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यहां शादी गुड्डे-गुड़िया का ही खेल है, ये कैसा दस्तूर... दुधमुंही बच्ची का भी रिश्ता पक्का, ETV Bharat की ग्राउंड रिपोर्ट

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Published : Jun 24, 2023, 8:21 PM IST

Updated : Jun 25, 2023, 1:17 PM IST

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बांछड़ा समाज में शादी गुड्डे गुड़िया का खेल

रतलाम-मंदसौर हाईवे पर बसे बांछड़ा समाज में कोख में ही लड़कियों की शादी तय हो जाती है, यहां शादी सिर्फ गुड्डे-गुड़िया का खेल है.पूरी कहानी जानने के लिए देखें ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट-

यहां शादी गुड्डे गुड़िया का खेल

रतलाम/मंदसौर। मुमकिन है कि ये अपने जिस्म के हिस्से को फिर जिस्म के धंधे से बचा लेने की कोशिश हो, वरना क्यों है इस समाज में ऐसा चलन कि बेटी के मां की कोख में आने के साथ उसका नाम बाद में तय होता है, पहले तय होता है रिश्ता. ये तय होता है कि वो किसके साथ ब्याही जाएगी, जिनका मां बनना भी मजबूरी का हिस्सा हो, जिनका जीवन बस एक रात का किस्सा हो. जो हर शाम लगाती हैं अपने जिस्म की बोली. उस समाज की है ये अजीब रिवायत कि जिसमें न औरत के हिस्से मां बनने की मर्जी है, न कोख में पल रही मासूम को मिल पाया है कोई अधिकार. दुधमुंही बच्ची के साथ ही जोड़ दिया जाता है कोई नाम और वो अपने ही घर में अमानत हो जाती है.

रतलाम-मंदसौर के हाईवे से लगे माननखेड़ा गांव में शाम ढले लिपिस्टिक लगाए घर के दालान में बैठी लड़कियों से नजर हटाकर मैंने उन बच्चियों पर निगाह की थी. बादलों के पीछे भागती लड़कियां, जो नहीं जानती ये दौड़ एक खूंटे पर खत्म हो जानी है. इस गांव में मां के पेट में बच्चा आने से लेकर उसके दुनिया में पहला कदम रखने तक, अपना अलग संविधान लिए बैठा है ये समाज और संवैधानिक मूल्य तार-तार हो रहे हैं. एक ऐसा समाज जहां शादी गुड्डे-गुड़िया का ही खेल है. देखें रतलाम-मंदसौर में जिस्म की मंडी कहे जाने वाले इलाके से ईटीवी भारत की संवाददाता शिफाली पांडे की ग्राउंड रिपोर्ट.

बाली उम्र में बच्चियों का रिश्ता तय: रतलाम-मंदसौर के हाईवे किनारे बसे बांछड़ा समाज के डेरों के नाम से मशहूर इन गांवों में खड़े आलीशान मकान ही हैरान कर देने की वजह नहीं है, एमपी के दूसरे गांवों से तुलना कीजिए तो और भी बहुत कुछ अलग है यहां. हाईवे किनारे रुक जाने वाली लक्जरी गाड़ियां और उस तक पहुंचती लड़कियों की ब्लर तस्वीरों से आगे दौड़ती वो बच्चियां भी तो हैं. 7 महीने 8 महीने की मासूम बच्चियां और कई तो ऐसी जो कोख में आई उसी दिन तय कर दिया गया कि ये किसके साथ ब्याही जाएंगी.

हालांकि ब्याह इनके 16 बरस के हो जाने के बाद होता है, लेकिन पैदा होने के साथ ही चस्पा कर दिया जाता है इनके नाम के साथ एक और नाम जो इनकी पहचान बन जाता है. जैसे संतोषी ने बताया "वो खेल रही परी, अब अंशू की है." एक औरत के मां बनने से लेकर, एक बेटी को पैदा करने तक और संविधान में मां को मिले सारे अधिकार और जन्म के साथ बतौर एक नागरिक या कहें कि बेटी को मिलने वाले सारे हक यहां दरकिनार हैं. इस समाज का अपना कानून है, अपना कायदा है.

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बेटी से मर्जी क्या और क्यों पूछना: रतलाम के आखिरी छोर पर बसे माननखेड़ा गांव में 1800 के करीब घर हैं, इनमें बांछड़ा जाति के डेरे भी हैं. हाईवे से लगे सारे मकान इन्हीं के हैं. यहीं मिली सरोज (परिवर्तित नाम) की आंखों के आगे कितनी ही लड़कियां इस जिस्म की मंडी में आईं और गई हैं. सरोज कहती हैं, "हम तो यही चाहते हैं कि ब्याह के ये लड़कियां एक की होकर रह जाएं, जितनी पर्दे वाली दिख रही हैं न आपको ये सब ब्याहता हैं. बाकी हमारे समाज में तो सारी बच्चियों का भी रिश्ता हम पहले ही तय कर देते हैं."

