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जिसे उंगली पकड़कर चलना सिखाया, उसी ने बुढ़ापे में घर से निकाला, मां की ममता की दास्तां सुन आ जाएंगे आंसू - Mothers Day 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 12, 2024, 3:04 PM IST

Updated : May 12, 2024, 6:43 PM IST

Mother's Day 2024 एक मां के लिए इससे बुरा क्या हो सकता है कि जिस बच्चे को उसने 9 महीने कोख में रखा, वो वृद्धावस्था में उसका साथ छोड़ दे. मुश्किल वक्त में सहारा देने वाली लाठी दर्द देने वाली बन जाए और उंगली पकड़कर चलना सीखने वाला अपना अलग रास्ता इख्तियार कर ले. ऐसे ही कई मां हैं, जो उम्र के इस पड़ाव में वृद्धा आश्रमों में दिन गुजार रही हैं. आज मदर्स डे पर कुछ ऐसे ही मां से आपको मिलवाते हैं.

Mother Live in Old Age Home Dehradun
मां की दास्तान (फोटो- ईटीवी भारत)

वृद्धाश्रम में जीवन यापन कर रही महिलाएं (वीडियो- ईटीवी भारत)

देहरादून (उत्तराखंड): आज मदर्स डे है यानी वो खास दिन जो मां की ममता के लिए समर्पित है. लेकिन आज भी कई मां ऐसे हैं, जिन्हें अपनों ने ही दुत्कार कर घर से बाहर कर दिया. जो वृद्धा या महिला आश्रमों में दिन गुजार रही हैं. आज भी कई मां दर्द भरी यादों को अपने दिल में दबाए बैठी हैं. इनकी बूढ़ी हो चुकी आंखें अपनों को देखना चाहती हैं. बीते दर्द भरे पल को भूलने की भी कोशिश होती है, लेकिन बुढ़ापे की कमजोर याददाश्त को भी मां की ममता मात दे देती है.

Mother Live in Old Age Home Dehradun
महिला आश्रम में वृद्ध महिलाएं (फोटो- ईटीवी भारत)

सीमा गुजराल ने भजन से बयां किया दर्द: करीब 75 साल की सीमा गुजराल पिछले 17 साल से अखिल भारतीय महिला आश्रम में रह रही हैं. सीमा गुजराल खुद को देहरादून की ही बताती हैं. उनका कहना है कि वो देहरादून की एमडीडीए कॉलोनी में ही रहती थी. हर बार अपनी बातों को दोहराते हुए सीमा गुजराल ज्यादा तो कुछ नहीं बता पातीं, लेकिन उनकी ओर से भजन की कुछ लाइनें ये जरूर जाहिर कर देती है कि अब उन्होंने अपना पूरा ध्यान भक्ति में डाल दिया है. हालांकि, उनकी आंखें अपनों की यादों को न भूल पाने का गम भी जाहिर करती हैं.

Mother Live in Old Age Home Dehradun
महिला आश्रम में दिन गुजार रही महिलाएं (फोटो- ईटीवी भारत)

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती, बस एक मां है, जो मुझसे खफा नहीं होती... मशहूर शायर मुनव्वर राणा की ये पंक्तियां एक मां की अपने बच्चों के लिए सोच को बयां करती है, लेकिन कई बार मां का यही प्यार उसके जीवन को ही मुश्किल बना देता है. मां की ममता को उसका फर्ज और जिम्मेदारी बताया जाता है, लेकिन बच्चे अपनी जिम्मेदारी को याद रखने की जहमत नहीं उठाते. देहरादून की रहने वाली सुनीता गुप्ता की भी कहानी कुछ ऐसी ही है.

पार्षद रहीं सुनीता गुप्ता ने सुनाई पीड़ा: देहरादून में कभी राजनीति के मैदान में उतरकर पार्षद का चुनाव जीतने वाली सुनीता गुप्ता का आज नया पता वृद्धा आश्रम है. अखिल भारतीय महिला आश्रम में पिछले कुछ समय से रह रही सुनीता ने खुशहाल परिवार को अपनी आंखों से उजड़ते देखा. पति और सास ससुर के साथ बच्चों की परवरिश की और एक खुशहाल परिवार के साथ समय बिताया, लेकिन कहते हैं कि वक्त बदलते देर नहीं लगती. धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे और बच्चों की शादी का कर्तव्य भी माता-पिता ने निभाया. बस इसके बाद परिवार में सब कुछ बदलता चला गया.

