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खिर्सू में बदरी विशाल के कोतवाल की होती है विशेष पूजा, बुरी नजर से बचाते हैं घंटाकर्ण देवता, जानिए मान्यता - Ghantakarna Devta Pooja

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 29, 2024, 6:59 PM IST

Ghantakarna Devta Pooja
घंटाकर्ण देवता की पूजा

Katthabaddi Mela Khirsu पौड़ी जिले के खिर्सू के गांवों में कठ्ठबद्दी मेले का आयोजन होता है. जो अपने आप में अनोखी होती है. मेले में भगवान बदरी विशाल के कोतवाल माने जाने वाले घंटाकर्ण देवता की पूजा होती है. जिसमें लकड़ी से मानव काया का रूप तैयार कर रस्सी के सहारे खिसकाया जाता है. जानिए क्या है मान्यता...

श्रीनगर: पहाड़ों में घंटाकर्ण देवता को भगवान बदरी विशाल का कोतवाल माना जाता है. ग्रामीण घंटाकर्ण को ईष्ट देवता के रूप में पूजते हैं. खिर्सू में घंटाकर्ण को प्रसन्न करने, गांवों की रक्षा और बुरी नजर से बचाने के लिए एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है, जिसे कठ्ठबद्दी मेला कहा जाता है. इस बार भी इस अनूठे अनुष्ठान में लोगों की भीड़ उमड़ी और भगवान घंटाकर्ण का आशीर्वाद लिया.

दरअसल, कठ्ठबद्दी मेले का स्वरूप अपने आप में अनूठा है. इसमें लकड़ी से मानव काया का रूप तैयार किया जाता है. पूजा अर्चना के बाद उसे गांव के ऊपर 300 मीटर की ऊंचाई से रस्सी के सहारे खिसकाया जाता है. यह मेला एक साल ग्वाड़ तो दूसरे साल कोठगी गांव में होता है. यह रोमांच कुछ पलों का होता है, लेकिन इन पलों को देखने के लिए श्रद्धालुओं की उत्सुकता में लगातार इजाफा हो रहा है. ग्रामीणों की मानें तो क्षेत्र को बुरी नजर से बचाने और खुशहाली के लिए यह मेला आयोजित किया जाता है.

Ghantakarna Devta Pooja
घंटाकर्ण देवता की पूजा

पौड़ी जिले के खिर्सू के गांवों में अनोखी परंपरा निभाई जाती है. यहां पर बद्दी मेले का आयोजन होता है. माना जाता है कि इस परंपरा को निभाने से क्षेत्र में उन्नति रहती है. साथ ही किसी भी तरह की आपदा से गांव वासी दूर रहते हैं. इस अनोखी परंपरा को निभाने के लिए काठ के एक घोड़े पर बीचोंबीच एक छेद किया जाता है, फिर उसे आर पार एक रस्सा टांगा जाता था.

फिर ऊंची जगह से उस पर बेडा या बद्दी जाति के पुरुष को बिठा कर छोड़ा जाता था. काठ का घोड़ा अपने सवार के साथ सीधे नीचे आता जाता था, जिसमें कभी-कभी पुरुष यानी शख्स की मृत्यु भी हो जाती थी. हालांकि, अब इसमें मनुष्य की जगह लकड़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इस तरह की परंपरा को गामीण अभी भी आगे बढ़ा रहे हैं.

Ghantakarna Devta Pooja
घंटाकर्ण देवता की पूजा

ग्रामीण वीरेंद्र और जितेंद्र रावत ने बताया कि यह परंपरा उनके गांव में सदियों से चली आ रही है. उन्होंने बताया कि मान्यता है कि भगवान बदरी विशाल को गांव कि सबसे ऊंचे स्थान से सबसे नीचे स्थान तक कुशलतापूरक रस्सी के सहारे नीचे छोड़ा जाता है. जिससे गांव में सुख शांति आती है. उन्होंने बताया कि बार कुटगी गांव में यह परंपरा निभाई गई. इस दौरान गांव की प्रवासी भी बदरीनाथ भगवान का दर्शन करने के लिए गांव पहुंचते हैं.

भगवान बदरी विशाल की पूजा तभी मानी जाती है सफल जब..: कथाओं के अनुसार, घंटाकर्ण देवता पहले आसुरी प्रवृत्ति के थे, जिसे त्यागने के लिए उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की. तब भगवान शिव ने उन्हें बदरीकाश्रम जाकर भगवान बदरी की तपस्या करने का सुझाव दिया. सुझाव के बाद घंटाकर्ण देवता ने उनकी घनघोर तपस्या की. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान बदरीनाथ ने उन्हें अपना रक्षक और कोतवाल नियुक्त किया. साथ ही कहा कि जो भी उनके द्वार आएगा, अगर वो घंटाकर्ण की पूजा कर बदरीनाथ से जाएगा, तभी उसकी पूजा को सफल माना जाएगा.

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