ETV Bharat / city

राष्ट्रकवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का बिलासपुर से क्यों है बड़ा नाता?, आप भी जानें...

author img

By

Published : Oct 12, 2021, 7:23 PM IST

Updated : Oct 13, 2021, 11:04 PM IST

Rabindranath Tagore relation with Bilaspur
बिलासपुर से रवींद्रनाथ टैगोर का नाता

राष्ट्रकवि गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर (National Poet Gurudev Rabindra Nath Tagore) का बिलासपुर से कुछ समय का ही सही, लेकिन उनका नाता यहां से जुड़ा हुआ है. सन 1918 में कोलकाता से बिलासपुर क्षय रोग से जूझ रहीं अपनी पत्नी के इलाज के लिए आए थे. उन्होंने यहीं से अपनी कविता 'फांकी' की शुरुआत की थी. तो यहां आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन लम्हों के बारे में, जब गुरूदेव ने कुछ देर के लिए अपना अनमोल समय बिलासपुर की धरती को समर्पित किया था और वह आज भी लोगों की जेहन में एक अविस्मरणीय याद (Unforgettable Memory) के रूप में कैद है. आप भी जानिए पूरी कहानी...

बिलासपुरः राष्ट्रकवि गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर (National Poet Gurudev Rabindra Nath Tagore) का बिलासपुर से कुछ समय का ही सही, लेकिन उनका नाता यहां से जुड़ा हुआ है. वे सन 1918 में कोलकाता से बिलासपुर आए थे. वे अपने पत्नी का इलाज (wife Treatment) कराने पेंड्रा रोड जा रहे थे लेकिन उस समय पेंड्रा रोड के लिए गाड़ी नहीं होने की वजह से उन्होंने लगभग 8 घंटे बिलासपुर स्टेशन (Bilaspur Station) पर बिताए और यहीं से अपनी कविता (Poem) 'फांकी' की शुरुआत की थी. जिसे उन्होने पेंड्रा सेनेटोरियम हॉस्पिटल में रहकर पूरा किया. उसकी कुछ यादें बिलासपुर स्टेशन में रेल प्रशासन (Railway Administration At Bilaspur Station) ने आज भी संजोकर रखा हुआ है.

बिलासपुर से रवींद्रनाथ टैगोर का नाता

राष्ट्र कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर वर्ष 1918 में कोलकाता से बिलासपुर आए थे. बताया जाता है कि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) आधी रात को किसी ट्रेन से बिलासपुर स्टेशन पहुंचे और उन्हें अपनी बीमार पत्नी का इलाज कराने के लिए पेंड्रा रोड के सैनिटोरियम हॉस्पिटल जाना था. पेंड्रा रोड जाने के लिए उस समय दिन में 10 बजे के लगभग ट्रेन हुआ करती थी. ट्रेन के इंतजार में उन्होंने 8 घंटे बिलासपुर स्टेशन के प्रतीक्षालय (Bilaspur Station Waiting Room) में बिताया. उनकी पत्नी बीनू जो कि पिछले डेढ़ साल से टीबी रोग से ग्रसित थीं और उनका इलाज कलकत्ता में कराया गया था, लेकिन उन्हें आराम नहीं मिला था. तो किसी ने उन्हें बताया कि वे बिलासपुर के पेंड्रा रोड (Pendra Road) के सैनिटोरियम (Sanatorium) जाएं. क्योंकि उस समय पेंड्रा की आबो-हवा ऐसी थी कि टीबी के बीमारी वह ठीक हो जाती है. इसी लिए वो वहां जा रहे थे. बिलासपुर स्टेशन के विश्राम गृह में रुके हुए थे. वे कवि थे, इसीलिए उन्होंने इस समय का पूरी तरह से सदुपयोग किया और 'फांकी' कविता की रचना की शुरुआत यहीं से की

.
कांकेरः यहां फिर शुरू हुई नवरात्र पर देवी-देवताओं के जतरा की परंपरा
रेलवे की बोर्ड पर अंकित हैं कविता की पंक्तियां

गुरुदेव की कविता फांकी को बिलासपुर रेल प्रशासन ने बड़े से बोर्ड में अंकित कर रखा है. बांग्ला भाषा (Bangla Language) के साथ ही इस कविता को हिंदी और इंग्लिश (Hindi and English) में भी संजोया गया है. साथ ही जिस प्रतीक्षालय में वे समय बिताए थे, वहां शिलालेख भी लगाया गया है. गुरुदेव की पत्नी बीनू के इलाज के लिए पेंड्रा के सैनिटोरियम जाने के लिए कोलकाता से निकले थे. उनकी पत्नी बीनू इस बात से काफी खुश थीं कि वह पहली बार पति के साथ बाहर सफर कर रही हैं. गुरुदेव और उनकी पत्नी ने सैनिटोरियम पेंड्रा में रहकर इलाज कराया और स्वस्थ होकर कुछ समय बाद कोलकाता के लिए रवाना हो गए. गुरुदेव ने कविता 'फांकी' को पेंड्रा के सैनिटोरियम हॉस्पिटल में रहते हुए पूरा किया था. 183 लाइन की कविता को बिलासपुर रेल मंडल (Bilaspur Railway Division) ने 2 नंबर गेट पर अंकित किया है. तब यही एक द्वार था, जहां से आना-जाना होता था.

Last Updated :Oct 13, 2021, 11:04 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.