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International Day of Zero Tolerance : आजादी के 75 साल बाद भी राजस्थान में कुकड़ी और डायन जैसी कुप्रथा में जकड़ी हैं महिलाएं

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 6, 2024, 6:34 AM IST

Updated : Feb 6, 2024, 11:12 AM IST

शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

महिला के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस विश्व स्तर पर 6 फरवरी को मनाया जाता है. इस दिन को संयुक्त राष्ट्र की ओर से महिला जननांग विकृति को मिटाने के उनके प्रयासों के लिए मनाया जाता है, लेकिन बावजूद इसके आज भी समाज में कुप्रथाओं से महिलाओं को प्रताड़ित होना पड़ रहा है.

शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

जयपुर. महिला के लिए शून्य सहिष्णुता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस विश्व स्तर पर 6 फरवरी को मनाया जाता है. इस दिन को संयुक्त राष्ट्र की ओर से महिला जननांग विकृति को मिटाने के उनके प्रयासों के लिए प्रायोजित किया जाता है. हर महिलाओं को स्नेह और सम्मान दिलाने के लिए विश्व के कई देश महिला जननांग विकृति के लिए शून्य सहनशीलता दिवस मना रहे हैं. राजस्थान में ऐसी कई कुप्रथाएं हैं जिनका आज भी महिलाओं को सामना करना पड़ता है. आजादी के 75 साल भी महिलाओं को कुकड़ी, अग्नि परीक्षा और डायन जैसी कुप्रथाओं के चलते प्रताड़ित होना पड़ता है. देखिये खास रिपोर्ट...

इस दिवस का इतिहास : सामाजिक कार्यकर्ता सुमन देवठिया बताती हैं कि नाइजीरिया में महिलाओं के जननांग को काटने की कुप्रथा (खतना) को खत्म करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति स्टेला ओबसंजो ने इस दिन की शुरुआत की थी. राष्ट्रपति स्टेला ने ही वर्ष 2003 में 6 फरवरी को पहली बार यह दिन मनाने की घोषणा की थी. संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस दिन को स्वीकार किया. खास बात है कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने साल 2007 में महिला विकृति उत्पीड़न के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाया, इसके बाद में वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित करके 6 फरवरी को महिला जननांग विकृति के खिलाफ शून्य सहनशीलता का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की घोषणा की. इस दिवस का महत्व सदियों से महिलाओं के खिलाफ चली आ रही कुप्रथाओं को खत्म करना है.

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राजस्थान में कई तरह की कुप्रथा : सुमन बताती हैं कि हम भारत की बात करें तो इतिहास में हम देखते हैं कि सीता जैसी महिला को भी अपनी पवित्रता को लेकर अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी. आज भी कई तरह के अलग-अलग मामलों में महिलाओं को परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. खासकर ग्रामीण एरिया में. राजस्थान की बात करें तो यहां अग्नि परीक्षा ही नहीं, यहां पर कुकड़ी, डायन जैसी कुप्रथाएं लंबे समय से चली आ रही हैं. इन प्रथाओं से आज भी महिलाओं को गुजरना पड़ता है. सुमन बताती हैं कि कुकड़ी प्रथा का मतलब वर्जिनिटी टेस्ट. शादी के बाद सुहागरात के समय घरवाले बेड पर सफेद चादर बिछाने के साथ कच्चे सूत की एक गेंद रख देते हैं, जिसे परिवार के सदस्य देखते हैं, अगर खून के धब्बे मिले तो दुल्हन वर्जिनिटी टेस्ट में पास होती है. यदि ऐसा नहीं होता है तो दुल्हन पर चरित्रहीन होने का आरोप लगा देते हैं. अभी भी यह प्रथा एक समाज में व्याप्त है. इसी तरह से डायन प्रथा है जो राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में काफी प्रचलित है. इस प्रथा में संपत्ति हड़पने, स्त्री पर यौन अधिकार या किसी अन्य इरादे से औरतों पर अपनी तांत्रिक शक्तियों इस्तेमाल का आरोप होता है. अंधविश्वास की इस कुप्रथा के मामले प्रदेश में कानून बनने के बाद भी सामने आ रहे हैं. इस प्रथा के कारण कई महिलाओं को मार या जला दिया गया है.

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कानून है लेकिन जागरूकता का अभाव : सुमन देवठिया बताती हैं कि समाज में वर्षों से चली आ रही कुप्रथाओं से महिलाओं की मानसिक और शारीरिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है, साथ ही उनकी सामाजिक स्थिति के लिए भी नुकसानदायक है. इन कुप्रथाओं को खत्म करके महिलाओं को समाज में समान अधिकार और सम्मान दिलाने की जरूरत है. महिलाएं पुरुषों के समान ही हैं, इसलिए उन्हें पुरुषों जैसा सम्मान दिया जाना चाहिए, इसको लेकर कई तरह के कानून भी बने हैं. सुमन बताती हैं कि कानून कॉन्स्टिट्यूशन से निकला हुआ दस्तावेज होता है, महिला के अधिकारों को सुरक्षित करने के साथ उन्हें स्वतंत्रता देने का काम करता है. हम राजस्थान की बात करें तो "20 सालों में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रही हूं, कानून बनाए जाते हैं, लेकिन उनका इंप्लीमेंट नहीं हो पाता है. ग्रासरुट पर कहीं न कहीं जागरूकता का अभाव देखा जाता है. महिलाओं को पता ही नहीं है कि उनके पक्ष में इस तरह के कानून बने हैं, जरूरी है कि जागरूक किया जाए, अवेयरनेस कैंपेन चलाया जाए ताकि महिलाओं को उनके अधिकार मिल सके."

Last Updated :Feb 6, 2024, 11:12 AM IST
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