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साल 2020 में जिला रुद्रप्रयाग ने क्या खोया, क्या पाया? देखिए एक रिपोर्ट

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Published : Dec 30, 2020, 6:09 PM IST

rudraprayag news
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रुद्रप्रयाग ने साल 2020 में क्या-क्या खोया और क्या-क्या पाया. इस रिपोर्ट के जरिए जानिए.

रुद्रप्रयाग: भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में ग्याहरवें केदारनाथ समेत द्वितीय केदार मद्महेश्वर व तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाटोद्घाटन पर इस बार औपचारिकताएं रहीं. भक्त और भगवान के बीच बनी दूरी के चलते सिर्फ हक-हकूकधारी व पंच गौंडारी ही धाम पहुंचे. पूरे यात्राकाल के कुछ माह तक धामों में सन्नाटा और बाजारों में रौनक गायब रही. कारोबार और रोजगार पर भी व्यापक असर पड़ा.

वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के बीच 26 अप्रैल को बाबा केदार की चल विग्रह उत्सव डोली ने ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से अपने धाम के लिए प्रस्थान किया. वर्ष 1970 के बाद यह दूसरा मौका था, जब डोली भक्तों के कांधों पर जयकारों के बिना सीधे वाहन से गौरीकुंड पहुंची. यहां पर दो दिन विश्राम के बाद 28 को बाबा अपने धाम केदारनाथ पहुंचे, जहां 29 अप्रैल को भगवान केदारनाथ धाम के कपाट खुले.

इसबार धाम में ना ही जयकारें गूंजी और ना ही दर्शनों के लिए भीड़ उमड़ी. सूक्ष्म धार्मिक परंपराओं के बीच पुजारी व गिनती के कुछ लोगों ने कपाटोद्घाटन की परंपरा का निर्वहन किया. 11 मई को द्वितीय केदार मद्महेश्वर और 20 मई को तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाटोद्घाटन पर भी इस बार परंपराएं बदलीं. कपाटोद्घाटन के बाद शुरूआती एक से सवा माह तक सन्नाटा पसरा रहा. सिर्फ पुजारी, हक-हकूकधारी और पंच गौंडारी मौजूद रहे. 12 जून के बाद धामों में यात्रियों का पहुंचना शुरू हुआ और 2 अक्तूबर से श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिदिन इजाफा होता रहा. लेकिन बीते वर्ष की अपेक्षा इस बार केदारनाथ में सिर्फ दस फीसदी श्रद्धालु ही बाबा के दर्शन कर पाए.

वहीं, उत्तराखंड देवस्थानम बोर्ड के कार्याधिकारी एनपी जमलोकी ने बताया कि, पहली बार ऐसा हुआ जब भक्तों के बिना केदारनाथ में कपाटोद्घाटन हुआ. इस वर्ष सिर्फ 1,35,023 श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन किए. जबकि बीते वर्ष 10 लाख 21 श्रद्धलुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए थे.


केदारनाथ धाम में चिनूक से पहुंची भारी मशीनें
केदारनाथ धाम में पुर्ननिर्माण के फेस-2 में होने वाले कामों के लिए एयरफोर्स का मालवाहक चिनूक हेलीकॉप्टर से केदारनाथ में भारी मशीनें पहुंची. गौचर हेलीपैड से चिनूक ने केदारनाथ धाम के लिए उड़ान भरी. गौचर हेलीपैड से भारी मशीनों के पार्ट्स केदारनाथ पहुंचाया गया. केदारनाथ में यह दूसरा मौका रहा जब एयरफोर्स के मालवाहक का प्रयोग किया गया. इससे पहले केदारनाथ आपदा के दौरान एमआई-26 द्वारा यहां भारी सामान पहुंचाई गई थी. जबकि एमआई-17 ने तो कई बार सामान पहुंचाने का काम किया. चिनूक की लैंडिंग को लेकर केदारनाथ में हेलीपैड का भी विस्तार किया गया.

बादल फटने से रुद्रप्रयाग के सिरवाड़ी गांव में मची तबाही
बीते साल जिले के दूरस्थ गांव सिरवाड़ी में 9 अगस्त की देर रात बादल फटने से गांव में तबाही मच गई. कई ग्रामीणों के आवसीय भवनों में भारी मलबा घुस गया, तो वहीं मलबे के कारण खेत-खलिहान और पैदल रास्ते पूरी तरह से धवस्त हो गए. घटना की सूचना मिलने के बाद प्रशासन मौके पर पहुंचा और राहत बचाव का कार्य किया. बादल फटने की घटना के बाद से गांव में खौफ का माहौल बना रहा.

