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पौराणिक और ऐतिहासिक पंचकोसी वारुणी यात्रा हुई पूरी, जानें धार्मिक महत्व

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Published : Mar 30, 2022, 7:59 PM IST

Updated : Mar 30, 2022, 8:23 PM IST

पंचकोसी वारुणी यात्रा उत्तरकाशी की एक ऐसी यात्रा है, जिसमें पग-पग चलने पर श्रद्धालुओं को अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य लाभ मिलता है. 15 किमी पैदल दूरी वाले यात्रा मार्ग पर 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को यहां पंचकोसी वारुणी यात्रा के तहत वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा की जाती है.

Panchkoshi Varuni yatra
पंचकोसी वारुणी यात्रा

उत्तरकाशी: हर साल चैत्र मास की त्रयोदशी को पंचकोसी वारुणी यात्रा के तहत वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा की जाती है. इसी कड़ी में आज ब्रह्ममुहूर्त से ही श्रद्धालुओं के जत्थे वारुणी यात्रा पर निकलने शुरू हो गए. करीब 15 किमी लंबी इस पदयात्रा के पथ पर बड़ेथी संगम स्थित वरुणेश्वर, बसूंगा में अखंडेश्वर, साल्ड में जगरनाथ और अष्टभुजा दुर्गा, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर और व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर तथा विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्वदेश्वर मंदिर में जलाभिषेक और पूजा-अर्चना का सिलसिला शाम तक चलता रहा.

वरुणावत से उतरकर श्रद्धालुओं ने गंगोरी में असी गंगा और भागीरथी के संगम पर स्नान के बाद नगर के विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना एवं जलाभिषेक के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर यात्रा संपन्न की. वारुणी यात्रा के धार्मिक महत्व और इसमें उमड़ने वाली भीड़ को देखते हुए जल संस्थान ने वरुणावत शीर्ष पर महीडांडा के निकट टैंकर से पेयजल की व्यवस्था की.

ऐतिहासिक पंचकोसी वारुणी यात्रा.

जिला चिकित्सालय की ओर से पैदल यात्रा पथ के दोनों छोर पर एंबुलेंस तैनात कर यात्रियों को स्वास्थ्य सेवाएं दी गईं. आईटीबीपी की 35वीं वाहनी महिडाडा के जवानों ने भी शिखरेश्वर महादेव मंदिर के पास व्यवस्थाएं संभालीं. बड़ेथी और गंगोरी संगम पर पुलिस की व्यवस्था भी चाक चौबंद रही. यात्रा पथ पर पड़ने वाले गांवों में तो ग्रामीणों ने पदयात्रियों की आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी.
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बता दें, स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार वरुणावत पर्वत की पैदल परिक्रमा वाली वारुणी यात्रा सच्चे मन से करने पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और हजारों तीर्थों की यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है. वरुणावत पर्वत को देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है. पुराणों में यहां भगवान परशुराम एवं महर्षि वेदव्यास द्वारा तपस्या किए जाने का उल्लेख भी है.

वरुणा नदी में स्नान के साथ शुरू होने वाली यात्रा वरुणावत पर्वत के ऊपर से गुजरते हुए अस्सी गंगा और भागीरथी के संगम पर पूजा-अर्चना के साथ संपन्न होगी है. पंचकोसी वारुणी नाम से हर वर्ष होने वाली इस यात्रा का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है. कहा जाता है कि इस यात्रा को पूर्ण करने वाले व्यक्ति को 33 करोड़ देवी देवताओं की पूजा-अर्चना का पुण्य लाभ मिलता है.

वारुणी यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले प्राचीन मंदिरः पंचकोसी वारुणी यात्रा मार्ग पर बड़ेथी संगम पर वरुणेश्वर महादेव, बसूंगा में बासू कंडार, साल्ड में जगन्नाथ एवं अष्टभुजा ज्वाला देवी, ज्ञाणजा में ज्ञानेश्वर महादेव एवं व्यास कुंड, वरुणावत शीर्ष पर शिखरेश्वर, राजराजेश्वरी एवं विमलेश्वर महादेव, संग्राली में कंडार देवता, पाटा में नर्मदेश्वर महादेव, गंगोरी त्रिवेणी घाट पर गंगेश्वर, लक्षेश्वर, उज्ज्वला देवी, महिषासुर मर्दिनी, कंडार देवता, परशुराम, अन्नपूर्णा, भैरव, गोपेश्वर महादेव, शक्ति मंदिर, हनुमान मंदिर, कीर्तेश्वर महादेव, काशी विश्वनाथ एवं मणिकर्णिका घाट स्थित गंगा मंदिर पड़ते हैं.

Last Updated :Mar 30, 2022, 8:23 PM IST
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