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बाबा महाकाल को गर्मी के मौसम में ठंडक पहुंचाने लगाई गए मिट्टी के 11 कलश, 2 माह तक जलहरियों से अर्पित की जाएगी जलधारा

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Published : Apr 16, 2022, 6:11 PM IST

mahakal temple ujjain
बाबा महाकाल को गर्मी में ठंड़क देने के लिए लगाईं जलहरी

रविवार 17 अप्रैल प्रतिपदा के दिन मंदिर के पंडित और पुजारी बाबा को सुबह 6 से शाम 5 बजे तक गलंतिका (जलहरी) से जल चढाएंगे. यह जलधारा अगले 2 महीने तक लगातार शिवलिंग के ऊपर प्रवाहित होती रहेगी.

उज्जैन। विश्व प्रसिद्द महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान् महाकाल को भी गर्मी नहीं लगे इसके लिए 11 जलहरियों से उन्हें जलधारा अर्पित की जाएगी. रविवार 17 अप्रैल प्रतिपदा के दिन मंदिर के पंडित और पुजारी बाबा को सुबह 6 से शाम 5 बजे तक गलंतिका (जलहरी) से जल चढाएंगे. यह जलधारा अगले 2 महीने तक लगातार शिवलिंग के ऊपर प्रवाहित होती रहेगी. भगवान महाकाल को जिन 11 जलहरी से जल अर्पित किया जाएगा उनके नाम 11 पवित्र नदियों के नाम पर होते हैं.

बाबा महाकाल को गर्मी में ठंड़क देने के लिए लगाईं जलहरी

क्या है जलहरी चढ़ाने की मान्यता: आपने शिवलिंग के ऊपर एक स्टैंड पर पानी से भरी जलहरी (मिट्टी से बनी मटकी) जरूर देखी होगी. माना जाता है कि जेष्ठ और वैशाख माह में जब गर्मी अपने चरम पर होती है तब शिवलिंग के ऊपर ये जलहरी जरूर लगाई जाती है. माना जाता है कि भगवान शिव अपने गले में विष धारण किए हुए हैं. इसलिए गर्मियों के मौसम में उन्हें ठंडक देने के लिए ये जलहरी रखीं जाती हैं. जिनसे बूंद-बूंद कर जल शिवलिंग पर गिरता रहे और भगवान को ठंडक मिलती रहे. मान्यता है कि भगवान महाकाल इससे तृप्त होकर राष्ट्र व प्रजा के कल्याण के लिए सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं

महाकाल मंदिर के गर्भगृह में लटकाई जाती हैं 11 मटकियां: गर्मी के दिनों में बाबा महाकाल को ठंडक पहुंचाने के लिए मंदिर के गर्भ गृह में 11 मटकिया लगाई जाती है. इनसे लगातार पानी की धार भगवान के ऊपर चढ़ती रहती है जिससे भगवान को ठंडक मिलती है. इन 11 गलन्तिकाओ के नाम भी 11 पवित्र नदियों के नाम पर होते है. देश के कई हिस्सों के साथ ही उज्जैन में भी तापमान 41.5 डिग्री से ऊपर पहुंच गया है. जिसके बाद मंदिर प्रबंधन ने गलंतिकाओं को लगाने का फैसला लिया है.

दो महीने तक रहती हैं जलहरियां: भगवान महाकाल को शीतलता प्रदान करने के लिए उनके भक्त इस तरह का जतन गर्मी के मौसम में करते हैं. इसी तरह तेज ठंड के दिनों में भगवान को गर्मजल से स्नान कराया जाने की परंपरा भी निभाई जाती है. शिवलिंग के ठीक ऊपर मिट्टी के 11 कलशों को 11 नदियों के नाम से बांधा जाता है. जबकि एक नियमित रूप से चढ़ा रहने वाला चांदी का कलश होता है. 11 कलशों को वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक करीब दो माह बंधें रहेंगे.

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