नई दिल्ली: संपूर्ण भारत 73वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. 73 साल पहले गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी को भारत का संविधान लागू हुआ और उसी के बाद से हर कोई उस संविधान के दायरे में आ गया. गणतंत्र दिवस का उत्साह हर भारतीय में देखने को मिलता है, लेकिन अब गणतंत्र दिवस को मनाने के कुछ तरीके बदल गए हैं. शुरुआती दौर में गणतंत्र दिवस की परेड को लेकर जिस तरीके का उत्साह, जिस तरीके का जुनून लोगों में दिखता था, वह अब नहीं दिखता.
ईटीवी भारत ने उन बुजुर्गों से बातचीत की, जिन्होंने गणतंत्र दिवस को बड़े ही नजदीक से देखी है. उन्होंने बताया कि गणतंत्र दिवस की परेड पहले काफी लंबी दूरी तक होती थी, जिसे अब कम कर दिया गया है. उद्योग भवन में काम कर चुके 80 साल के मनमोहन कुमार शर्मा का कहना है कि वह अपने ऑफिस से गणतंत्र दिवस की परेड को देखते थे.
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ऑफिस से लौटते वक्त रुक-कर के उस परेड की रिहर्सल को देखते थे. शरीर में एक नई ऊर्जा उत्पन्न कर देता था, लेकिन अब बदलाव का युग है. ज्यादातर लोग टीवी और मोबाइल पर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों को देखते हैं. खासतौर पर बच्चों के हाथों में मोबाइल आने के बाद तो इन कार्यक्रमों पर भी बच्चों की रुचि कम हो गई. इसका जिम्मेदार उन्होंने बच्चों के साथ-साथ माता-पिता को भी मानते हैं.
वहीं, हरपाल राणा ने बताया कि पहले गणतंत्र दिवस की परेड को देखने का कोई भी चार्ज नहीं लगता था. निशुल्क गणतंत्र दिवस की परेड को देखा जा सकता था. कुछ साल बीतने के बाद गणतंत्र दिवस की परेड देखने का टिकट लगा दिया गया. अब तो परिवर्तन बहुत ज्यादा हो चुका है. लोगों ने बताया कि आधुनिक भारत में गणतंत्र दिवस मनाने के तरीके जरूर बदले हैं, लेकिन देशभक्ति की भावनाओं में कोई कमी नहीं आई है, ना ही कभी आएगी.