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संविधान सभा की बैठक में क्या था दिल्ली का योगदान, जानिए

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Published : Jan 25, 2022, 10:44 PM IST

दिल्ली मुख्य आयुक्त प्रांत की ओर से देशबंधु गुप्ता ने प्रतिनिधित्व किया था. देशबंधु गुप्ता अपने समय के बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बाल गंगाधर तिलक के करीबी थे और लाला लाजपत राय के साथ काम किया करते थे.

संविधान सभा में दिल्ली का योगदान
संविधान सभा में दिल्ली का योगदान

नई दिल्ली : देश 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. आज हम जिन कानून के नियम और संविधान का हवाला देते हैं. इन्हें बनाने को लेकर क्या प्रक्रिया और चुनौती रहीं और इसमें संविधान सभा के बनने में दिल्ली का क्या योगदान रहा. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने बात की राजनीति विशेषज्ञ से डॉ. सीमा दास से. उन्होंने बताया कि संविधान सभा के लिए सबसे पहले 1934 में मांग की गई थी.

डॉ. सीमा दास ने बताया कि संविधान सभा के लिए नौ दिसंबर 1946 में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन हॉल में बैठक हुई थी. इसे अब संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के नाम के जाना जाता है. शुरुआत के दिनों में 389 सदस्य हुआ करते थे, लेकिन देश के बंटवारे के बाद यानी 1947 के बाद यह संख्या घटकर 299 हो गई थी. इनमें से भी चार सदस्यों ने मुख्य आयुक्त प्रांतों का प्रधिनित्व किया था. उन दिनों दिल्ली मुख्य आयुक्त प्रांतों में हुआ करता था. इसीलिए संविधान सभा में एक सदस्य दिल्ली से भी थे.

संविधान सभा में दिल्ली का योगदान

दिल्ली मुख्य आयुक्त प्रांत की ओर से देशबंधु गुप्ता ने प्रतिनिधित्व किया था. देशबंधु गुप्ता अपने समय के बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बाल गंगाधर तिलक के करीबी थे और लाला लाजपत राय के साथ काम किया करते थे. देशबंधु गुप्ता वंदे मातरम पत्रिका के संपादक भी थे. संविधान सभा के लिए जो बैठक होती थी उसमें वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे. स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु गुप्ता ने संविधान सभा की बैठक में कई अहम मुद्दों को भी उठाया, जिनके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा.

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डॉ. सीमा दास ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु गुप्ता को तीन बातों के लिए जाना जाता है. देशबंधु गुप्ता का कहना था कि कॉन्स्टिीट्यूएंट असेंबली में दिल्ली का प्रतिनिधित्व ज्यादा हो क्योंकि बंटवारे के बाद दिल्ली में रिफ्यूजी के आने के बाद जनसंख्या काफी बढ़ गई है. इसे देखते हुए वह संसद में दिल्ली का रिप्रेजेंटेशन कि ज्यादा मांग कर रहे थे.

इसके अलावा स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु गुप्ता ने दिल्ली को असेंबली का दर्जा देने के लिए काफी बहस की, लेकिन वह बाद में फलीभूत हुई. तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि देशबंधु गुप्ता ने जो महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया वह आज के समय में भी काफी प्रासंगिक है. वह मुद्दा था फ्रीडम ऑफ प्रेस.

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देशबंधु गुप्ता का मानना था कि फ्रीडम ऑफ प्रेस होना बहुत जरूरी है क्योंकि अन्य कार्यों से यह काफी भिन्न है. इसके चलते उन्होंने प्रेस पर टैक्स नहीं रखने की वकालत की थी. इस संबंध में उन्होंने अमेरिका के एक प्रान्त का भी उदाहरण दिया था कि प्रेस की स्वतंत्रता कितनी जरूरी है. साथ ही कहा कि प्रेस जनता और सरकार के बीच एक ओपिनियन बनाने का काम करता है. इसके चलते वह फ्रीडम ऑफ प्रेस के बहुत बड़े समर्थक थे.


भारत का संविधान 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में पूरा किया गया और 26 नवंबर 1949 को देश का संविधान बनकर स्वीकार कर लिया गया. वहीं 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान अस्तित्व में लाया गया. मालूम हो कि डॉ. बीआर अंबेडकर संविधान सभा समिति के अध्यक्ष थे.

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