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26 January: राजपथ पर इस बार बलिदान की ऐतिहासिक झांकी का होगा प्रदर्शन

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Published : Jan 25, 2022, 6:57 PM IST

एक ओर राजपथ से पूरी दुनिया 26 जनवरी (26 January) को जहां भारतीय सेना की अदम्य साहस का विकराल रूप देखेगी, तो वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासियों के योगदान और शहीदों के बलिदान को भी नमन करेगी.

26 जनवरी विशेष
26 जनवरी विशेष

नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस परेड (republic day parade) के मौके पर राजपथ पर निकलने वाली गुजरात सरकार की झांकी में स्वतंत्रता आंदोलन (freedom movement) में आदिवासियों के योगदान और शहीदों के बलिदान को याद करते हुए श्रद्धांजलि दी गई है. जिन्होंने 7 मार्च 1922 को गुजरात के साबरकांठा जिले के भील गांव पाल और दढ़बाव में ब्रिटिश सिपाहियों द्वारा किये गए नरसंहार में अपना बलिदान दिया था. ये आदिवासी राजस्थान के मशहूर किसान नेता मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भील गांव पाल, दढ़वाव और चितरिया गांव के संगम के पास हेर नदी के किनारे राजस्व व्यवस्था और सामन्तों एवं रियासतों के कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे थे. इसके अलावा भव्य परेड में पहली बार राजपथ के दोनों तरफ देश के नामी गिरामी कलाकारों की चयनित कलाकृतियां एक विशाल और लम्बे केनवास पर प्रदर्शित होंगी.

उत्तर गुजरात के साबरकांठा जिले में हुई इस शहादत के बारे में कोई नहीं जानता, जहां लगभग 1200 लोग मारे गए थे. कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उनके घर भी जलाकर तहस-नहस कर दिए गए थे. यह नरसंहार पंजाब के अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को हुए हत्याकांड से भी काफी बड़ा था. जलियां वाला बाग में जनरल ड़ायर की अगुवाई में ब्रिटिश सैनिकों ने करीब 600 निहत्थे और बेक़सूर लोगों को मार डाला था. इसी तरह गुजरात में भी 1922 में एक ऐसा ही भीषण नरसंहार हुआ था, जो कि जलियांवाला बाग से बड़ा था, लेकिन उसका विवरण कई वर्षों तक गुमनामी में रहा.

आदिवासियों के योगदान और शहीदों के बलिदान को नमन
आदिवासियों के योगदान और शहीदों के बलिदान को नमन

गुजरात सूचना केन्द्र (Gujarat Information Center) के जॉइंट डायरेक्टर नीलेश शुक्ला ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए इस अनकही और भूली-बिसरी कहानी को दुनिया के सामने लाए थे. इतिहास के इस गौरवपूर्ण अध्याय से दुनिया अब तक अपरिचित थी, जिसे प्रधानमंत्री ने फिर से ताजा किया. गुजरात के पाल चितरिया गांव में बना 'शहीद स्मृति वन' और 'शहीद स्मारक' इस भीषण घटना के गवाह रूप में सबके सामने हैं.

राजस्व व्यवस्था और सामन्तों के कानून के विरोध में कर रहे थे आंदोलन
राजस्व व्यवस्था और सामन्तों के कानून के विरोध में कर रहे थे आंदोलन

यह दुर्घटना सात मार्च, 1922 को हुई जब ब्रिटिश अधिकारी मेजर एच.जी. के नेतृत्व में अर्धसैनिक बल मेवाड़ भील कोर (एमबीसी) के ब्रिटिश सैनिकों ने गुजरात के पाल-दढ़वाव गांवों को घेर लिया. वहां रहने वाले लोगों पर गोलियां चलाईं और घरों में आग लगा दी, जिसमें लगभग 1200 लोग मारे गए. 640 घर जलकर राख हो गए. किसान नेता मोतीलाल तेजावत को भी दो गोलियां लगी थी, लेकिन स्थानीय लोग उन्हें बचाकर ले जाने में सफल हुए.

साबरकांठा जिले में हुई थी शहादत
साबरकांठा जिले में हुई थी शहादत

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600 निहत्थे और बेक़सूर लोगों को मार डाला था
600 निहत्थे और बेक़सूर लोगों को मार डाला था

राजस्थान का मानगढ़ हत्याकांड है सबसे बड़ा और पुराना

राजस्थान और गुजरात की सीमाओं पर स्थित राजस्थान के बांसवाड़ा ज़िले के मानगढ़ धाम पर भी ब्रिटिश अधिकारी कर्नल शटन ने जलियावाला बाग हत्याकांड से भी बड़ा नरसंहार किया था, जिसमें करीब 1500 आदिवासी शहीद हुए थे. दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले की गुजरात से सटी सीमा पर स्थित मानगढ में आदिवासियों के गुरु और मसीहा गोविन्द गुरु के नेतृत्व में हो रहे एक बड़े समागम के दौरान उक्त नरसंहार 17 नवम्बर 2013 को किया गया था. ब्रिटिश सरकार की मेवाड़ भील कोर के सिपाही गधों, खच्चरों, घोड़ों आदि पर बारूद गोला बंदूकें आदि लादकर मानगढ की दुर्गम पहाड़ी पर चढ़े थे.