वहीं, विकासखण्ड जखोली के अंतर्गत सिरवाड़ी बांगर में दस परिवारों के आवासीय भवनों, गौशालाओं, शौचालयों में भारी मलबा घुस गया. बादल फटने के बाद गांव में अफरा-तफरी का माहौल मचा रहा. किसी तरह से ग्रामीण सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे थे. घरों के भीतर मलबा घुसने से ग्रामीणों के घर के भीतर रखे सामान को भी नुकसान पहुंचा. सबसे अधिक नुकसान ग्रामीणों की खेती को हुआ. ग्रामीणों की कई हेक्टेयर भूमि आपदा की भेंट चढ़ गई. बीस से भी अधिक परिवारों की खेती बादल फटने के कारण तबाह हो गई. गांव को जोड़ने वाला मुख्य पैदल संपर्क मार्ग भी क्षतिग्रस्त हो गया. वहीं संपर्क मार्ग, विद्युत लाइन, पेयजल लाइनें भी मलबे में दब गईं.

पहले 1986 में आई थी सिरवाड़ी गांव में आपदा
सिरवाड़ी गांव का आपदा से पुराना नाता रहा है, जिस कारण बरसाती मौसम में ग्रामीण डर के साये में जीवन-यापन करते हैं. वर्ष 1986 में सिरवाड़ी गांव में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. गांव के 13 लोगों की जहां मृत्यु हो गई थी, वहीं कई परिवार बेघर हो गये थे. सिरवाड़ी गांव को विस्थापन की सूची में रखा गया है. गांव के 56 परिवारों का विस्थापन होना है. कुछ ग्रामीणों को गांव के निकट ही गैरोली तोक में भूमि आवंटित की गई थी. जहां 25 परिवार निवास कर रहे हैं. बाकी परिवार गांव में ही रह रहे हैं.

विस्थापन न होने के कारण ग्रामीणों में रोष भी बना हुआ है. प्रत्येक वर्ष बरसाती सीजन में गांव में कुछ न कुछ घटनाएं घटती रहती हैं, जिस कारण ग्रामीण खौफ के साये में जीवन-यापन करते हैं. एक बार फिर से गांव में 1986 वाली घटना की पुनरावृत्ति हुई. हालांकि इस घटना में जनहानि तो नहीं हुई, लेकिन लोगों के घरों, खेतों आदि को भारी नुकसान पहुंचा है.

केदारघाटी के उसाडा गांव में बारिश से मची तबाही
रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में बारिश ने कहर ढा दिया. बारिश ने घाटी के उसाडा गांव में जबरदस्त कहर मचाया. गांव में जमीन धंसने से दस से अधिक मकान जमीदोंज हो गए, जबकि चालीस से अधिक परिवारों ने अपने घर खाली करके विद्यालय और पंचायत भवन में शरण ली.

बरसाती सीजन में केदारघाटी में बारिश कहर बनकर टूटी. बारिश से आम जन-जीवन बुरी तरह से प्रभावित रहा. केदारघाटी के उसाडा गांव में बारिश के बाद जमीन धंसने से भारी नुकसान हुआ. कई घरों में दरारें पड़ गईं और 40 से अधिक परिवारों ने सामान के साथ अपने घर खाली करके विद्यालय और पंचायत भवन में शरण ली. आपदा पीड़ित ग्रामीण किसी तरह से खतरे के साये में जीने को मजबूर रहे. वहीं दूसरी ओर केदारघाटी के गुप्तकाशी में केदारनाथ हाईवे का 70 मीटर हिस्सा बारिश और भूस्खलन की भेंट चढ़ गया.

