अमरावती: गोरखचिंच के पेड़ों की संख्या उत्तर भारत में अधिक है और वृक्ष प्रेमी इन पेड़ों के बीज महाराष्ट्र के अमरावती शहर में रोपकर पूरे राज्य में उगाने का प्रयास कर रहे हैं. बता दें कि गोरखचिंच की गिनती अत्यंत दुर्लभ वृक्षों में होती है. इसे पंचकर्णिका, मंकी ब्रेड टी और कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाता है. इस पेड़ की ऊंचाई 50 फीट तक होती है, जबकि इसके तने की परिधि 100 फीट तक हो सकती है.
इस पेड़ में लंबे तने वाले फूल आते हैं. इन फूलों में पांच पंखुड़ियां होती हैं. इस पेड़ के फूल विशेष रूप से रात में खिलते हैं और इसकी मनमोहक खुशबू रात भर बनी रहती है. पेड़ से फूल गिरने के बाद उस स्थान पर लंबे, बोतल के आकार के फल लगते हैं. भूरे रंग के फल लौकी की तरह सख्त होते हैं. इन फलों में भारी मात्रा में पानी जमा होता है.
गोरखचिंच पेड़ के फायदे: इस पेड़ की पत्तियों में विटामिन सी, शर्करा, पोटेशियम और टार्ट्रेट होता है. इस पेड़ के ताजे बीजों को सब्जी के रूप में खाया जाता है, जबकि इन पेड़ों के बीजों को अक्सर भूनकर कॉफी के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
इस पेड़ के फल से शीतल पेय तैयार किया जाता है. इस पेड़ का फल और इसका पेय शरीर की गर्मी को कम करने में बहुत उपयोगी है. 'ईटीवी भारत' से बात करते हुए वनस्पतिशास्त्री प्रोफेसर डॉ. अर्चना मोहोड ने बताया कि यह पेय बुखार, अपच, डायरिया और पेट दर्द की भी महत्वपूर्ण औषधि है.
पेड़ की लकड़ी से बनती हैं नावें: इस पेड़ की लकड़ी बहुत हल्की होती है. इसलिए कई क्षेत्रों में मछली पकड़ने के लिए इस पेड़ की लकड़ी से नावें बनाई जाती हैं. इस पेड़ की आंतरिक छाल का उपयोग इसके अच्छे स्थायित्व के कारण भूरा कागज बनाने के लिए भी किया जाता है.
तने के इंटरस्टिटियम से मजबूत रस्सी भी बनाई जाती है. फल के सूखे गूदे का उपयोग जल भंडारण और पीने के पानी के लिए भी किया जाता है. प्रोफेसर मोहोड़ ने यह भी बताया कि इस पेड़ पर सुगरन पक्षी घोंसला बनाते हैं.
पेड़ को मिला धार्मिक महत्व: नवनाथों में से एक माने जाने वाले नाथ संप्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ महाराज का पहली शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर में निधन हो गया. गोरखनाथ का मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में स्थित है. गोरखनाथ ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेक पुस्तकें लिखीं. महाराष्ट्र के कई हिस्सों में भी गोरखनाथ के कई भक्त हैं.
उस समय विदेश में इस वृक्ष का नाम कोई नहीं जानता था, जिसके नीचे बैठकर गोरखनाथ अपने अनुयायियों से अपने सामाजिक विचार कहते थे. लेकिन विभिन्न पौधों के जानकार लातूर के सह्याद्री देवराय संस्थान के सदस्य शिवशंकर चापुले ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि पेड़ पर लगी फलियां इमली के आकार की होती हैं.
उन्होंने कहा कि हम इस पेड़ के बीज इकट्ठा करने जा रहे हैं और लातूर जिले में इस पेड़ की पौध तैयार करेंगे. इसके साथ ही शिवशंकर चापुले ने यह भी कहा कि हम इस योजना पर भी विचार कर रहे हैं कि यह पेड़ पूरे महाराष्ट्र में कैसे पहुंचेगा.
अमरावती में जीवित है यह पेड़: गाडगे नगर, जो आज बहुत भीड़भाड़ वाला है, 1960 में अमरावती शहर के रिटर्न रोड पर स्थापित किया गया था. उस समय खेत में लगे कई पेड़ काट दिये गये. लेकिन उस समय खेत के मालिक राठी ने इस महत्वपूर्ण पेड़ को नहीं काटा, क्योंकि किसी ने उसे गोरखचिंच पेड़ के महत्व के बारे में बताया था, जो पास के शेगांव गांव की ओर जाने वाली सड़क पर खेत के किनारे पर था.
डॉ. अर्चना मोहेद ने बताया कि शेगांव नाका से रहटगांव मार्ग की ओर मुड़ते समय चौराहे के दाहिनी ओर एक बड़ा गोरखचिंच का पेड़ है. आज, इस पेड़ की उम्र 350 से 400 साल है और 15 से 20 पीढ़ियों तक जीवित रहने की क्षमता रखता है. राज्य भर के वृक्ष प्रेमियों से अपेक्षा है कि वे इस वृक्ष को उसी प्रकार संरक्षित करें, जिस प्रकार अमरावतीकर ने अब तक इसे संरक्षित किया है.
स्वर्गीय विजय भोसले ने वृक्ष संरक्षण के लिए किया प्रयास: 2014 से 2018 तक, सेवानिवृत्त वन संरक्षक स्वर्गीय विजय भोसले ने शेगांव नाका चौक क्षेत्र में वृक्ष संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाया. उन्होंने इन पेड़ों के बीज इकट्ठा करने और उन्हें अमरावती शहर के निकटवर्ती वन क्षेत्रों में उगाने के लिए कई बार वन अधिकारियों से भी संपर्क किया था. कोरोना काल में उनकी मृत्यु के बाद गोरखचिंच वृक्ष के संरक्षण के लिए अमरावती में किसी ने कोई विशेष पहल नहीं की.