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शारदीय नवरात्र 2023 पर उत्तराखंड के इन मंदिरों के करें दर्शन, मिलेगा मनचाहा फल!

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 15, 2023, 6:04 PM IST

Shardiya Navratri 2023 शारदीय नवरात्र के नौ दिनों की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्र के इन नौ दिनों में मां भगवती के 9 रूपों की उपासना करने से माता की विशेष कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है. शारदीय नवरात्र के मौके पर आप उत्तराखंड में मौजूद देवी के सिद्धपीठ और शक्तिपीठों के दर्शन कर सकते हैं, जहां आपको दर्शन मात्र से ही मनचाहा फल मिल सकता है. Shakti Peeth of Maa Durga in Uttarakhand

Shardiya Navratri 2023
शारदीय नवरात्र 2023

देहरादूनःआज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. आज से आने वाले 9 दिनों तक मां भगवती के 9 रूपों की मंदिरों में उपासना की जाएगी. पहले दिन मां शैलपुत्री की मंदिरों में उपासना की गई. देवभूमि उत्तराखंड के मंदिरों में नवरात्र के पहले दिन भक्तों की भारी भीड़ नजर आई. भक्तों ने मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हुए देवी से देश में सुख शांति का वरदान मांगा. उत्तराखंड के शक्तिपीठ मंदिरों में दूर-दूर से आए भक्तों ने भी देवी की पूजा की. उत्तराखंड में कुछ ऐसे भी देवी के मंदिर हैं, जिनकी कई दशकों पुरानी पौराणिक मान्यताएं हैं. लोग दूर-दूर से अपनी मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

टिहरी जिले के धनौल्टी के पास मां सुरकंडा देवी की मंदिर स्थित है.

सुरकंडा देवी मंदिर: मां सुरकंडा देवी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल धनौल्टी के नजदीक है. मसूरी-चंबा मार्ग पर धनौल्टी से तकरीबन 7 किमी आगे कद्दूखाल नामक स्थान पर 52 शक्ति पीठ में से एक मां सुरकंडा देवी का मंदिर डेढ़ किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़कर पहाड़ी पर है. सुरकंडा देवी मंदिर, मध्य हिमालयी रेंज में मौजूद एक ऊंचे पहाड़ पर समुद्र तल से 2756 मीटर की ऊंचाई पर है. मंदिर की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवी सती ने पिता दक्षेश्वर द्वारा किए जा रहे यज्ञ में अपने प्राण दे दिए थे और भगवान शिव, मां सती यानी पार्वती का मृत शरीर लेकर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण कर रहे थे. तभी भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर के सुदर्शन चक्र से 52 टुकड़े कर दिए थे. इन्ही में से माता सती का सिर सुरकंडा मंदिर की पहाड़ी पर गिरा. तभी से 52 शक्ति पीठ में से एक सुरकंडा देवी का मंदिर स्थापित है.

दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त: केदारखंड और स्कंद पुराण में जिक्र है कि राजा इंद्र ने यहीं पर ही देवी की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस प्राप्त किया था. यह देवी इस पूरे इलाके की कुलदेवी के रूप में भी जानी पूजी जाती है. भक्त आदिकाल से अपने दुख-दर्द और समस्याएं लेकर अपनी कुल देवी से खुशहाली की कामना करने के लिए आते रहे हैं. पिछले कुछ सालों में मंदिर का भव्य पुननिर्माण और रोपवे स्थापित होने के बाद लोगों की तादाद बढ़ी है. मंदिर में हर साल मई से जून माह के बीच में गंगा दशहरा का मेला लगता है. नवरात्र में भी दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं. सुंदर मध्य हिमालय की पहाड़ियों के ऊंचे शिखर पर मौजूद इस मंदिर से एक तरफ हिमालय दर्शन तो दूसरी तरफ देहरादून, ऋषिकेश जैसे मैदानी शहरों का सुंदर मनोरम दृश्य नजर आता है. यह मंदिर साल भर ज्यादातर कोहरे से ढका रहता है.
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चंडी देवी मंदिर:हरिद्वार में मौजूद तीर्थों और माता के सिद्ध पीठों में से एक मां चंडी देवी का मंदिर बेहद प्रसिद्ध और पुराना है. धर्मनगरी हरिद्वार में मौजूद चंडी देवी का मंदिर हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रृंखला शिवालिक पहाड़ियों के पूरब में मौजूद नील पर्वत के ऊपर स्थित है. मां चंडी देवी मंदिर का निर्माण देश की आजादी से पहले 1929 में कश्मीर के राजा सुचत सिंह ने करवाया था. लेकिन मान्यता है कि चंडी देवी की मुख्य मूर्ति की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी. जिस पर्वत पर मां चंडी देवी का मंदिर है, उसे नील पर्वत के रूप में जाना जाता है. यहां जाने के लिए रोपवे व्यवस्था भी मौजूद है. मां चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. नवरात्र में भक्तों की संख्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

खंभ के रूप में विराजमान मां दुर्गा: धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, गंगा तट से लगे नील पर्वत के शिखर पर मां चंडी का दरबार तब से है जब शुंभ, निशुंभ राक्षस ने धरती पर हाहाकार मचाया हुआ था. फिर देवताओं ने उनके संहार के लिए भगवान भोलेनाथ से गुहार लगाई. भगवान शिव और देवताओं के तेज से मां चंडी अवतरित हुईं. मां चंडी से बचने के लिए शुंभ, निशुंभ गंगा के तट पर मौजूद नील पर्वत पर छिप गए. इसके बाद मां चंडी ने नील पर्वत पर खंभ के रूप में प्रकट होकर इन दोनों राक्षसों का वध किया. बताया जाता है कि इसके बाद मां चंडी ने देवताओं को वर मांगने के लिए कहा. तब देवताओं ने मानव जाति के कल्याण के लिए माता से इसी स्थान पर विराजमान होने का वर मांगा. तब से ही माता यहां पर विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं.

