मध्य प्रदेश

madhya pradesh

Dev Deepawali: दीप दान से मिलेगी सुख-समृद्धि, कार्तिक पूर्णिमा पर होती है भगवान शिव विष्णु-लक्ष्मी और भीष्म पितामह की पूजा

By

Published : Nov 18, 2021, 3:32 PM IST

Updated : Nov 18, 2021, 3:40 PM IST

मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही दीप दान (Dev Deepawali) का विशेष महत्व होता है, इसलिए गंगा में डुबकी लगाने के बाद बहते पानी में दीप दान करना या फिर देवालय में पहुंचकर दीप जलाने मात्र से ही सारे कष्टों का निवारण होता है. मान्यता यह है कि भीष्म की पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों को छूने से अलग अलग वरदान मिलते हैं.

dev deepawali kartik purnima 2021
देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा

वाराणसी। हिंदू धर्म में व्रत, त्योहार और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. विशेष पर्वों पर स्नान कर पुण्य प्राप्ति के लिए लोग गंगा घाटों, नदियों और सरोवरों के तटों पर पहुंचते है. ऐसा ही महापर्व है, जो कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के साथ ही दीप दान का विशेष महत्व होता है, इसलिए गंगा में डुबकी लगाने के बाद बहते पानी में दीप दान करना या फिर देवालय में पहुंचकर दीप जलाने (Dev Deepawali) मात्र से ही सारे कष्टों का निवारण होता है.

आज के दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन तुलसी का बैकुंठ धाम में आगमन हुआ था. इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी पूजा का खास महत्व है. इसी दिन तुलसी का पृथ्वी पर आगमन भी हुआ था. इस दिन श्रीहरि की पूजा में तुलसी अर्पित करना लाभदायक होता है.ऐसी मान्यता है कि इस दिन घरों में तुलसी के पौधे के आगे दीपक जलाने और भगवान विष्णु की पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं. कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक और सद्बुद्धि प्रदान करने वाला है. यह मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है.

Chandra Grahan November 2021 : 21वीं सदी के सबसे लंबे चंद्र ग्रहण का 7 राशियों पर होगा गहरा असर, जानें आसान से उपाय

कब होगा शुभ मुहर्त (Kartik Purnima Shubh Muhurt)

19 नवंबर 2021 को कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2021) का पर्व मनाया जाएगा. पंडित जितेंद्र जी महाराज ने बताया कि 18 नवंबर को दोपहर 12:00 बजे के बाद से ही कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) लग जाएगी, जो 19 नवंबर की देर शाम को समाप्त होगी. इस शुभ मुहूर्त में भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन कर सकते हैं.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व (Kartik Purnima significance)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध किया था और देवताओं को उनका स्वर्ग वापस दिलाया था इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है. त्रिपुरासुर के वध और भगवान शिव की इस जीत को सभी देवताओं ने शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर जाहिर किया, जिसे देवताओं की दिवाली के रूप में जाना जाता है. तब से लेकर यह परंपरा अनवरत निभाई जा रही है.

Sun Transit November 2021 : ग्रहों के राजा सूर्य का मित्र की राशि में प्रवेश, जानें अपनी राशि पर असर

वहीं, कुछ कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु मत्स्य अवतार लेकर लोगों के जीवन की रक्षा की थी. इसी दिन गंगा किनारे देवता दीपावली (Dev Deepawali) मनाते हैं. इसलिए इस दिन को देव दीपावली (Dev Deepawali) भी कहा जाता है. लोग गंगा किनारे दीपक जलाकर भगवान विष्णु और अपने इष्ट देवताओं का पूजन करते हैं. शास्त्रों के अनुसार पतित पावनी मां गंगा जब धरती पर जीवों के कल्याण के लिए अवतरित हुई तब ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं ने मां गंगा का धरती पर स्वागत किया था. इस दिन दीये जलाकर देवी-देवताओं ने मां गंगा की आराधना की थी और इस दिन गंगा नदी के तट पर असंख्य दीये जलाकर उत्सव मनाया जाता है.

धन-संपत्ति और सुख-समृद्धि की होती है प्राप्ति

कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वाले भक्तों को जीवन में धन-संपत्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2021) को विधिवत रूप पूजन करने वाले भक्तों को मृत्यु के बाद यम मार्ग से मुक्ति एवं विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार देव दिवाली के दिन ही भगवान विष्णु (Lord Vishnu) से राजा बली को मुक्ति मिली थी और वह स्वर्ग पधारे थे, जिसके बाद सारे देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी.

जब Sachin met CM shivraj : शिवराज सरकार सचिन के 'परिवार' को देगी पूरा सहयोग और समर्थन, जानिए क्या है मामला

भीष्म पंचक का समापन

भगवान आशुतोष की नगरी काशी में एकादशी के बाद कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा पुत्र भीष्म की पूजा की जाती है. यह एक अनोखी परंपरा है. वाराणसी में इस पूजन का बहुत ही महत्व बताया गया है. कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक भीष्म पंचक माना गया है. पंचक प्रबोधिनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक पूर्णिमा तक रहेगा. कार्तिक के अंतिम 5 दिन उनके दर्शन-पूजन करने श्रद्धालु आते रहते हैं. मान्यता यह है कि भीष्म की पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों को छूने से अलग अलग वरदान मिलते हैं. पूजा करने के लिए घाट के किनारे गंगा पुत्र भीष्म की प्रतिमा को गंगा की माटी से आकार दिया जाता है. सुबह गंगा स्नान के बाद महिलाएं भीष्म की पूजा करती हैं. फूल, अक्षत और विभिन्न प्रकार के नैवेद्य चढ़ाए जाते हैं. भीष्म से परिवार की सुख-शांति, समृद्धि और कष्टों के निवारण के लिए प्रार्थना की जाती है. मान्यता है कि हर प्रकार की पीड़ा से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है.

ग्रहण सूतक काल के दौरान गर्भवती महिलाएं रखें ये सावधानियां

जो एक महीना कार्तिक गंगा स्नान नहीं कर पाता, वह 5 दिन प्रबोधिनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान के साथ भीष्म की पूजा करता है, उसे सभी प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है. मान्यता यह है कि भीष्म की पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों को छूने से अलग-अलग वरदान मिलते हैं. इसकी मान्यता है कि सिर छूने से बैकुंठ जाने का फल मिलता है. पैर छूने से तीर्थ जाने का फल मिलता है. हाथ स्पर्श करने से दान देने का फल मिलता है. नाभि छूने से नाती होता है.

Last Updated :Nov 18, 2021, 3:40 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details