वाराणसी:समाज में आज भी कुछ लोग बेटियों को बोझ समझते हैं. ऐसी मानसिकता के लोग बेटियों के जन्म पर उतनी खुशी जाहिर नहीं करते, जितना कि बेटे के जन्म पर. बेटियों को भ्रूण हत्या से बचाने और उनके प्रति समाज की सोच को बदलने का डॉ. शिप्रा धर ने बीड़ा उठाया है. वे अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर वह उत्सव मनाती हैं. प्रसूता का सम्मान करने के साथ ही मिठाइयां बंटवाती हैं. इतना ही नहीं, बेटी चाहे नार्मल हुई हो या सिजेरियन से, वह फीस भी नहीं लेतीं.
बता दें कि डॉ. शिप्रा का बचपन बड़े ही संघर्षों में गुजरा. जब वह छोटी थीं तभी उनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चले गये. बेटियों के प्रति समाज में भेदभाव को देखकर उनके मन में शुरू से इच्छा थी कि वह बड़ी होकर इस दिशा में कुछ जरूर करेंगी. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2000 में एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. शिप्रा ने अशोक विहार कालोनी में नर्सिंग होम खोला.
डॉ. शिप्रा बताती हैं कि इस बात को वह काफी दिनों से महसूस कर रही थीं कि प्रसव कक्ष के बाहर खड़े परिजनों को जब यह पता चलता था कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते थे. उनकी आपसी बातचीत से यह पता चल जाता था कि उन्हें तो बेटा होने का इंतजार था और अब बेटी ने एक बोझ के रूप में जन्म ले लिया है. बच्ची के जन्म पर उसके परिवार में फैली मायूसी को दूर करने और लोगों की इस सोच को बदलने का उन्होंने संकल्प लिया और तय किया कि अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म को एक उत्सव के रूप में मनायेंगी.
साथ ही, प्रसूता को सम्मानित करेंगी और जच्चा-बच्चा के उपचार का कोई फीस नहीं लेंगी. इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति डॉ. मनोज श्रीवास्तव ने भी काफी सहयोग किया. नतीजा है कि वर्ष 2014 से शुरू हुए इस अभियान में उनके नर्सिंग होम में पांच सौ से अधिक बेटियों ने जन्म लिया और इनमें से किसी भी अभिभावक से उन्होनें फीस नहीं ली.
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