ETV Bharat / state

जानिए लोकसभा चुनावों में कितना कारगर होगा सपा-कांग्रेस गठबंधन, किसे होगा लाभ

author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 26, 2024, 7:41 PM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी और कांग्रेस (SP Congress Alliance) ने फिलहाल यूपी के लिए खाका खींच लिया है. सीटों के बंटवारे पर सहमति बन चुकी है, लेकिन पिछले चुनावों के नतीजों को देखते हुए इस बार गठबंधन की राह कितनी सफलता दिखाएगी. यह तो जनता ही तय करेगी. देखें विस्तृत खबर.

लखनऊ : लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन एक बार फिर हो गया है. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था, तब यूपी के 'दो लड़कों' राहुल गांधी और अखिलेश यादव की खूब चर्चा रही थी. हालांकि बाद में सपा ने इस गठबंधन को अपनी गलती बताते हुए भविष्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने की बात कही थी. अब जबकि तमाम अटकलों को दरकिनार कर एक बार फिर दोनों पार्टियों में गठबंधन हो गया है, तो यह समझना जरूरी है कि आखिर इसका लाभ सपा को ज्यादा मिलेगा या कांग्रेस को अथवा दोनों ही पार्टियां लाभान्वित होंगी.

लोकसभा चुनाव 2019.
लोकसभा चुनाव 2019.



2017 के विधानसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन पर चर्चा करें तो कांग्रेस पार्टी सौ सीटों पर चुनाव लड़ी और उसे सिर्फ सात सीटों पर जीत हासिल हुई. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर 6.25 प्रतिशत रहा. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर 11.65 प्रतिशत था 2022 के विधानसभा चुनावों में यह वोट शेयर घटकर 3.25 प्रतिशत रह गया है. इन आंकड़ों से साफ है कि पिछले 10 साल में प्रदेश में कांग्रेस पार्टी लगातार रसातल में जा रही है. यदि पिछले तीन लोकसभा चुनावों के वोट शेयर पर गौर करें तो 2009 में 18.25 प्रतिशत, 2014 में 7.53 प्रतिशत और 2019 में 6.36 प्रतिशत वोट शेयर कांग्रेस पार्टी का रहा था. यानी लोकसभा और विधानसभा दोनों में भी कांग्रेस पार्टी का जनाधार लगातार गिरता जा रहा है.

लोकसभा चुनाव 2014.
लोकसभा चुनाव 2014.

समाजवादी पार्टी ने 2012 में 401 सीटों पर चुनाव लड़ा और 224 पर जीत हासिल की. इस चुनाव में पार्टी को 29.29 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए. 2017 में समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 21.82 प्रतिशत रहा था. यदि 2022 के विधानसभा चुनावों की चर्चा करें तो इस चुनाव में सपा को 111 सीटें प्राप्त हुई थीं और उसे 32.06 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे. लोकसभा चुनावों की बात करें तो वर्ष 2009 में सपा को 23 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2014 और 2019 में भी पार्टी ने पांच-पांच सीटें हासिल की थीं. साफ है कि अपवाद छोड़ दें तो दोनों ही पार्टियों ने पिछले 10 सालों में प्रदेश में अपना जनाधार लगातार खोया है. सपा ने 2019 में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. जिसमें बसपा को लाभ मिला था और वह प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. चुनाव नतीजों के कुछ माह बाद मायावती ने सपा से यह कहते हुए गठबंधन तोड़ने का फैसला किया था कि सपा अपना वोट बैंक बसपा की ओर ट्रांसफर नहीं करा सकी.


एक दशक का अनुभव बताता है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हुई है. पार्टी नेतृत्व ने प्रदेश में संगठन खड़ा करने के लिए खास कोशिशें भी नहीं कीं. हां, चुनावी मौकों पर प्रियंका और राहुल की जोड़ी प्रदेश में जरूर दिखाई दी. लड़की हूं, लड़ सकती हूं का नारा भी खूब बुलंद हुआ, पर कांग्रेस पार्टी और प्रियंका गांधी आवाम को यह समझाने में नाकाम रहीं कि वह अपने लिए नहीं अवाम के लिए भी लड़ सकती हैं. शायद इसीलिए लोगों ने उन पर भरोसा नहीं जताया. यही स्थिति समाजवादी पार्टी की भी है. कभी सड़कों पर जनता के लिए संघर्ष करने वाली पार्टी आज ट्विटर (अब एक्स) पर छुट्टा पशुओं पर टिप्पणियां करने तक सीमित रह गई है. पार्टी के वरिष्ठ नेता हाशिए पर हैं और पार्टी मुखिया विरासत में मिली पार्टी को अपने हिसाब से चला रहे हैं. यही वजह है कि 2012 में सपा को जो जन समर्थन मिला था, वह आगे जारी नहीं रह सका. ऐसे में सपा-कांग्रेस गठबंधन प्रदेश में कोई चमत्कार कर पाएगा, ऐसा लगता तो नहीं है. हां, सपा का साथ पाकर कांग्रेस अपना आधार जरूर बढ़ा सकती है. हालांकि यह सीटों में तब्दील हो पाएगा कहना कठिन है.


राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रदीप यादव कहते हैं कि लगता है कि अखिलेश यादव ने अपनी अतीत की गलतियों या अनुभवों से कुछ भी नहीं सीखा है. यदि उन्होंने अतीत से सबक लिया होता तो यह घाटे का गठबंधन न करते. क्षेत्रीय दल होने के कारण सपा की राजनीति अभी उत्तर प्रदेश तक ही है. इसलिए उन्हें प्रदेश में अपने हितों को देखना चाहिए था. वर्ष 2019 में की तरह ही सपा इस बार भी कांग्रेस को तो फायदा पहुंचाएगी, लेकिन उसे कोई फायदा हो पाएगा कहना कठिन है. कांग्रेस का कोई अपना बड़ा वोट बैंक नहीं है, जबकि सपा के पास मुस्लिम और यादवों का बड़ा वोट बैंक है जो पिछले चुनावों में अमूमन सपा के लिए ही वोट करता रहा है. ऐसे में कांग्रेस से सपा को क्या हासिल होगा? यदि अखिलेश ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे छोटे दलों से तालमेल रखते तो शायद उन्हें ज्यादा लाभ होता.

यह भी पढ़ें : अखिलेश यादव का बड़ा बयान,'अंत भला तो सब भला, यूपी में इंडिया गठबंधन जरूर होगा, कांग्रेस से कोई विवाद नहीं'

यह भी पढ़ें : सपा-कांग्रेस का गठबंधन पक्का: यूपी में कांग्रेस को 17 सीटें, एमपी में सपा को एक सीट

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.