सुनीता गुप्ता कहती है कि साल 2003 के करीब उन्होंने महिला सीट होने के चलते देहरा खास क्षेत्र से पार्षद का चुनाव लड़कर जीत हासिल की. इसके बाद अपने बेटे और बेटी दोनों की ही बड़ी धूमधाम से शादी भी करवाई, लेकिन एक हंसते खेलते परिवार में नए सदस्य की एंट्री के साथ ही हालात बदल गए. पति की मृत्यु के बाद वो भी दिल की मरीज हो गईं. प्रॉपर्टी के बंटवारे पर बात शुरू हो गई और रोज नए क्लेश होने लगे. इसके बाद उन्होंने आखिर कर वृद्धा आश्रम जाने का निर्णय ले लिया.

सुनीता गुप्ता कहती हैं कि वो वृद्ध आश्रम तो आ गई, लेकिन आज भी हर पल उन्हें अपने बच्चों की याद आती है. अब उनकी अपने बच्चों से भी कोई बातचीत नहीं होती और बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद के मन को समझाकर ममता के मोह को त्यागने के लिए तैयार किया. अब उनकी कोशिश होती है कि आश्रम में ही सबके साथ मिलकर रहे और जितना मौका मिले, दूसरों की सेवा करने की कोशिश होती है. इस बीच वो केवल एक लाइन में इतना जरूर रहती है कि बच्चों को अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना ही चाहिए.

उषा शर्मा बोलीं- कभी नहीं सोचा था आश्रम जाना पड़ेगा: इसी आश्रम में उषा शर्मा नाम की महिला भी रहती हैं, जो कि बिजनौर की रहने वाली हैं. उषा शर्मा कहती हैं कि उनकी दो बेटियां हैं, जो उन्हें अपने साथ रहने के लिए भी कहती हैं, लेकिन बेटियों के परिवार में उनका जाना सही नहीं रहेगा. इसलिए वो वहां रहने नहीं जाती. उषा शर्मा की सोच जानकर एक मां का अपने बच्चों के लिए बलिदान देने की भावना का भी पता चलता है. उषा रहती है कि उनकी बेटियां आश्रम में उन्हें कई बार मिलने आती और उन्होंने कई बार अपने साथ घर चलने के लिए भी उन्हें कहा है, लेकिन क्योंकि उनकी बेटियां शादीशुदा है.

अब उनके घर में जाना उनके परिवार को परेशान करने वाला होगा, इसलिए वो वहां जाने से इंकार करती हैं. उषा चाहती हैं कि वो अपने बच्चों के साथ रहे, लेकिन अपनी बेटी के घर जाने से उसके परिवार और उसके बच्चों के सामान्य जीवन में परेशानी आ सकती है. उनकी बीमारी के चलते उनकी बेटी को भी परेशान होना पड़ेगा. ऐसे में उनकी केवल एक ही तमन्ना है कि उनकी बेटियां खुश रहे. अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करें.

उषा शर्मा ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन्हें आश्रम जाना पड़ेगा, लेकिन समय और परिस्थितियों के कारण उन्हें यहां आना पड़ा. हालांकि, इस दौरान वो कहती हैं कि आश्रम में बेहद अच्छा माहौल है और यहां पर दूसरी कई वृद्ध महिलाएं भी हैं. इसके अलावा यहां होने वाले अलग-अलग कार्यक्रमों के कारण भी उनका मन लगा रहता है, लेकिन खासतौर पर तीज त्यौहार के समय परिवार की यादें परेशान करने लगती है. हर पल मन में परिवार की पुरानी यादें घूमने लगती है.

आश्रम में इन वृद्ध महिलाओं की देखरेख करने और आश्रम की तमाम व्यवस्थाओं को देखने वाली पूनम गर्ग रहती हैं कि आश्रम में महिलाओं की सुख सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है. कोशिश की जाती है कि इन वृद्ध महिलाओं को किसी भी तरह की दिक्कत न हो. उनके खाने-पीने से लेकर उनके स्वास्थ्य संबंधी हर कार्य को आश्रम की तरफ से किया जाता है. ये सभी वृद्ध महिलाएं आपस में रहकर एक दूसरे की मदद भी करती हैं.

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Last Updated :May 12, 2024, 6:43 PM IST
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