पौड़ी के श्रीनगर से 14 किमी की दूरी पर अलकनंदा नदी के तट पर मां धारी देवी का मंदिर.

मां धारी देवी मंदिर: देवभूमि उत्तराखंड में रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों की भरमार हैं. ऐसा ही एक धारी देवी माता का मंदिर पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर से तकरीबन 14 किलोमीटर की दूर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है. हालांकि अब जल विद्युत परियोजना के चलते मंदिर पानी के बीच में आ गया है. धारी देवी मंदिर बेहद रहस्यमयी और चमत्कारिक है. ऐसा कहा जाता है कि यहां पर मौजूद माता की मूर्ति हर दिन तीन बार अपना रूप बदलती है. मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति को अगर सुबह के समय देखा जाए तो वह एक कन्या के रूप में प्रतीत होती हैं. दोपहर में युवती और फिर शाम को बुजुर्ग महिला के रूप में नजर आती हैं.
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रक्षा की देवी: धारी देवी मंदिर का यह चमत्कार अपने आप में एक चौंकाने वाला तथ्य है. अलकनंदा नदी में जलविद्युत परियोजना के चलते बनी झील के कारण अब यह मंदिर झील के बीचों-बीच आ गया है. धारी देवी को मां काली का रूप माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में मौजूद मां धारी देवी उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षा की जिम्मेदारी उठाती हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धारी देवी को पहाड़ों पर आने वाले तीर्थयात्रियों की रक्षा की देवी भी कहा जाता है.

मां ने लगाई चमत्कारिक आवाज: मां धारी देवी मंदिर के स्थापना को लेकर पौराणिक कथा है कि एक बार पहाड़ में भीषण बाढ़ से मंदिर बह रहा था. मंदिर के साथ-साथ मंदिर की मुख्य मूर्ति भी बहने लगी थी. लेकिन मूर्ति धार गांव के पास एक चट्टान की आड़ में रुक गई. बताया जाता है कि माता ने खुद चमत्कारिक आवाज के जरिए धार गांव के लोगों को उसी जगह उनकी मूर्ति की स्थापना करने के निर्देश दिए. इस घटना के बाद गांव वालों ने मिलकर नदी के इसी जगह पर माता के मंदिर की स्थापना की. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जितना पुराना मां गंगा और कैलाश का इतिहास है. उतना ही पुराना मां धारी देवी का भी इतिहास है. बताया जाता है कि मंदिर में मां धारी की मूर्ति द्वापर युग की है.
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मां नंदा देवी, कुरुड़, चमोली: भगवती नंदा यानी मां पार्वती को समर्पित नंदा देवी सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर उत्तराखंड के सीमांत जिला चमोली में मौजूद है. नंदा का शाब्दिक अर्थ जगत जननी होता है. चमोली के करुड़ में मौजूद मां नंदा देवी का मंदिर मां नंदा का मायका यानी कि मूल स्थान माना जाता है. इस मंदिर से होने वाली कैलाश यात्रा, नंदा देवी राजजात उत्सव के नाम से प्रसिद्ध है. इस मंदिर से नंदा देवी डोली और उनके छोटे भाई लाटू देवता, भूम्याल भूमि के क्षेत्रपाल देवता आदि अलग-अलग भव्य और सजे हुए रथों में विराजमान होकर मायके से ससुराल की ओर यात्रा के रूप में निकलते हैं.

पहाड़ी परंपराओं से सराबोर मां नंदा देवी का मंदिर: मां नंदा देवी कई नामों से पूरे उत्तराखंड में पूजी जाती है. मां नंदा देवी देवभूमि की पौराणिक जातियां रही किरात, नाग, कत्यूरी वंश की सभी जातियों में मुख्य देवी का स्थान रखती है. तकरीबन 1 हजार साल पहले भी किरात जाति के लोग भद्रेश्वर पर्वत की तलहटी में मां नंदा देवी की पूजा करते थे. चमोली में मौजूद मां नंदा देवी का मंदिर पहाड़ी परंपराओं से सराबोर है. इसके पहले पुजारी सूरमा भोज गौड़ थे और तब से ही मां नंदा देवी मंदिर के मुख्य पुजारी कान्यकुब्ज गौड़ ब्राह्मण हो गए हैं.

हरिद्वार में शिवालिक पहाड़ी पर मां मनसा देवी का मंदिर है.

मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार: हरिद्वार के हर की पैड़ी से बिल्कुल नजदीक मां मनसा देवी का मंदिर है. मनसा देवी का यह मंदिर हिमालय की आखिरी शिवालिक पहाड़ियों पर बसा एक सुंदर प्राकृतिक छटा वाला मंदिर है, जो कि हरिद्वार के पंच तीर्थों में से भी एक है. हरिद्वार में मौजूद मां मनसा देवी का यह मंदिर मां शक्ति का एक स्वरूप है, जहां नवरात्र में भक्तों का खुब तांता लगता है. मंदिर को लेकर कहा जाता है कि मां मनसा देवी, भगवान शिव के मन से उत्पन्न हुई हैं. मां मनसा को नाग वासुकि की बहन के रूप में भी जाना जाता है. इसके अलावा मां मनसा देवी को मानव अवतार में भगवान शिव की पुत्री के रूप में भी जाना जाता है. मनसा का शाब्दिक अर्थ 'इच्छा' होता है. ऐसी मान्यता है कि मनसा देवी अपने भक्तों के मन की बात जानती हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
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