कलाकारों की चयनित कलाकृतियां
कलाकारों की चयनित कलाकृतियां

राजपथ के दोनों तरफ लगेगी देश के नामी गरामी कलाकारों की विशाल केनवास

पहली बार राजपथ के दोनों तरफ देश के नामी गरामी कलाकारों की चयनित कलाकृतियां एक विशाल और लम्बे केनवास पर प्रदर्शित होंगी. इस कला कुंभ में देशभर के विभिन्न राज्यों से करीब 300 चित्रकार, कई विश्वविद्यालयों के कलाकारों आदि ने एक साथ मिलकर 1450 मीटर लम्बे केनवास पर अपनी कला उकेरी हैं. इसमें राजस्थान के नाथद्वारा की विश्व प्रसिद्ध पिछवाइयों, मांड़ना आदि के साथ ही मेवाड़ की फड़ शैली मे बनी पेन्टिंग्स भी शामिल होंगी.

केनवास पर उकेरी कला
केनवास पर उकेरी कला

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री करेंगे अवलोकन

भीलवाड़ा के प्रसिद्ध फड़ चित्रकार कल्याण जोशी ने बताया कि इन पेटिंग्स का राष्ट्रपति रामनाथ कोविद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (President and Prime Minister) अवलोकन करेंगे. इसके बाद यह विशाल पेन्टिंग आम जनता के लिए राजपथ पर उपलब्ध रहेगी. गणतंत्र दिवस पर इतनी लम्बी पेन्टिंग संभवत एक विश्व रिकार्ड बनायेंगी और इसे देश विदेश के कई कला प्रेमी भी देखेंगे. आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देशभर में चल रहे अमृत महोत्सव के तहत यह प्रदर्शन अनूठा होगा. आधुनिक चित्रकला के साथ पारम्परिक कला के मिश्रण का यह नवीन प्रयोग पहली बार एक साथ देखने को मिलेगा. सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र होगा.

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री करेंगे अवलोकन
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री करेंगे अवलोकन

120 फीट लम्बे केनवास पर फड़ कला के उकेरें जाएंगे चित्र

इस कला कुम्भ में भीलवाड़ा के प्रसिद्ध फड़ चित्रकार कल्याण जोशी के नेतृत्व में कलाकारों ने 120 फीट लम्बे केनवास (120 feet long canvas) पर फड़ कला के चित्र उकेरे हैं. इसमें भीलवाड़ा (शाहपुरा) के महान स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर केसरी सिंह, उनके भाई ठाकुर जोरावर सिंह के साथ क्रान्तिकारी विजय सिंह पथिक (बिजौलियां) की जीवनी कोचित्रात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है. चित्र में ठाकुर केसरी सिंह द्वाारा लिखे गये 'चेतावनी रा चूंगटिया' और ठाकुर जोरदार सिंह द्वारा अंग्रेजों पर बम फेंकने के दृश्य को प्रमुखता से चित्रित किया गया है.

120 फीट लम्बे केनवास पर फड़ कला का प्रदर्शन
120 फीट लम्बे केनवास पर फड़ कला का प्रदर्शन

उन्होंने बताया कि विश्वप्रसिद्ध फड़ शैली की इन पेन्टिंग्स में भीलवाड़ा के चित्रकार ओम प्रकाश सालवी, छीतर जोशी, राहुल पाठक, महेश विश्नोई, राहुल सिंह और राम प्रसाद स्वामी का उल्लेखनीय योगदान रहा है.

केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के साथ राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय तथा चंडीगढ़ के चित्कारा विश्वविद्यालय द्वारा इस अमृत महोत्सव में भारत की सभी चित्रकला शैलियों, जिसमें आधुनिक चित्रकला एवं समसामयिक कला और पारम्परिक कलाओं को शामिल कर फड, कलमकारी, मांडणा, पिछवाई, वरली, कांगडा शैली आदि के ख्यातनाम चित्रकारों द्वारा भारतीय चित्रकला के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों को अनूठे ढंग से श्रद्धांजलि दी जाएगी.

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