नए पुल निर्माण से रुद्रप्रयाग नगर वासियों को मिली सौगात
रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र के डाट पुलिया का नये सिरे से नव निर्माण होने के बाद नगर वासियों को एक सौगात मिली. डाट पुलिया के कारण हर दिन जाम की समस्या बनी रहती थी. नये पुल का 30 अगस्त को व्यापार संघ अध्यक्ष चन्द्रमोहन गुसाई ने विधिवत शुभारंभ किया. राष्ट्रीय राजमार्ग खण्ड श्रीनगर डिवीजन के तहत पुल का आरसीसी डेवलपर्स लिमिटेड कंपनी ने साढ़े छः महीने में पुल का निर्माण किया. पुल निर्माण से जनता ने राहत की सांस ली.
वहीं करीब एक करोड़ 70 लाख की लागत से पुल का निर्माण किया गया. इस पुल का दस मीटर स्पान है, जबकि पुल 12 मीटर चैड़ा है. 15 फरवरी से पुल का विधिवत काम किया गया था, जो 30 अगस्त को पूरा किया गया.

भारी बारिश में भी पुरोहितों का सरकार के खिलाफ आंदोलन
देवस्थानम बोर्ड को भंग करने और केदारनाथ में मास्टर प्लाल के तहत हो रहे कार्यों के विरोध में तीर्थ पुरोहितों का तीन माह तक धरना प्रदर्शन चलता रहा. तीर्थ पुरोहितों ने केदारनाथ धाम में बर्फवारी और बारिश में भी अपना प्रदर्शन जारी रखा. यहां तक कि तीर्थ पुरोहित संतोष त्रिवेदी अर्धनग्न अवस्था में धरना देते रहे. तबियत खराब होने पर उन्हें ऋषिकेश एम्स अस्पताल में भर्ती किया गया. जहां दूसरे दिन ही वे त्रिवेणी घाट में धरने पर बैठ गए. वहीं केदारनाथ में तीर्थ पुरोहितों ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. तीन माह बाद चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष शिव प्रसाद ममगांई और अपर जिलाधिकारी रामजी शरण के लिखित आश्वासन के बाद तीर्थ पुरोहित माने.

ऑल वेदर रोड निर्माण कार्य के चलते जनता रही परेशान
रुद्रप्रयाग मुख्य बाजार में बद्रीनाथ हाईवे पर ऑल वेदर रोड के तहत निर्माण कार्य कर रही कार्यदायी संस्था की ओर से किये जा रहे कार्यों से जनता में आक्रोश देखा गया. निर्माणदायी संस्था ने अब तक पैदल रास्तों और पेयजल लाइनों को दुरुस्त नहीं करवाया है, जिस कारण स्थानीय जनता परेशान है. सड़क चौड़ीकरण के दौरान तोड़े गए पैदल रास्तों का आज तक ट्रीटमेंट नहीं किया गया है. जबकि समय पर नाली का निर्माण न होने से हाईवे पर चलना मुश्किल हो गया है. ऐसे में आक्रोशित लोगों ने नगर क्षेत्र के पेट्रोल पंप के पास आंदोलन शुरू किया. इस दौरान लोगों को समझाने आए प्रोजेक्ट मैनेजर को लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा. यहां तक कि स्थानीय लोगों ने प्रोजेक्ट मैनेजर को रस्सी से बांधने की भी कोशिश की, जिसमें प्रोजेक्ट मैनेजर भागने में सफल रहे.

99 मेगावाट का सिंगोली-भटवाड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट हुआ शुरू
बीते साल 99 मेगावाट की सिंगोली-भटवाड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट शुरू किया गया. सालाना 400 मिलियन यूनिट्स नवीकरणीय ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता वाली इस जल-विद्युत संयंत्र के चालू हो जाने से उत्तराखंड राज्य को काफी बल मिल रहा है. रुद्रप्रयाग से लगभग 25 किमी दूर स्थित बेडूबगड़ में केदारनाथ हाईवे किनारे स्थित यह संयंत्र मध्यम आकार के जलग्रहण तालाब वाले एक बांध, 12 किमी लंबी हेडरेस सुरंग और 180 मीटर से अधिक गहरे सर्ज शैफ्ट से जुड़ा है. इसके साथ इसमें पुनर्वास संबंधी कोई भी समस्या नहीं है. इस प्लांट में 33 मेगावाट वाले तीन-तीन वॉयथ टर्बाइन जेनरेटर्स की इकाईयां हैं, जो उत्कृष्ट स्विचयार्ड से लैस हैं. यह नवीनतम सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन (एससीएडीए) टेक्नोलॉजी द्वारा नियंत्रित है.

