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उत्तराखंड में सादगी से मनाया गया मोहर्रम, दो गज की दूरी का सभी ने किया पालन

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Published : Aug 21, 2021, 6:56 AM IST

Updated : Aug 21, 2021, 9:28 AM IST

मोहर्रम के दिन शिया समुदाय इमाम हुसैन (Imam Hussain ) और उनके परिवार की मौत का शोक मनाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं. इतनी ही नहीं इस दौरान वह हर तरह के जश्न से दूर रहते हैं.

Roorkee News
मुहर्रम की तैयारी

रुड़की: कोरोना के चलते दो सालों से मोहर्रम के मौके पर जिले में ताजिए का जुलूस नहीं निकाला गया. इस बार भी मोहर्रम सादगी से मनाया गया. इस दौरान शासन-प्रशासन द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइन का पालन किया गया.

इस्लामिक जानकार बताते हैं कि इंसानियत और इंसाफ को जिंदा रखने के लिए इमाम हुसैन शहीद हुए, इमाम हुसैन सहित 72 लोगों को शहीद कर दिया गया. अपने हजारों फौजियों की ताकत के बावजूद यजीद, इमाम हुसैन और उनके साथियों को अपने सामने नहीं झुका सका. दीन के इन मतवालों ने झूठ के आगे सिर झुकाने के बजाय अपने सिर को कटाना बेहतर समझा और वह लड़ाई इस्लाम की एक तारीख बन गई. उन्होंने बताया मोहर्रम की 10 तारीख जिसे आशूरा का दिन कहा जाता है, इस दिन दुनियाभर में मुसलमान इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत को याद करते हैं.

उत्तराखंड में सादगी से मनाया गया मोहर्रम.

पढ़ें-मोहर्रमः 72 वफादार निहत्थे साथियों के साथ कर्बला में उतरे थे हुसैन, जानिए क्या है परंपरा

उन्होंने बताया यह महीना कुर्बानी, गमखारी और भाईचारे का है. बता दें कि मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है. इस महीने की 10 तारीख यानी आशूरा के दिन दुनियाभर में मुसलमान इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इराक के कर्बला में हुई शहादत को याद करते हैं. मुहर्रम की 9 तारीख को ताजिये निकाले जाने की परम्परा है और 10 तारीख को मोहर्रम को ताजियों को सुपुर्दे खाक किया जाता है.

माना जाता है कि हजरत इमाम हुसैन इंसानियत और इस्लाम को बचाने के लिए निहत्थे अपने 72 वफादार साथियों के साथ कर्बला के मैदान में उतरे थे. जहां पर इस्लाम के दुश्मन यजीद के साथ लड़े थे. इसमें यजीद ने हजरत इमाम हुसैन को इस्लाम धर्म का बड़ा पैरोकार मानते हुए बेरहमी से उनकी और उनके साथियों का कत्ल कर दिया था. मोहर्रम के दिन शिया समुदाय इमाम हुसैन (Imam Hussain ) और उनके परिवार की मौत का शोक मनाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं. इतनी ही नहीं इस दौरान वह हर तरह के जश्न से दूर रहते हैं.

पढ़ें-जानिए मोहर्रम से जुड़े अहम तथ्य, क्यों हुई थी करबला की लड़ाई?

कर्बला की लड़ाई:मोहर्रम के 10वें दिन करबला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई.

इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मोहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

मोहर्रम के 10वें दिन कर्बला में भीषण युद्ध हुआ, जिसे आशूरा के नाम से भी जाना जाता है. लड़ाई 680 सीई में यजीद और इमाम हुसैन के बीच लड़ी गई. इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना (army of Imam Hussain) में उनके दोस्त, रिश्तेदार, परिवार सहित महिलाएं और छोटे बच्चे शामिल थे, तो वहीं दूसरी ओर यजीद सेना में हजारों सैनिक शामिल थे.

यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके समूह को गिरफ्तार कर लिया और रेगिस्तान की गर्मी में लगातार तीन दिनों तक पानी और भोजन नहीं दिया.

उसके बाद यजीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके छह साल के बेटे की बेरहमी से हत्या कर दी और महिलाओं को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मोहर्रम के महीने में बेगुनाहों की शहादत के सम्मान (sacrifice of innocent lives) में मुसलमान शोक मनाते हैं.

Last Updated :Aug 21, 2021, 9:28 AM IST

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