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शीतकाल में घंटाकर्ण महाराज करते हैं बदरीनाथ धाम की रखवाली, सिपाही की आंखों देखी

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Published : May 4, 2021, 1:50 PM IST

शीतकाल में जब बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं तो एक महाराज मंदिर की रखवाली करते हैं. ये हम नहीं कह रहे हैं. धाम में सुरक्षा के लिए मौजूद एक सिपाही ने अपना अनुभव साझा किया है.

Badrinath shrine
घंटाकर्ण महाराज

चमोली: चारों धामों में सबसे श्रेष्ठ धाम बदरीनाथ के कपाट इन दिनों शीतकाल के लिए बंद हैं. परम्पराओं के अनुसार टिहरी राजदरबार में निर्धारित तिथि 18 मई को भगवान बदरीविशाल के कपाट खोले जाने हैं. कपाट बंदी के दौरान भगवान बदरीविशाल के मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा देवताओं और इंसानों के ऊपर होता है. ऐसा इसलिये कह रहे हैं क्योंकि धाम के कपाट बंद होने के बाद यहां मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिस के जवानों के अलावा किसी भी इन्सान को रुकने की अनुमति नहीं होती है.

अब आपको बताते हैं कि वह कौन से देवता हैं, जब शीतकाल के दौरान मंदिर की सुरक्षा में तैनात जवान रात को सो जाते हैं और वह देवता मंदिर की रखवाली करते हैं. आप सभी ने भगवान बदरीनाथ मंदिर के मंडप में कई मंदिरों के समूह देखे होंगे. जिसमें लक्ष्मी जी, कुबेर जी के साथ साथ घंटाकर्ण महाराज का भी एक मंदिर है. घंटाकर्ण महाराज को बदरीनाथ धाम का क्षेत्रपाल के साथ-साथ कोतवाल भी कहा जाता है. शीतकाल के दौरान देवताओं की तरफ से धाम की सुरक्षा का जिम्मा घंटाकर्ण महाराज के पास होता है.

नाम गुप्त रखने की शर्त पर पिछले वर्षों शीतकाल के दौरान बदरीनाथ मंदिर की ड्यूटी में तैनात पुलिस के जवान ने बताया कि जब वह धाम में गार्ड ड्यूटी पर तैनात थे, तो उस दौरान बदरीनाथ धाम और मंदिर परिसर के आसपास 5 से 6 फिट तक बर्फ जमी हुई थी. रात्रि 2 बजे का समय था. मैं और मेरे साथी मंदिर के पास स्थित गार्ड रूम में सोने की तैयारी कर रहे थे. इतने में गार्ड रूम की छत पर घोड़े की टाप की आवाज सुनाई दी. जिसके बाद हम लोग सहम गए, क्योंकि पहली बार हमारे साथ ऐसा हुआ. ऐसा लगा कि गार्ड रूम वाले भवन की छत पर कोई घुड़सवार चल रहा हो.

कुछ देर बाद वह घुड़सवार मंदिर परिसर के आसपास ही घूमता रहा. क्योंकि घोड़े की टाप की आवाज निरंतर सुनाई दे रही थी. करीब 5 मिनट के बाद मंदिर में दर्शनों के लिए लगने वाली लाइन में बारिश से बचने के लिए ऊपर से बनाई गई रेन शेल्टर के ऊपर से भी तेजी से घोड़े के दौड़ने की आवाज आई और वह आवाज धीरे-धीरे दूर नाग-नागिन जोड़े की तरफ चली गई.

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जवान ने बताया कि वह खिड़की खोलकर उस वक्त बाहर देखना चाह रहा था कि आखिर मंदिर परिसर में यह घोड़ा आया कैसे. लेकिन साथ में मौजूद दूसरे साथी जवान ने यह कहकर मुझे रोका कि अगर कोई सामान्य घोड़ा या जानवर है तो 6 फिट तक जमी बर्फ के बीच टाप की आवाज कैसे आती. जिसके बाद वह सुबह करीब 4 बजे तक घोड़े के वापस जाने का इंतजार करने लगे. जब वह घोड़ा वापस गया और टाप की आवाज शांत हुई, तब जाकर वह सो पाए.

मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी को रात हुई घटना के बारे में जानने की उत्सुकता बनी हुई थी. जिसके समाधान के लिए वह सुबह होते ही पास में कड़कड़ाती ठंड में तन पर महज एक धोती पहने हुए तपस्या में लीन बाल ब्रम्हचारी संत के पास उनकी कुटी पर गए. बता दें कि ज़िलाधिकारी द्वारा आवदेन पर कुछ संतों को शीतकाल के दौरान धाम में तपस्या की अनुमति दी जाती है. रात में हुई घटना के बारे में जवान ने बाल ब्रह्मचारी को बताया. जवान के मुताबिक बाल ब्रह्मचारी ने बताया कि वह महज घोड़ा नहीं बल्कि घोड़े पर सवार घंटाकर्ण महाराज होंगे. जैसे धाम की सुरक्षा का जिम्मा आप लोगों के पास है, वैसे ही इस क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा घंटाकर्ण महाराज के पास है. उनको क्षेत्रपाल और कोतवाल भी कहा जाता है.

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घंटाकर्ण माणा से लेकर बदरीनाथ मंदिर परिसर तक प्रतिदिन रात को चौकसी के लिए पहुंचते हैं. किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. बताया कि बाल ब्रह्मचारी ने सलाह भी दी कि कभी रात को अगर उनसे आपका ड्यूटी के दौरान कभी सामना भी हो जाता है तो आप उनकी तरफ न देखकर अपनी ड्यूटी करें. वह आपको कुछ नुकसान नहीं पहुंचायेंगे.

हालांकि ईटीवी भारत अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता है, लेकिन बदरीनाथ धाम में कई ऐसे चमत्कार होते रहते हैं जो कि अविश्वसनीय हैं.

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