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बिहार की छोटी पार्टियों को साधने में लगी बीजेपी और महागठबंधन, इन क्षेत्रों में बिगाड़ सकते हैं किसी का भी खेल

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 11, 2024, 7:42 PM IST

Updated : Mar 11, 2024, 8:36 PM IST

lok sabha election 2024 में बिहार में मौजूद छोटे छोटे दलों की भूमिका बढ़ गयी है. इनमें लोजपा (रा), रालोजपा, रालोमो, हम और वीआईपी शामिल हैं. इन छोटे-छोटे दलों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों की नजर है. जैसे, अभी राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि चिराग पासवान फिलहाल एनडीए से नाराज चल रहे हैं तो महागठबंधन उस पर डोरे डालना शुरू कर दिया है. इनके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी है जो एनडीए और महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकती है. पढ़िये, विस्तार से.

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लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार के छोटे-छोटे दलों की भूमिका.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 400 पार का नारा एनडीए के लिए दिया है. बीजेपी उसे जमीन पर उतारने में लगी है. कई राज्यों में बीजेपी ने छोटे-छोटे दलों के साथ तालमेल किया है. बिहार में अधिकांश छोटे दलों को भाजपा ने अपने साथ जोड़ लिया है. 2019 में एनडीए ने 40 में से 39 सीट जीता था. इस बार 40 सीट पर नजर है. 40 सीट को जीतने में छोटे दल बीजेपी के लिए बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

मुकेश सहनी को एनडीए में लाने की तैयारी: बिहार एनडीए में अभी 6 दल हैं. मुकेश सहनी को भी लाने की तैयारी हो रही है. पहले से जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और लोजपा दोनों गुट चिराग और पशुपति पारस बिहार में बीजेपी के साथ हैं. जीतन राम मांझी और चिराग पासवान बिहार में दलित के बड़े चेहरे हैं. चिराग पासवान युवा चेहरा के तौर पर दलितों के बीच एक विशेष पहचान बना रहे हैं. चिराग पासवान अभी जमुई से सांसद हैं. उनके परिवार के सदस्यों का हाजीपुर और समस्तीपुर लोक सभा सीट पर कब्जा है.

दलित वोट बैंक पर है नजरः बिहार में दलितों का 21% के करीब वोट बैंक है. ऐसे तो हर दल में दलितों के नेता हैं, लेकिन दलित वोट बैंक पर चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पकड़ है. एनडीए में रहने के कारण जहां चिराग पासवान और जीतन राम मांझी सुरक्षित सभी सीटों हाजीपुर, समस्तीपुर, गया, सासाराम, गोपालगंज और जमुई पर असर तो डालेंगे ही साथ ही एक दर्जन से अधिक सीटों पर भी जीत हार में बड़ी भूमिका निभाएंगे.

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उपेंद्र कुशवाहा का कई सीटों पर है प्रभावः राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा, कुशवाहा जाति के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं. ऐसे तो बीजेपी ने सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इस वोट बैंक पर दावेदारी की है, लेकिन इसके बावजूद उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार की कई सीटों पर अपना असर डाल सकते हैं. इनमें काराकाट, सीतामढ़ी, बाल्मीकिनगर, जहानाबाद जैसी सीट महत्वपूर्ण है. उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से 2014 में एनडीए में रहते सांसद भी रह चुके हैं.

मुकेश साहनी को साधने की कोशिशः वीआईपी के मुकेश सहनी, मल्लाह जाति के बड़े नेता के तौर पर आज पहचान बना रहे हैं. अभी एनडीए में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन कई राउंड की उनकी बातचीत भाजपा नेताओं से हो चुकी है. निषाद को आरक्षण दिलाने की उनकी मांग है. लगातार कहते रहे हैं जो भी आरक्षण देगा उसके साथ हम रहेंगे. बिहार में मल्लाह की आबादी 3% के करीब है. कई सीटों पर मल्लाह की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसमें खगड़िया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी शामिल है. वैसे तो बीजेपी और जदयू में मल्लाह जाति से आने वाले कई नेता हैं, बीजेपी ने महागठबंधन की सरकार रहते हरि सहनी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया था. इसके बाद भी मुकेश सहनी बड़े वोट बैंक के तौर पर बिहार में देखे जा रहे हैं.

