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ये कचरा भी कर देगा मालामाल, अब यहां-वहां फेंकने या जलाने से पहले दस बार सोचेंगे लोग - Turning Waste into Money

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 28, 2024, 6:43 AM IST

Updated : May 28, 2024, 7:04 AM IST

जिस कचरे को यहां-वहां फेक दिया जाता है या जला दिया जाता है, जब उससे ही पैसा बनने लगेगा तो लोग कचरा फेंकने से पहले दस बार सोचेंगे. प्रदेश के किसानों के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलेगा, फसलों के जिस कचरे को किसान जला देते थे अब वो कचरा उन्हें मालामाल कर देगा, आइए जानते हैं कैसे..

Turning Waste into Money
ये कचरा भी बना देगा मालामाल (Etv Bharat)

छिन्दवाड़ा. कभी सोचा है कि कचरा भी किसी को मालामाल कर सकता है? सुनने में अजीब लगे है लेकिन एक तकनीक ने इसे भी संभव कर दिया है. अब किसान फसल के बचे हुए कचरे से भी मालामाल हो सकते हैं. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक युवा ने कचरे से बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है, जो सीधे किसानों से फसल का कचरा खरीदते हैं और उसी से बायोमास ब्रिकेट्स बनाया जाता है.

कचरा बनाएगा किसानों को मालामाल

अब तक अधिकतर किसान फसल काटने के बाद बचे हुए कचरा या पराली को जलाकर नष्ट करते हैं, जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता भी कमजोर होती है. लेकिन किसान अब फसल के कचरे से मालामाल हो सकता है. इसके लिए छिंदवाड़ा शहर के एक युवा राहुल बंसल ने फसल के कचरे से बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का कारखाना शुरू किया है.

Turning Waste into Money
बायोमास ब्रिकेट्स (ETV BHARAT)

पर्यावरण को भी नुकसान से बचाएगा

बायोमास ब्रिकेट्स सिर्फ व्यापार को बढ़ावा नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण को कम करने में भी मदद करता है. इसका उपयोग हीटिंग, होटलों, कैंटीन, कैफेटेरिया, रसोई उपकरण व बिजली उत्पादन में किया जा सकता है. इसे कोयले के विकल्प की तरह उपयोग किया जाता है. जिले में बन रहे बायोमास ब्रिकेट की डिमांड मप्र व महाराष्ट्र की फूड इंडस्ट्री में ज्यादा है. राहुल बंसल ने बताया कि ब्रिकेट्स में कार्बन बहुत कम मात्रा में निकलता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान कम होगा, धुंआ रहित होने से वायु प्रदूषण को रोकने में भी मदद मिलेगी. भूसा, छुई, झाड़ियां जैसे कचरे का उपयोग होने से स्वच्छता को भी बढ़ावा मिलेगा. किसानों को अपनी उपज के दाम के साथ वेस्ट मटेरियल के दाम भी मिलेंगे जिससे आमदनी भी बढ़ेगी.

इस तरह बनती हैं ब्रिकेट्स

ब्रिकेट्स बनाने के लिए हर फसल का वेस्ट इस्तेमाल किया जाता है. मक्के के दाने निकालने के बाद बची हुई छुई, मूंगफल्ली के छिलके, सरसों, तुअर, सोयाबीन, गेहूं का भूसा, लकड़ी, सूखी झाड़ियों के बुरादे का एक मिश्रण बनाकर रोलर में डाला जाता है. इसके बाद रोलर से बेलनाकार ब्रिकेट्स बाहर निकलते हैं। इसे ही बायोमास ब्रिकेट कहा जाता है. आमतौर पर इसे भट्टी और चूल्हों में उपयोग किया जा सकता है, जिसके कारण जंगलों से लकड़ी काटने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और जंगल भी सुरक्षित रहेंगे.

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बायोमास ब्रिकेट्स (ETV BHARAT)

आप भी कर सकत हैं ब्रिकेट्स बनाने का काम

बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का कारखाना आप भी शुरू कर सकते हैं. इसके लिए 20 से 50 लाख रुपए तक की लागत होती है, जिसके लिए बैंक से लोन दिया जाता है. बायोमास ब्रिकेट्स बड़े-बड़े कारखाने से लेकर छोटे होटलों तक बिकते हैं. इसे लकड़ी और कोयले के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है. इससे धुआं भी कम निकलता है और ये सस्ता भी पड़ता है. बाजार में इसके रेट 2 रु से लेकर 10 रु किलो तक है.

