का बंटाधार कर दिया है. राज्य के युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. न ही वे स्वरोजगार कर पा रहे हैं.

राज्य गठन के लिए 42 लोगों ने दी शहादत: प्रदीप कुकरेती ने बताया राज्य गठन के लिए 42 लोगों ने शहादत दी थी. उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला है. प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां केवल अपना संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई हैं. जिनकी शहादत की वजह से राज्य की स्थापना हुई उनके लिए इन दोनों दलों ने कभी कुछ नहीं किया. मुजफ्फरनगर कांड को करीब 27 साल से अधिक का समय बीत गया है, लेकिन उसके शहीदों को न्याय नहीं मिला है.

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शहीद स्थल का निर्माण भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल: वहीं, इस बारे में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन चौहान बताते हैं कि भाजपा ने राज्य आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड बनाने का काम किया है. उनकी सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया है. यही नहीं, भाजपा ने सिर्फ उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से पृथक नहीं किया बल्कि राज्य को सजाने, संवारने और विकास के पथ पर आगे ले जाने का भी काम किया है. वे कहते हैं प्रगति क्षेत्रों में होने वाले विकास कार्यों में समय लगेगा. उन्होंने कहा शहीद स्थल का निर्माण भी भाजपा करेगी, क्योंकि ये भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल है.

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कांग्रेस ने राज्य आंदोलनकारियों की इच्छाओं को किया पूरा: कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता डॉ. प्रतिमा सिंह इस बारे में कहती हैं कि पहाड़ी राज्य बनाने में राज्य आंदोलनकारियों का एक अहम योगदान रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए जब-जब कांग्रेस सत्ता में रही, तब-तब राज्य आंदोलनकारियों की हर मांगों को पूरा करने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा आगामी 2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में काबिज होगी, जिसके बाद राज्य आंदोलनकारियों की समस्याओं का समाधान प्रमुखता से किया जाएगा. डॉ. प्रतिमा सिंह ने बताया कि देहरादून स्थित शहीद स्थल की स्थिति पहले काफी दयनीय थी, जिसे कांग्रेस सरकार ने ही ठीक करवाया है. जब से भाजपा सरकार आयी है तब से राज्य आंदोलनकारियों के लिए कुछ भी नहीं किया गया. उन्होंने कहा कांग्रेस आगे भी आंदोलनकारियों की इच्छाओं को पूरा करते हुए सपनों के उत्तराखंड की परिकल्पना को साकार करेगी.

राज्य गठन की परिकल्पना को आगे लेकर बढ़ेगी आप: प्रदेश की नई नवेली पार्टी आप भी इस मुद्दे पर मुखर है. आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल ने कहा 20 साल पहले लोगों ने इस पर्वतीय क्षेत्र के विकास और निर्माण के लिए एक अलग राज्य बनाने का आंदोलन किया था. ऐसे में आम आदमी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में आंदोलनकारियों के मुद्दे को लेकर ही आगे बढ़ेगी.

Last Updated :Aug 20, 2021, 6:39 PM IST
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