एआईएमआईएम की भूमिका महत्वपूर्णः छोटे दलों में एआईएमआईएम की भूमिका भी लोकसभा चुनाव में इस बार महत्वपूर्ण होने जा रही है. एआईएमआईएम मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती है. बिहार में मुस्लिम वोट बैंक 17% से अधिक है. ऐसे तो एआइएमआइएम फिलहाल किसी गठबंधन में शामिल नहीं है. एनडीए में आने की दूर-दूर तक संभावना नहीं है. लेकिन एआईएमआईएम कई सीटों पर असर डालेगा. खासकर सीमांचल की चार सीट किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार मुस्लिम बहुल इलाके में जीत हार में बड़ी भूमिका निभाएगा.

...तो महागठबंधन को हो सकता है नुकसानः यदि एआईएमआईएम महागठबंधन के साथ नहीं जाता है तो जितनी सीट पर भी एआईएमआईएम उम्मीदवार उतारेगी, उसका सीधा लाभ एनडीए को होगा. महागठबंधन को नुकसान होना तय है. क्योंकि, महागठबंधन भी मुस्लिम वोट पर अपनी दावेदारी करता है. पिछले लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम की तरफ से किशनगंज सीट पर अख्तरुल इमान ने 3 लाख से अधिक वोट लाया था. हालांकि कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने में सफल नहीं रहे थे. वहीं 2020 विधानसभा चुनाव में सीमांचल के पांच सीटों आमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज में जीत हासिल की थी. बाद में पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए.

कोसी क्षेत्र में पप्पू का प्रभावः बिहार में पप्पू यादव जन अधिकार पार्टी चलाते हैं. ऐसे तो महागठबंधन के साथ इस बार तालमेल होने की चर्चा है. पप्पू यादव, यादव जाति के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं. ऐसे तो लालू यादव और तेजस्वी यादव का यादव वोट बैंक पर सीधा कब्जा है. लेकिन मधेपुरा, पूर्णिया जैसी सीटों पर पप्पू यादव का काफी प्रभाव है. यदि पप्पू यादव महागठबंधन में जाते हैं तो इसका लाभ महागठबंधन को मिलना तय है. एनडीए को इन इलाकों में नुकसान हो सकता है. पप्पू यादव पूर्णिया से सांसद भी रह चुके हैं.

"बीजेपी एक-एक सीट पर कसरत कर रही है. दूसरे राज्यों में भी छोटे दलों को अपने साथ लाई है. बिहार में भी सभी छोटे दलों को जोड़कर 40 सीट जीतने की तैयारी में है. मुकेश सहनी का भी एनडीए में आना लगभग तय है. उसका असर कई सीटों पर देखने को मिलेगा."- रवि उपाध्याय, राजनीतिक विश्लेषक

महागठबंधन के सामने कोई चुनौती नहींः बीजेपी के वरिष्ठ मंत्री प्रेम कुमार का कहना है बीजेपी सभी दलों को साथ लेकर चल रही है. कई विधायक बिहार में एनडीए के पाले में आ चुके हैं. एनडीए सभी 40 सीटों पर जीतेगी और इंडिया गठबंधन शून्य पर आउट होगा. कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान और राजद के विधायक सुदय यादव का कहना है की जनता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ है. बिहार में महागठबंधन के सामने कोई चुनौती नहीं है.


क्या हो सकता है समीकरण: 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 40 में से 39 सीट पर जीत हासिल की थी. उस समय एनडीए में भाजपा, जदयू और लोजपा शामिल थी. अब लोजपा भी दो भाग में बंट चुकी है. साथ ही जीतन राम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी भी एनडीए में आ चुकी है. मुकेश सहनी भी यदि आ जाते हैं तो दलित, कुशवाहा और सहनी (मल्लाह) वोट बैंक को साधने में सफल रहेंगे. एआईएमआईएम के मैदान में उतरने पर महागठबंधन की चुनौती बढ़ सकती है.

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Last Updated :Mar 11, 2024, 8:36 PM IST
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