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हाईकोर्ट ने की नशा मुक्ति केंद्रों के मामले पर सुनवाई, केंद्र और राज्य सरकार से मांगी डिटेल - Hearing On De Addiction Centers

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 14, 2024, 5:05 PM IST

Hearing on matter of de-addiction centers नशा मुक्ति केंद्रों के मामले में कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से पूछा है कि मेंटल हेल्थ की वजह से सुसाइड केसों के एक्ट में क्या प्रावधान है? दो सप्ताह के भीतर कोर्ट को बताएं.

Hearing on matter of de-addiction centers
नशा मुक्ति केंद्रों के मामले पर सुनवाई (PHOTO- ETV BHARAT FILE PHOTO)

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून जिले में संचालित 15 नशा मुक्ति केंद्रों के मामले पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने याचिकाओं का क्षेत्र बढ़ाते हुए केंद्र और राज्य सरकार से पूछा है कि प्रदेश में जितने भी सुसाइड के केस आ रहे हैं, वे कार्यस्थल पर कार्य की अधिकता और मेंटल हेल्थ की वजह से आ रहे हैं. क्या एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान है जिससे कि इस समस्या का समाधान हो सके? दो सप्ताह में केंद्र और राज्य सरकार इस पर जवाब पेश कर न्यायालय को अवगत कराएं.

मामले के अनुसार, जागृति फाउंडेशन, संकल्प नशा मुक्ति, मैजिक नर्फ, इनलाइटमेंट फेलोशिप, जीवन संकल्प सेवा समिति, नवीन किरण, इवॉल्व लीव्स, जन सेवा समिति, ज्योति जन कल्याण सेवा, आपका आश्रम, सेंट लुइस रेहाब सोसायटी, एसजी फाउंडेशन, दून सोबर लिविंग सोसायटी रथ टू सेरेनिटी और डॉक्टर दौलत फाउंडेशन ने विभिन्न याचिकाएं दायर कर जिला अधिकारी देहरादून द्वारा 13 नवंबर 2021 को नशा मुक्ति केंद्र संचालन हेतु जारी एसओपी को चुनौती दी है.

एसओपी में कहा गया है कि जिला देहरादून में नशा मुक्ति केंद्रों के खिलाफ बार-बार शिकायत आ रही है. जांच करने पर पता चला कि केंद्रों द्वारा मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार और खान-पान, साफ-सफाई का उचित ध्यान नहीं देने की शिकायत पाई गई. जिसके फलस्वरूप केंद्र संचालक और मरीजों के साथ टकराव की स्थिति बनी रहती है. इसके बाद जिलााधिकारी द्वारा 13 नवंबर 2021 को एक एसओपी जारी की गई. जिसमें निम्न शर्तों का उल्लेख किया गया है.

  • जिले के सभी नशा मुक्ति केंद्रों का पंजीयन और नवीनीकरण क्लीनिकल ईस्टब्लिस्टमेंट एक्ट और मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 के तहत किया जाएगा. केंद्र का पंजीकरण हेतु 50 हजार और नवीनीकरण हेतु 25 हजार रुपए सालाना शुल्क जमा करना होगा.
  • पंजीकरण होने के बाद सीएमओ द्वारा एक टीम गठित कर केंद्र की जांच की जाएगी. जारी एसओपी के अनुरूप होने के बाद ही केंद्र को लाइसेंस जारी किया जाएगा.
  • 20 से 25 बेड वाले केंद्र 60 स्क्वायर फीट क्षेत्रफल में होने चाहिए. इससे अधिक वालों में सभी सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए.
  • 20 प्रतिशत बेड जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा रेस्क्यू किए गए मरीजों के लिए आरक्षित रखे जाएंगे.
  • प्रति मरीज अधिकतम 10 हजार रुपए महीना से अधिक शुल्क नहीं लिया जाएगा.
  • सभी केंद्रों में फिजिशियन, गायनोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक, 20 लोगों के ऊपर एक काउंसलर, मेडिकल स्टाफ, योगा ट्रेनर और सुरक्षा गार्ड की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए.
  • जिला अस्पताल में तैनात मनोचिकित्सक द्वारा माह में मरीजों की जांच की जाएगी.
  • महीने में अपने केंद्र की ऑडियो-वीडियो की रिपोर्ट संबंधित थाने में देनी आवश्यक है.

याचिका कर्ताओं का कहना है कि जिलाधिकारी द्वारा उनके ऊपर इतने अधिक नियम थोप दिए हैं, जिनका पालन करना मुश्किल है. 50 हजार रुपए पंजीकरण फीस और 25 हजार नवीनीकरण फीस देना न्यायसंगत नहीं है. जबकि केंद्र में 20 हजार रुपए है. सभी केंद्र, समाज कल्याण के भीतर आते है. केंद्र दवाई, डॉक्टर, स्टाफ, सुरक्षा और अन्य खर्चे कहां से वसूल करेगा. जबकि अधिकतम 10 हजार फीस लेनी है. याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है 22 नवंबर को उन्होंने एसओपी वापस लेने के लिए जिलाधिकारी को प्रत्यावेदन भी दिया. परंतु उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से प्राथर्ना की है कि इस एसओपी को निरस्त किया जाए या इसमें संसोधन किया जाए.

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