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एमपी में केरल की तरह मसालों की खेती, लौंग, इलायची व काली मिर्च करेंगे मालामाल

तकनीक के इस्तेमाल से होंगे मालामाल

कृषि वैज्ञानिक एवं हार्टिकल्चर कॉलेज के डीन डॉ. विजय पराड़कर ने कहा, '' रोजमर्रा की जरूरतों में आज हर व्यक्ति सबसे ज्यादा ऊर्जा पर खर्च करता है. जैसे पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली पर कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च होता है. हमारे देश में पेट भरने के लिए अनाज के उत्पादन की पर्याप्त व्यवस्था है। लेकिन भविष्य को देखते हुए हमें ऊर्जा के उत्पादन की तरफ बढ़ने की जरूरत है और इसकी शुरुआत हो चुकी है. खेती का बदलता स्वरूप इसका उदाहरण है. जिले के किसान भी समय की मांग को देखते हुए तकनीक का बेहतर फायदा उठा रहे हैं. मक्का, दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर एथेनॉल, बायो फ्यूल, बायो ब्रिकेट्स के उत्पादन के लिए खेती में बदलाव कर रहे हैं''

छिन्दवाड़ा. कभी सोचा है कि कचरा भी किसी को मालामाल कर सकता है? सुनने में अजीब लगे है लेकिन एक तकनीक ने इसे भी संभव कर दिया है. अब किसान फसल के बचे हुए कचरे से भी मालामाल हो सकते हैं. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक युवा ने कचरे से बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है, जो सीधे किसानों से फसल का कचरा खरीदते हैं और उसी से बायोमास ब्रिकेट्स बनाया जाता है.

कचरा बनाएगा किसानों को मालामाल

अब तक अधिकतर किसान फसल काटने के बाद बचे हुए कचरा या पराली को जलाकर नष्ट करते हैं, जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता भी कमजोर होती है. लेकिन किसान अब फसल के कचरे से मालामाल हो सकता है. इसके लिए छिंदवाड़ा शहर के एक युवा राहुल बंसल ने फसल के कचरे से बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का कारखाना शुरू किया है.

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बायोमास ब्रिकेट्स (ETV BHARAT)

पर्यावरण को भी नुकसान से बचाएगा

बायोमास ब्रिकेट्स सिर्फ व्यापार को बढ़ावा नहीं बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण को कम करने में भी मदद करता है. इसका उपयोग हीटिंग, होटलों, कैंटीन, कैफेटेरिया, रसोई उपकरण व बिजली उत्पादन में किया जा सकता है. इसे कोयले के विकल्प की तरह उपयोग किया जाता है. जिले में बन रहे बायोमास ब्रिकेट की डिमांड मप्र व महाराष्ट्र की फूड इंडस्ट्री में ज्यादा है. राहुल बंसल ने बताया कि ब्रिकेट्स में कार्बन बहुत कम मात्रा में निकलता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान कम होगा, धुंआ रहित होने से वायु प्रदूषण को रोकने में भी मदद मिलेगी. भूसा, छुई, झाड़ियां जैसे कचरे का उपयोग होने से स्वच्छता को भी बढ़ावा मिलेगा. किसानों को अपनी उपज के दाम के साथ वेस्ट मटेरियल के दाम भी मिलेंगे जिससे आमदनी भी बढ़ेगी.

इस तरह बनती हैं ब्रिकेट्स

ब्रिकेट्स बनाने के लिए हर फसल का वेस्ट इस्तेमाल किया जाता है. मक्के के दाने निकालने के बाद बची हुई छुई, मूंगफल्ली के छिलके, सरसों, तुअर, सोयाबीन, गेहूं का भूसा, लकड़ी, सूखी झाड़ियों के बुरादे का एक मिश्रण बनाकर रोलर में डाला जाता है. इसके बाद रोलर से बेलनाकार ब्रिकेट्स बाहर निकलते हैं। इसे ही बायोमास ब्रिकेट कहा जाता है. आमतौर पर इसे भट्टी और चूल्हों में उपयोग किया जा सकता है, जिसके कारण जंगलों से लकड़ी काटने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और जंगल भी सुरक्षित रहेंगे.

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बायोमास ब्रिकेट्स (ETV BHARAT)

आप भी कर सकत हैं ब्रिकेट्स बनाने का काम

बायोमास ब्रिकेट्स बनाने का कारखाना आप भी शुरू कर सकते हैं. इसके लिए 20 से 50 लाख रुपए तक की लागत होती है, जिसके लिए बैंक से लोन दिया जाता है. बायोमास ब्रिकेट्स बड़े-बड़े कारखाने से लेकर छोटे होटलों तक बिकते हैं. इसे लकड़ी और कोयले के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है. इससे धुआं भी कम निकलता है और ये सस्ता भी पड़ता है. बाजार में इसके रेट 2 रु से लेकर 10 रु किलो तक है.

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तकनीक के इस्तेमाल से होंगे मालामाल

कृषि वैज्ञानिक एवं हार्टिकल्चर कॉलेज के डीन डॉ. विजय पराड़कर ने कहा, '' रोजमर्रा की जरूरतों में आज हर व्यक्ति सबसे ज्यादा ऊर्जा पर खर्च करता है. जैसे पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली पर कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च होता है. हमारे देश में पेट भरने के लिए अनाज के उत्पादन की पर्याप्त व्यवस्था है। लेकिन भविष्य को देखते हुए हमें ऊर्जा के उत्पादन की तरफ बढ़ने की जरूरत है और इसकी शुरुआत हो चुकी है. खेती का बदलता स्वरूप इसका उदाहरण है. जिले के किसान भी समय की मांग को देखते हुए तकनीक का बेहतर फायदा उठा रहे हैं. मक्का, दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर एथेनॉल, बायो फ्यूल, बायो ब्रिकेट्स के उत्पादन के लिए खेती में बदलाव कर रहे हैं''

Last Updated : May 28, 2024, 7:04 AM IST
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