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झीरम नक्सली हमला  : 11 साल बाद भी मंजर याद कर कांप उठती है रूह, चश्मदीद ने बयां किया दर्द - JHIRAM NAXAL ATTACK STORY

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 16, 2024, 10:55 PM IST

Updated : May 17, 2024, 4:09 PM IST

PAIN OF JHIRAM NAXAL ATTACK झीरम कांड के 11 साल हो चुके हैं. इस हत्याकांड को याद कर आज भी रूह कांप उठती है. आइए जानते हैं प्रत्यक्षदर्शी कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर से घटना के दिन की खौफनाक दास्तां.

PAIN OF JHIRAM NAXAL ATTACK
झीरम कांड बरसी (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

झीरम कांड के 11 साल पूरे (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

रायपुर: 25 मई का दिन छत्तीसगढ़ के इतिहास का काला दिन है. इसी दिन झीरम में नक्सलियों ने कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा के दौरान कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सहित 32 लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी थी. इस घटना ने ना सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, क्योंकि देश के इतिहास में नक्सलियों के द्वारा एक साथ इतनी बड़ी संख्या में किसी राजनीतिक दल के नेताओं की हत्या नहीं की गई थी. ये 25 मई साल 2013 की घटना है. आज झीरम कांड को 11 साल बीत चुके हैं. जब भी इस घटना का जिक्र होता है लोगों की रूह कांप उठती है.

क्या है झीरम कांड: साल 2013 में विधानसभा चुनाव होने थे. उस दौरान छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार थी. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. यही वजह थी कि चुनाव को लेकर कांग्रेस ने तैयारी तेज कर दी थी. कांग्रेस ने चुनाव के पहले परिवर्तन यात्रा की शुरुआत की थी. इस परिवर्तन यात्रा के जरिए कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटी हुई थी. यह परिवर्तन यात्रा विभिन्न जगहों से होते हुए झीरम पहुंची. झीरम में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. लगभग 32 लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी. इसमें कई कांग्रेसी नेता मारे गए. वहीं, कई जवान शहीद भी हो गए. इस दौरान कुछ लोग अपनी जान बचाने में कामयाब रहे. इनमें से एक थे शिव सिंह ठाकुर, जो आज भी उसे घटना को याद कर सहम जाते हैं. कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर ने इस घटना को अपनी आंखों से देखा है. उन्होंने इस घटना में जहां एक ओर टॉप के कांग्रेसी नेताओं को खोया था. वहीं, उनके कई मित्र जान-पहचान और चाहने वालों की भी इसमें मौत हो गई थी.

जानिए क्या कहते हैं प्रत्यक्षदर्शी: ETV भारत ने झीरम कांड बरसी पर कांग्रेस नेता शिव सिंह ठाकुर से बात की. उन्होंने बताया कि, "हमें ईश्वर पर भरोसा है. भले ही शासन-प्रशासन, पुलिस, सरकार हमें न्याय न दे लेकिन ईश्वर हमें जरूर एक न एक दिन न्याय देगा. 25 मई 2013 के दिन कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के दौरान करीब 32 लोग नक्सली हमले में मारे गए. लगभग उतने ही लोग घायल हुए और उससे ज्यादा लोग अपनी जान बचाकर भागने में कामयाब रहे. वह काफी भयानक मंजर था. एंबुश लगाया गया था, गोलियों से भूना गया, बम से उड़ाया गया.आज भी उस मंजर को याद कर हमारी रूह कांप जाती है. ईश्वर को हम धन्यवाद देते हैं कि आज हम जीवित बचकर लौट आए हैं और हमारे कई साथी उस घटना में मारे गए. उन्हें याद कर हम सिर्फ दुख प्रकट कर सकते हैं. हम मानते हैं कि जो लोग दोषी हैं, उन्हें ईश्वर सजा देगा."