ये सवाल करने पर कि कितनी उम्र से तय हो जाते हैं रिश्ते...? इस पर सरोज कहती हैं कि "कोख में ही हो जाता है कई बार, बेटी हुई तो.. ये कहकर पक्की कर लेते हैं." मैदान में खेल रही 3, 5 और 7 बरस की छोटी-छोटी लड़कियां शादी का ठीक-ठीक मतलब भी नहीं जानती, लेकिन इतना जानती हैं कि उनकी शादी किस लड़के से पक्की हो चुकी है. सरोज संभलकर कहती हैं कि "अभी तो पढ़ा लिखा रहे हैं, स्कूल जाती हैं. लेकिन जब 17 में लग जाएंगी, शादी तब ही करेंगे."

पैरों में बंधी बेड़ियों से अंजान हैं चिड़ियाएं: मेरा सवाल था कि शादी इन्हें करना भी है या नहीं, इनकी मर्जी कहां है आपके फैसले में? इसपर सरोज मुस्कुराकर कहती हैं कि "मर्जी क्या पूछना, जब तय कर दिया तो मतलब कर दिया. अगर बड़े होने पर पसंद नहीं आया तब देखेंगे." लेकिन इन बच्चियों के भी तो अधिकार हैं, इस सवाल पर सरोज उलटा सवाल करती हैं "हम बुरा सोचेंगे क्या बच्चियों का?" और फिर एक-एक करके गिनाने लगती हैं कि सामने खेल रही किस लड़की का रिश्ता किस लड़के से तय हो चुका है. अनन्या, जीविका, मानवी, राधिका, चिड़िया सी यहां-वहां फुदकती बेटियां उन अनजान बेड़ी से बेखबर दौड़ रही है, जो इनके पैरों में बांध दी गई हैं.

मंदसौर का गुर्जरबर्डिया: मंदसौर जिले में गुर्जरबर्डिया गांव का नाम पूछने पर लोग हैरत से देखते हैं, ऐसा नहीं है कि पूरा गांव बांछड़ा जाति का हो लेकिन गुर्जरबर्डिया में डेरे हैं इनके. बाहर से आने वाली गाड़ियां और लोगों को इसी निगाह से देखा जाता है कि ये डेरे के लिए आए हैं. हाईवे पर लक्जरी गाड़ियां अगर ठहरती हैं तो केवल बांछड़ा जाति के इन डेरों के आस-पास.

मेरी निगाह कार देखकर दौड़ जाने वाली लड़कियों पर ही नहीं जाती, बल्कि उन लड़कों को भी देखती है जिनमें से कुछ उनके भाई हैं. लड़कियों के भाईयों की रोजी-रोटी भी इन बहनों की बदौलत ही चलती है, जिस्म के धंधे में आने के बाद जो कमाई होती है. इसी कमाई के जरिए कई जगह बांछड़ा समाज के परिवारों ने अब जमीन जायदाद लेना शुरू कर दिया है, अब हर घर में 3 से 5 एकड़ जमीन है. बेटियों के जिस्म पर खड़ी हो रही हैं ये जमीन जायदाद, गुजर का जरिया परिवार को मिल गया है. लेकिन कई परिवारों में ये स्थिति है कि लालच खत्म ही नहीं होता.

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खुद बच्ची है और बेमर्जी मां बन चुकी है: बांछड़ा समाज के डेरे में मिली देविका (परिवर्तित नाम) कैमरा देखते ही भाग जाती हैं. मेरे बहुत मनाने पर वो बात करने तैयार तो होती हैं, लेकिन शर्त रखती हैं कि तस्वीर नहीं लोगी. देविका की उम्र 17 साल है, शाम ढले जब पूरे गांव की बहुएं-बेटियां रसोई का रुख करती हैं, तब देविका सज धजकर बाहर बैठ जाती हैं अब औखिर ये ही ग्राहकों के निकलने का वक्त होता है ना.

देविका बताती हैं कि "मेरी कोख में बच्चा आया था तो गिरवा दिया गया, मैं मां बन जाती तो धंधा कैसे चलता." उसकी आंखे पत्थर हो जाती है ये कहते हुए, जब सवाल पूछा जाता है कि ये सब छोड़ क्यों नहीं देती, ये तुम्हारे साथ दुबारा भी हो सकता है? देविका कहती हैं "घर भर का खर्चा मैं ही उठाती हूं, मां बीमार रहती हैं और भाई शराबी है. मैं ये काम नहीं करूंगी तो घर कैसे चलेगा?."

बेटियों के जिस्म बेचकर खड़े किए जा रहे आलीशान घर: मैं पूछती हूं कि पढ़ लिखकर नौकरी कर सकती थी, इस सवाल को देविका अपनी मुस्कान से नकार देती हैं. कहती हैं कि "हमारे यहां नौकरी नहीं करती लड़कियां, यही करती हैं. जब कोई मिल जाएगा घर बिठाने वाला, तो शादी कर लूंगी." क्या तुम्हारा भी बचपन में रिश्ता तय हुआ था, इस सवाल पर देविका कहती हैं "हुआ था, लेकिन इस धंधे में आने के बाद कौन करता शादी." रतलाम के पिपलिया जोदा, डोंडर , परवलिया से आगे बढ़िए और मंदसौर के गुर्जरबर्डिया तक उजड़े दिखाई देते गांव में बसे आलीशान घर बांछड़ा जाति के डेरे की पहचान है. जन्नत से घर जो बेटियों के जिस्म बेचकर खड़े किए जा रहे हैं.

Last Updated :Jun 25, 2023, 1:17 PM IST
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