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उत्तरकाशी एवलॉन्च: लापता दो पर्वतारोहियों का GPR से पता लगाएगी NIM

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Published : Oct 25, 2022, 12:35 PM IST

उत्तरकाशी द्रौपदी का डांडा चोटी आरोहण के दौरान हुए हिमस्खलन (Uttarkashi Avalanche) की घटना में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी के दो प्रशिक्षु अभी भी लापता हैं. जिनकी तलाश में रेस्क्यू अभियान (Uttarkashi Avalaunch Rescue Operation) जारी है. वहीं हादसे में लापता दोनों प्रशिक्षु पर्वतारोहियों की खोजबीन अब ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar) की मदद ली जाएगी.

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उत्तरकाशी एवलॉन्च

उत्तरकाशी: हिमस्खलन (Uttarkashi Avalanche) हादसे में लापता दोनों प्रशिक्षु पर्वतारोहियों की खोजबीन अब ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar) से करेगी. नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने इसे खासतौर पर बेंगलुरू से मंगवाया है. निम प्रबंधन की मानें तो लापता प्रशिक्षु पर्वतारोहियों की खोजबीन में जीपीआर मददगार साबित होगा. दरअसल, ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार एक ऐसा सिस्टम है. जो मिट्टी, चट्टान, मलबे, कंक्रीट, पानी और बर्फ की सतह से नीचे की चीजों के बारे में भी पता लगा सकता है.

उत्तरकाशी एवलॉन्च में लापता की तलाश जारी: बीते 4 अक्टूबर को द्रौपदी का डांडा-2 (Uttarkashi Draupadi Danda Avalanche) चोटी पर आरोहण के दौरान निम के एडवांस माउंटेनिय‌रिंग कोर्स (एएमसी) के प्रशिक्षु पर्वतारोही और प्रशिक्षकों का दल ‌हिमस्खलन की चपेट में आ गया था. हादसे में 27 लोगों की मौत हुई थी, जबकि दो प्रशिक्षु पर्वतारोही अभी भी लापता चल रहे हैं. इनमें नौसेना में नाविक विनय पंवार (उत्तराखंड) और लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक वशिष्ट (हिमाचल) शामिल हैं. जिनकी खोजबीन के लिए निम और हाई एल्टीट्यूट वॉर फेयर स्कूल (हॉज) की संयुक्त रेस्क्यू टीम दिन-रात एक किए हुए हैं.
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क्या बोले निम के प्रधानाचार्य: लेकिन अब निम प्रबंधन दोनों की लापताओं की खोजबीन के लिए तकनीकी मदद लेने जा रहा है. निम (Nehru Institute of Mountaineering) के प्रधानाचार्य कर्नल अमित बिष्ट ने बताया कि दोनों लापता प्रशिक्षुओं की खोजबीन के लिए बेंगलुरु से जीपीआर को मंगवाया गया है, जो ‌हवाई मार्ग से दिल्ली पहुंचने के बाद सड़क मार्ग से लाया जा रहा है. करीब 15 लाख रुपए का यह उपकरण जमीन के अंदर 10 मीटर तक दबे व्यक्ति को खोज सकता है. जिससे दोनों लापताओं की खोजबीन में मदद मिलने की उम्मीद है.
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ऐसे काम करता है काम: चंडीगढ़ स्थित भारत सरकार के हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान के ‌हिमस्खलन विशेषज्ञ डॉ एचएस नेगी ने बताया कि जीपीआर उच्च-आवृत्ति रेडियो तरंगों का उपयोग करता है. जिसमें एक ट्रांसमीटर और एंटीना जमीन में विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उत्सर्जन करता है. जब तरंगें एक दबी हुई वस्तु या विभिन्न पारगम्यता वाली सामग्रियों के बीच की सीमा का सामना करती है, तो यह परावर्तित होकर वापस लौटती है. जिसे एंटीना रिकॉर्ड करता है. जिससे पता चल जाता है कि अंदर कुछ है, जिसे खोदकर निकाला जा सकता है.

कई क्षेत्रों में होता है इस्तेमाल: ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में होता है. इनमें पुरातत्व विज्ञान से लेकर सेना, अवस्थापना विकास, पृथ्वी विज्ञान व किसी इमारत आदि ध्वस्त होने से जिंदा दफन लोगों के रेस्क्यू में किया जाता है. सेना इसका इस्तेमाल बारुदी सुरंगों का पता लगाने में करती है. प्रधानाचार्य नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने कर्नल अमित बिष्ट ने कहा कि दोनों लापता प्रशिक्षु पर्वतारोहियों की खोजबीन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है. जीपीआर के यहां पहुंचते ही हादसे वाली जगह ले जाने के लिए भी टीम तैयार है, सोमवार से जीपीआर की मदद से खोजबीन की जाएगी.

गौर हो कि बीती 4 अक्टूबर को उत्तरकाशी जिले के द्रौपदी का डांडा 2 (Draupadi Ka Danda Avalanche) के डोकरानी बामक ग्लेशियर क्षेत्र में एवलॉन्च की घटना हुई थी. जिसकी चपेट में एडवांस कोर्स प्रशिक्षण के लिए गए नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering) के प्रशिक्षु पर्वतारोही और प्रशिक्षक आ गए थे. जिनमें उत्तरकाशी की लौंथरू गांव की माउंट एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल (Mountaineer Savita Kanswal), भुक्की गांव की पर्वतारोही नौमी रावत (Mountaineer Navami Rawat), अल्मोड़ा के पर्वतारोही अजय बिष्ट समेत 29 पर्वतारोहियों की जान चली गई थी.

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