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पंचकोसी यात्रा का मुख्य पड़ाव शिखलेश्वर धाम उपेक्षित, ग्रामीणों ने की पर्यटन से जोड़ने की मांग

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Published : Jan 24, 2021, 3:50 PM IST

प्रदेश सरकार राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छोटे-छोटे ट्रैक रूट को खोलने का दावे कर रही है. जिससे कि इन ट्रैक रूटों से जुड़ने वाले गांव में विकास की एक नई रूपरेखा लिखी जाए, लेकिन उसके बाद भी जनपद की सबसे पौराणिक पंचकोसी यात्रा ट्रैक उपेक्षा का शिकार है.

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पंचकोसी यात्रा का मुख्य पड़ाव 'शिखलेश्वर धाम' उपेक्षित

उत्तरकाशी: 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित वर्णावत पर्वत के शीर्ष पर जनपद की सबसे पौराणिक धार्मिक यात्रा का मुख्य पड़ाव शिखलेश्वर धाम आज भी पर्यटन के दृष्टिकोण से उपेक्षित है. इसके लिए स्थानीय ग्रामीण और जनप्रतिनिधियों ने शासन प्रशासन से मांग की है कि शिखलेश्वर धाम और पंचकोसी यात्रा ट्रैक को राज्य और जनपद के पर्यटन कलेंडर से जोड़कर इसे विकसित किया जाए.

ग्रामीणों का कहना है कि चारधाम में पहुंचने वाले यात्री जो भी जनपद मुख्यालय में रुकता है. उसके लिए धार्मिक और ट्रैकिंग के दृष्टिकोण से यह जनपद मुख्यालय से सबसे नजदीक है. ग्रामीणों की मांग है कि अगर यह धाम और ट्रैक विकसित होता है तो इससे युवाओं को भी रोजगार मिल सकता है.

पंचकोसी यात्रा का मुख्य पड़ाव 'शिखलेश्वर धाम' उपेक्षित

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करीब 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित वर्णावत पर्वत के शीर्ष पर ज्ञानजा गांव की सीमा में शिखलेश्वर धाम बसा है, जो जनपद की एक दिवसीय पंचकोसी यात्रा का मुख्य पड़ाव है. यह धाम प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है. वहीं, यहां से दिखने वाली हिमालय की ऊंची-ऊंची बर्फीली चोटियां इसके सौंदर्य को चार चांद लगाती है.

इसके साथ ही यहां से जनपद मुख्यालय सहित आसपास के करीब 30 किमी क्षेत्र का बहुत ही अद्भूत दृश्य देखने को मिलता है, लेकिन उसके बाद भी आज तक शासन प्रशासन की नजर इस पर नहीं पड़ी है. यही कारण है कि आज भी पंचकोसी ट्रैक रूट उपेक्षित होने के कारण विकास की बाट जोह रहा है.

प्रदेश सरकार राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छोटे-छोटे ट्रैक रूट को खोलने का दावे कर रही है. जिससे कि इन ट्रैक रूटों से जुड़ने वाले गांव में विकास की एक नई रूपरेखा लिखी जाए, लेकिन उसके बाद भी जनपद की सबसे पौराणिक पंचकोसी यात्रा ट्रैक उपेक्षा का शिकार है.

शिखलेश्वर धाम के स्वामी शंकर सरस्वती महाराज बताते हैं कि इस यात्रा और शिखलेश्वर धाम का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है. यहां पर स्वयं शिव 33 करोड़ देवी देवताओं की सभा लगाते हैं. वहीं, इसकी यात्रा से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है.

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