नंदकुमार पटेल, दिनेश पटेल और महेन्द्र कर्मा थे टारगेट में: शिव सिंह ठाकुर ने कहा कि, "उस दिन सबसे पहले नक्सलियों ने एंबुश लगाया था, जिसमें पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी की धज्जियां उड़ गई. उसमें जितने भी जवान सवार थे, वह शहीद हो गए. उसके पीछे की गाड़ी में नंद कुमार पटेल बैठे थे. उनके साथ उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा भी बैठे हुए थे. उनकी गाड़ी को रोकने के लिए नक्सलियों ने गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया. इसके बाद नक्सली नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को वे पहाड़ पर ले गए. नक्सलियों को पहले से पता था कि महेंद्र कर्मा भी इस काफिले में मौजूद हैं. उन्हें मारने के लिए नक्सलियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई करते हुए कर्मा के सुरक्षा कर्मियों ने भी फायरिंग की. इस बीच नक्सलियों ने महेंद्र शर्मा को सरेंडर करने के लिए कहा. इस दौरान करीब दो से ढाई घंटे तक लगातार फायरिंग होती रही और जब महेंद्र कर्मा को लगा कि अब उनकी मदद के लिए कोई पुलिस प्रशासन या बल नहीं आने वाला है तो उन्होंने नक्सलियों के सामने सरेंडर कर दिया. उसके बाद वहां फायरिंग थम गई. इसके बाद हम लोगों ने भी सरेंडर कर दिया."

उस दिन की घटना को देखते हुए लगता था कि नक्सली नाम पूछ-पूछ कर मार रहे थे. वह लगातार नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और दिनेश पटेल का नाम ले रहे थे. इसके बाद 35 से 40 नक्सलियों ने नंद कुमार पटेल को अगवा कर दूसरी जगह ले गए. वह हमारे साथ नहीं थे. उस समय ऐसा लग रहा था किसी ने नक्सलियों को इनकी सुपारी दी है, जैसा फिल्मों में होता है. नक्सलियों के सर पर खून सवार था. वे अपने आका से वॉकी-टॉकी पर यह बात कर रहे थे. आपस में उनका कहना था कि यदि नंद कुमार पटेल आज बच गए, तो तुम सब मारे जाओगे. उनके व्यवहार से ऐसा लग रहा था मानों नक्सलियों ने यदि नंद कुमार पटेल को नहीं मारा, तो उनके आका नक्सलियों को मार देंगे. -शिव सिंह ठाकुर, झीरम कांड के चश्मदीद

अब तक नहीं मिला है पीड़ितों को न्याय: शिव सिंह ठाकुर ने बताया कि, "नंद कुमार पटेल नक्सलियों के सबसे पहला टारगेट थे. यदि नंदकुमार पटेल आज इस जगह से निकल गए, तो दोबारा वह सीएम बनकर ही लौटेंगे. क्योंकि उस समय कांग्रेस के पक्ष में माहौल था. कांग्रेस की सरकार बनती दिख रही थी. यदि कांग्रेस सरकार बनती तो नंद कुमार पटेल सीएम होते. शायद यही वजह थी की नंदकुमार पटेल को मारने के लिए सुपारी दी गई थी. आज भी घटना की जांच अधूरी है. केंद्र सरकार लगातार जांच कर रही थी. मोदी सरकार भी अब तक जांच नहीं कर सकी. एनआईए जांच हुई , वह भी अधूरी रह गई. मजिस्ट्रेट जांच चल रही है. एसआईटी जांच भी चल रही थी, जिसे बीच में रोक दिया गया. इसके बाद भूपेश सरकार में पुलिस जांच होने वाली थी. उस मामले में एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई आगे बढ़ाई थी. उस पर भी रोक लग गई थी. बाद में जब तक यह रुकावट खुली, तब तक कांग्रेस सरकार जा चुकी थी. अब वर्तमान में विष्णु देव साय की सरकार है. इसमें अब आगे क्या होगा? पता नहीं. हम पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिला है."

बता दें कि 25 मई को झीरम कांड की 11वीं बरसी है. सालों से इस मामले में मारे गए कांग्रेस नेताओं के परिवार न्याय की आस लगाए बैठे हैं. हालांकि सालों बाद भी झीरम कांड के शहीदों को न्याय नहीं मिल सका है. वहीं, कांग्रेस के प्रत्यक्षदर्शी नेता आज भी उस वाकए को याद कर सहम जाते हैं.

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Last Updated : May 17, 2024, 4:09 PM IST
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