श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को 'समान नागरिक संहिता के विभाजनकारी मुद्दे' का जिक्र करते हुए भारतीय सेना की भागीदारी पर सवाल उठाया है. उनका यह बयान भारतीय सेना द्वारा इस महीने श्रीनगर में 'नेविगेटिंग लीगल फ्रंटियर्स: अंडरस्टैंडिंग इंडियन पीनल कोड 2023 एंड द क्वेस्ट फॉर यूनिफॉर्म सिविल कोड' शीर्षक से एक कानूनी जागरूकता सेमिनार की मेजबानी करने की योजना की घोषणा के बाद आया है.
सम्मेलन के संवेदनशील राजनीतिक और धार्मिक मामलों में सेना के हस्तक्षेप की उपयुक्तता के बारे में चिंता जताई है. अब्दुल्ला ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय सेना ने ऐतिहासिक रूप से एक अराजनीतिक और धार्मिक रुख बनाए रखा है, और इससे कोई भी विचलन इसकी अखंडता से समझौता करने का जोखिम उठाता है. उन्होंने आगाह किया कि सेमिनार संभावित रूप से सेना पर राजनीतिकरण और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप के आरोप लगा सकता है, जिससे उसके बुनियादी सिद्धांतों को नुकसान पहुंच सकता है.
अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, 'क्या भारतीय सेना के लिए समान नागरिक संहिता के विभाजनकारी मुद्दे में शामिल होना उचित है और वह भी कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में? एक कारण है कि भारतीय सेना अराजनीतिक और धार्मिक बनी हुई है. यह गलत सलाह वाला यूसीसी सेमिनार इन दोनों बुनियादी सिद्धांतों के लिए खतरा है. इसके आगे बढ़ने पर सेना पर राजनीति की गंदी दुनिया में शामिल होने के साथ-साथ धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने के आरोप लगने का खतरा है'.