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बीजेपी ने यूपी चुनाव में दिग्गज नेताओं से बनाई दूरी, कभी बोलती थी इनकी तूती, देखें लिस्ट

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Published : Feb 11, 2022, 8:07 PM IST

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बीजेपी के दिग्गज नेता

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा ने अपने कई पुराने नेताओं से दूरी बनाई है. इनमें उमा भारती से लेकर विनय कटियार और ह्रदय नारायण दीक्षित का नाम भी शामिल है. ये सभी अपने समय में भाजपा के फायरब्रांड नेता की श्रेणी में गिने जाते रहे हैं.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 इस बार का महासंग्राम में तब्दील हो गया है। बीजेपी और सपा गठबंधन एक दूसरे पर ब्रह्मास्त्र समेत सभी तीर छोड़ रहे हैं। हर पार्टी नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी ने इस बार ऐसे नेताओं को चुनाव मैदान से दूर कर दिया है जो कभी भाजपा के ब्रांड एंबेसडर थे. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव तक तो वो चेहरे दिखते रहे, लेकिन उसके बाद 2014, 2017, 2019 व अब 2022 के चुनाव में किनारे लगा दिए गए हैं। कई दशक से चुनावों में अपने बयानों से सियासत गर्मा देने वाले ये नेता इस बार चुनावी घमासान से दूर हैं। ऐसे ही कुछ दिग्गज नेताओं पर डालते हैं नजर।


उमा भारती
उत्तर प्रदेश 2012 का विधानसभा चुनाव भाजपा की कद्दावर नेता उमा भारती के तत्वावधान में लड़ा गया था। रैलियों में उमा की दहाड़ से विपक्षी दलों में खलबली मच जाती थी। हालांकि, इस चुनाव में पार्टी कुछ खास कमाल नही दिखा पाई थी। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उमा पर पार्टी ने भरोसा जताया व स्टार प्रचारक बनाकर फिर से मैदान में उतारा, लेकिन 2019 के लोकसभा और फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने लिफ्ट नहीं दी और आज चुनावी घमासान से उमा गायब हैं।

विनय कटियार
यूपी 2012 का विधानसभा चुनाव राम मंदिर आंदोलन के अहम किरदार व फायर ब्रांड नेता विनय कटियार की सक्रियता का आखिरी चुनाव था। 2017 के चुनाव में स्टार प्रचारक लिस्ट से नाम गयाब हुआ और 2022 के चुनाव में चर्चा तक से वह गायब हो गए. विनय कटियार अयोध्या में ही रह कर चुनाव में नजर गड़ाए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने कटियार को 2017 के चुनाव में ही मुख्य किरदार से किनारे लगा दिया था, लेकिन गाहे बगाहे अपने बयानों से वे चर्चा में बने रहते थे। लेकिन, 2022 के चुनाव में योगी और मोदी के नाम और उनके भाषणों के आगे किसी अन्य के बयान की चर्चा न ही खबरों में है और न ही पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच।


वरुण गांधी
वरुण गांधी स्टार प्रचारक की लिस्ट से तो 2017 के विधान सभा चुनाव में ही बाहर हो चुके थे। इस बार के चुनाव में भी पार्टी पूंछ नहीं रही है। वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं. राज्य की सुल्तानपुर सीट से भी वो सांसद रहें हैं. ऐसे में यूपी से उनका नाता पुराना है। कई चुनावों में खासतौर पर 2012 के विधानसभा चुनाव व 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी रैलियों में भीड़ का सैलाब उमड़ता था। लेकिन, आज वो चुनाव के महासंग्राम से दूर गर्त में हैं। वैसे इसे क्रिया की प्रतिक्रिया भी कह सकते हैं क्योंकि पिछले 2 सालों में वरुण ने अपने तीखें बाणों से बीजेपी का सीना जो छलनी किया है। किसानों के मुद्दे पर अपनी ही सरकार को घेरने में उन्होंने तो विपक्ष को भी कोषों दूर कर दिया। लखीमपुर कांड में तो उन्होंने पूर्ण रूप से विपक्ष की भूमिका निभा दी थी। फिलहाल चुनाव के दौरान वरुण अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों से भी दूर हैं।



ह्रदय नारायण दीक्षित
यूपी विधान सभा चुनावी समर से मौजूदा समय के यूपी विधानसभा अध्यक्ष ही गायब हैं। भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। वे उन्नाव जिले की भगवंतनगर सीट से विधायक थे। ह्रदय नारायण दीक्षित लेखक, पत्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल नेता भी हैं। निर्दलीय, जनता दल व सपा से विधायक चुने जाने वाले ह्रदय नारायण 6 साल विधान परिषद में दल के नेता रहे हैं। पार्टी में उनका काफी सम्मान है. लेकिन इस बार के चुनाव में उन्हें सम्मान तो मिला, लेकिन टिकट नहीं. लिहाज ये माना जा सकता है कि पार्टी से किनारे लगाए जाने वाले नेताओं की सूची में हृदय नारायण का नाम भी जुड़ चुका है।

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विशेषज्ञ की राय
राजनीतिक विशेषज्ञ विजय उपाध्याय कहते हैं कि ये चारों नेता अलग-अलग मिजाज के हैं। उमा भारती खुद को राजनीति से अलग करने का कई बार ऐलान करने के बाद फिर से सक्रिय होने के लिए कहती रहती हैं। इसको लेकर पार्टी में संशय बना रहता है कि उनका उपयोग करें कि नहीं करें. विनय कटियार कभी भी राम मंदिर व हिंदुत्व के मुद्दे से बाहर निकल नहीं पाए हैं. वो लोकतंत्र के लिए जरूरी अन्य मुद्दों पर बात करते ही नहीं हैं तो वो नई राजनीति के तहत फिट नहीं बैठते हैं। वरुण गांधी तो पार्टी के खिलाफ खड़े हैं. बीजेपी ऐसे नेता पर क्यों भरोसा करे. वहीं, हृदय नारायण दीक्षित का कद तब बढ़ा जब वो यूपी विधानसभा अध्यक्ष बने ऐसे में वो बीजेपी के लिए इतने जरूरी नहीं हैं। ऐसे में बीजेपी को नहीं लगता है कि ऐसे नेताओं की जरूरत इस चुनाव में है और वो ये भी जानते हैं कि इनके न होने से पार्टी को कोई नुकसान भी नहीं होने वाला है।

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