एससीएडीए सिस्टम्स को इस प्रकार से डिजाइन किया गया है कि, प्लांट एवं इसके उपकरण जैसे कि टेलीकम्यूनिकेशंस, वाटर एवं वेस्ट कंट्रोल की स्वचालित रूप से निगरानी एवं नियंत्रण हो सके. जिससे कि तुरंत निर्णय लिए जा सकें और संबंधित कदम उठाये जा सकें. यह न्यूनतम उत्पादन लागत पर निर्बाध विद्युत आपूर्ति उपलब्ध करायेगी. यही नहीं यह प्लांट दिन के दिन अर्द्धांशों में से प्रत्येक में 2 घंटे का पीक डिमांड लोड भी उठायेगा, जिससे गैर-मानसूनी महीनों में भी राहत मिल सकेगी और बीजली की अधिकतम मांग की आवश्यकता पूरी की जा सकेगी. वेट कमिशनिंग की प्रक्रिया बिना विद्युतोत्पादन के आरंभिक टर्बाइन्स की मशीन घूमने और विद्युत की आपूर्ति के लिए ग्रिड के साथ सिंक्रोनाइजेशन और विधिवत जांच के साथ शुरू हो गई है. ग्रिड सिंक्रोनाइजेशन और ट्रांसमिशन लाइंस की चार्जिंग अनुमानतः एक महीने में पूरी हो जायेगी और संयंत्र के उद्घाटन के साथ इसका समय तय है.

तुंगनाथ घाटी में अतिक्रमण हटाना हुआ शुरू
वन विभाग की ओर से तुंगनाथ घाटी के विभिन्न यात्रा-पड़ावों पर संचालित टेंटों, ढाबों व होटलों को हटाने का फरमान जारी होने के बाद घाटी के व्यापारियों में शासन-प्रशासन और वन विभाग के खिलाफ आक्रोश बना हुआ है. स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि, एक तरफ प्रदेश सरकार युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी तरफ वन विभाग अतिक्रमण हटाने का फरमान जारी कर स्थानीय व्यापारियों का मानसिक उत्पीड़न कर रही है. वन विभाग ने 25 दिसम्बर तक टेंट हटाने के निर्देश दिए थे और उसके बाद सीधे 6 टेंटों और ढाबों को तोड़ दिया. ऐसे में स्थानीय व्यापारियों में वन विभाग के खिलाफ आक्रोश बन गया है.

वहीं तुंगनाथ घाटी के चोपता, बनियाकुण्ड, दुगलविट्टा सहित विभिन्न यात्रा पड़ावों पर व्यवसाय कर रहे चार दर्जन से अधिक व्यापारियों को नोटिस जारी कर अतिक्रमण हटाने का फरमान जारी किया गया. तीन वर्ष पूर्व भी जिला प्रशासन तुंगनाथ घाटी के व्यापारियों को अतिक्रमण हटाने का फरमान जारी किया था. उस समय कुछ व्यापारियों ने अपने होटल, ढाबों को समेटने की कवायद शुरू कर दी थी. मगर बाहरी पूंजीपतियों का अतिक्रमण यथावत रहने से जिला प्रशासन व वन विभाग की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में आ गई थी. स्थानीय व्यापारियों की मांग पर जिला प्रशासन द्वारा व्यापारियों को ईडीसी का गठन करने का आश्वासन दिया था कि, तुंगनाथ घाटी में होटल, ढाबों व टेंटों के संचालन के लिए ईडीसी का गठन किया जायेगा तथा ईडीसी के तहत सभी होटलों, ढाबों और टेंटों का संचालन होगा. मगर आज तक ईडीसी का गठन न होने से स्थानीय व्यापारियों में मायूसी ही देखी गई. जिस प्रकार वन विभाग ने तुंगनाथ घाटी के विभिन्न यात्रा पड़ावों से अतिक्रमण हटाने का फरमान जारी किया, उससे तुंगनाथ घाटी के दो हजार से अधिक युवाओं के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है और बाहर से आने वाले सैलानियों को सुविधा न मिलने पर स्थानीय पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो रहा है.

कोटेश्वर स्थित कोरोना अस्पताल में लगी भीषण आग
जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से चार किमी की दूरी पर कोटेश्वर स्थित माधवाश्रम अस्पताल के बेसमेंट (भूमिगत वार्ड) में शार्ट सर्किट से आग लग गई, जिससे ऑक्सीजन पाइप व बिजली सर्किट पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. साथ ही अन्य सामग्री को भारी नुकसान हुआ. स्वास्थ्य विभाग ने प्रारंभिक जांच में 15 लाख की क्षति का आंकलन किया. यहां भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों को भी अगस्त्यमुनि में शिफ्ट कर दिया गया. वहीं अग्निकांड को लेकर जिलाधिकारी ने अपर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की और तीन दिनों के भीतर मामले में जांच सौंपने के निर्देश दिए.

बता दें कि कोरोना समर्पित माधवाश्रम अस्पताल के बेसमेंट के एक हिस्से में 19 दिसम्बर की रात अचानक आग लगी. जब तक वहां तैनात स्टॉफ कुछ समझ पाता आग की लपटों ने वहां रखे बेड, चादरें, कंबल, डीप प्रीजर, सीसीटीवी कैमरा, ऑक्सीजन लाइन को अपने चपेट में ले लिया. आग का रौंद्र रूप इतना भयंकर था कि पूरे अस्पताल की बिजली लाइन जलकर राख हो गई. गनीमत रही कि आग अस्पताल के अन्य वार्डों में नहीं फैली अन्यथा भारी नुकसान हो सकता था.

सात लोगों की हुई मौत
कोरोना महामारी के कारण जिले के सात लोगों की मौत हो गई, जबकि 2200 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए. कोरोना बीमारी के कारण जिले में मार्च से सितम्बर माह तक लोगों में भय का माहौल बना रहा. इसके बाद धीरे-धीरे सामान्य स्थिति हो गई और अब लोगों के मन से कोरोना का डर खत्म हो रहा है.

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मशरूम गर्ल रंजना के सदस्य नामित होने पर जिले में खुशी
रुद्रप्रयाग में मशरूम गर्ल रंजना रावत को ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग में सदस्य नामित किये जाने पर जिले में खुशी की लहर देखी गई. उनके चयन पर जिले के लोगों ने खुशी जताते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का आभार व्यक्त किया.

बता दें कि रंजना रावत जिले के भीरी गांव की रहने वाली हैं. शहर की अच्छी खासी नौकरी छोड़कर रंजना रावत गांव लौटीं और उन्होंने स्वरोजगार शुरू किया. उन्होंने अपने गांव में अमेरिकन सेफ्रॉन उगाई. अमेरिकन सेफ्रॉन कोई छोटी मोटी चीज नहीं है. इसकी बाजार में कीमत एक लाख रुपये प्रति किलोग्राम है. इसकी फसल को अक्टूबर में लगाया जाता है. आखिरकार रंजना की ये मेहनत रंग लाई. उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए बताया कि असल जिंदगी की शुरुआत गांवों से ही होती है. रंजना आज ग्रामीण स्वरोजगार मिशन के तहत कई बेरोजगारों को उन्नत खेती के गुर सिखा रहीं हैं. इसके साथ ही रंजना ने मशरूम की भी खेती की है.

इस तरह से रंजना रावत ने उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को नया आयाम दिया. इसके अलावा उन्होंने स्वरोजगार की नई नीति को पंख लगा दिए हैं. खास बात ये है कि रंजना स्ट्रॉबेरी की खेती भी कर रही हैं. यूं तो स्ट्रॉबेरी की खेती जमीन पर ही होती है, लेकिन रंजना के गांव में इसे पाइप और बोतलों के जरिये हवा में टांग के किया जा रहा है. इसका फायदा ये है कि स्ट्रॉबेरी पर मिट्टी नहीं लगती. ये स्ट्रॉबेरी टॉप क्वॉलिटी की है. इसके अलावा रंजना ने अपने गांव में कई और साग सब्जियां भी उगाई हैं. आलम ये है कि रंजना आज सफलता की एक नई कहानी लिख रही हैं. दूर-दूर से लोग खेती के बारे में जानकारी लेने के लिए रंजना के पास पहुंच रहे हैं. रंजना के इन प्रयासों की वजह से उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है. उन्हें ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग का सदस्य बनाये जाने पर जिले में खुशी की लहर देखी गई.

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