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इस मंदिर के शिवलिंग में प्रकृति करती है बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक, भीष्म की भी रही है तपोस्थली

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Published : Aug 13, 2019, 11:22 AM IST

Updated : Aug 13, 2019, 2:16 PM IST

गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव स्वर्गारोहिणी जा रहे थे, तब उस समय पांडवों ने भगवान की तपस्या की, लेकिन भगवान भोले पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे और यहीं से होकर भगवान शिव केदारनाथ गये थे. भगवान शंकर ने एक रात्रि इस स्थान पर विश्राम किया, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया.

इस मंदिर के शिवलिंग में प्रकृति करती है बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक.

रूद्रप्रयाग: उत्तराखंड के केदारघाटी में ऐसे कई ऐतिहासिक मठ-मंदिर हैं, जिनसे कई लोग अनभिज्ञ हैं. जिनका उल्लेख पुराणों में मिलता है. ऐसा ही शिवधाम रुद्रप्रयाग से 40 किमी दूर बसुकेदार नामक स्थान पर भगवान बसुकेदार का मंदिर का है. जिसका निर्माण 1600 वर्ष पूर्व शंकराचार्य ने किया था. इस मंदिर का महत्व केदारखंड में भी बताया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भीष्म पितामाह ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी. जिससे इस स्थान का महत्व बढ़ जाता है.

इस मंदिर के शिवलिंग में प्रकृति करती है बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक

पौराणिक कथाओं के अनुसार गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव स्वर्गारोहिणी जा रहे थे तब उस समय पांडवों ने भगवान की तपस्या की, लेकिन भगवान भोले पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे और यहीं से होकर भगवान शिव केदारनाथ गये थे. भगवान शंकर ने एक रात्रि इस स्थान पर विश्राम किया, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया. बसुकेदार में भगवान शिव की महिमा देखने को मिलती है. शंकराचार्य ने इस स्थान पर केदारनाथ की ही तरह मंदिर निर्माण किया है. बसुकेदार मंदिर 40 ग्राम सभाओं की आस्था का केन्द्र है और सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

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बाबा अरचनी महाराज की मानें तो मंदिर के नीचे पानी है, जिसे लिंग के स्पर्श करने से महसूस किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि शिव का लिंग पानी के ऊपर है, इसके अलावा गुप्त लिंग भी है, जो पानी के नीचे है. भगवान भोले को जल चढ़ाने के बाद नीचे शिवलिंग में जाता है और भीष्म पितामाह ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी. अतीत में लोग इसी मार्ग से होते हुए केदारनाथ के लिए जाते थे. श्रद्धालु गंगोत्री से होकर जखोली-पंवालीकाठा होते हुए बसुकेदार में दर्शन करने के बाद यहीं से आगे केदारनाथ को जाते थे.

सावन माह में कांवड़िये इसी मार्ग से केदारनाथ पहुंचते हैं. बाबा अरचनी महाराज कहते हैं कि देवभूमि के नाम से उत्तराखण्ड की पहचान है. केदारखण्ड में भी भगवान बसुकेदार का वर्णन है और यहां पर मंदिर समूह भी है. यहां पर भूमिगत शिवलिंग है और इस पौराणिक मंदिर की दिव्यता अपने आप में अद्भुत है. इनका संरक्षण किया जाना चाहिए. बसुकेदार केदारघाटी का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन प्रशासन और सरकार का मंदिर की ओर कोई ध्यान नहीं है. मंदिर का रख-रखाव नहीं किया जा रहा है. पुरातत्व विभाग को ऐसे मंदिरों के संरक्षण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. मंदिर में व्यवस्थाएं न होने से श्रद्धालुओं को भारी दिक्कतों से जूझना पड़ता है.

Intro:खास रिपोर्ट -
केदारघाटी के बसुकेदार मंदिर में अदृश्य लिंग में चढ़ता है पानी
केदारनाथ जाने से पहले भगवान शंकर ने एक रात्रि किया था विश्राम
मुख्यालय से महज चालीस किमी की दूरी पर है बसुकेदार मंदिर
श्रावण के महीने भक्तों की लगी है भारी भीड़, व्यवस्थाएं न होने से श्रद्धालु परेशान
मंदिर के रख-रखाव एवं संरक्षण को लेकर नहीं की जा रही कार्रवाई
सरकार और प्रशासन का नहीं है कोई ध्यान, पुरातत्व विभाग भी फेरे है मुंह
रूद्रप्रयाग- उत्तराखण्ड की केदारघाटी में ऐसे कईं ऐतिहासिक मठ-मंदिर हैं, जिनका रहस्य जगजाहिर नहीं है। कारण, इनकी ओर सरकार और प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। इन मठ-मंदिरों के संरक्षण को लेकर भी कोई ठोस प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। प्रदेश सरकार पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ाने के लाख दावे तो कर रही है, लेकिन पौराणिक धरोहरों को संजोये रखने के कोई प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। ऐसे में ये धार्मिक चीजें अपनी महता को खोते जा रहे हैं, जो भविष्य के लिए सुखद नहीं है। Body:वीओ-1- जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से चालीस किमी दूर बसुकेदार नामक स्थान पर मौजूद भगवान बसुकेदार का मंदिर का निर्माण सोलह सौ वर्ष पूर्व शंकराचार्य ने किया था। इस मंदिर का महत्व केदारखण्ड में भी बताया गया है। वर्णन है कि गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए जब पांडव स्वर्गारोहिणी जा रहे थे तो उस समय पांडवों ने भगवान की तपस्या की, लेकिन भगवान भोले पाण्डवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे और यहीं से होकर भगवान शिव केदारनाथ गये थे। भगवान शंकर ने एक रात्रि इस स्थान पर विश्राम किया, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया। प्राचीनकाल में चारधाम यात्रा सड़क मार्ग से नहीं की जाती थी। श्रद्धालु बद्रीनाथ-केदारनाथ एवं गंगोत्री-यमुनोत्री के दर्शनों के लिए पैदल ही यात्रा करते थे। श्रद्धालु गंगोत्री से होकर जखोली-पंवालीकाठा होते हुए बसुकेदार में दर्शन करने के बाद यहीं से आगे केदारनाथ को जाते थे। भगवान शिव का केदारनाथ धाम मोक्ष का धाम है। अपनी उम्र की आखिरी सीमा पर रहते हुए श्रद्धालु चारधामों की दर्शन किया करते करते थे, लेकिन समय के साथ ही आज सबकुछ बदल गया है। संसाधन इतने हो गये हैं कि चंद मिनटों में ही भगवान केदारनाथ के दर्शन हो जाते हैं, लेकिन देश-विदेशों से आने वाले श्रद्धालु आज भी पूरी निष्ठा के साथ भगवान केदार के दर्शन को आते हैं। सावन के माह में कांवड़ियें पैलद ही भगवान केदार के धाम पहुंचते हैं।
वीओ-2- बसुकेदार में भगवान शिव की महिमा का विशेष महत्व है। शंकराचार्य ने इस स्थान पर केदार की आकृति का मंदिर निर्माण किया है। केदारघाटी में भगवान शंकर के ज्यादातर मंदिर केदारनाथ की आकृति के बने हैं। चाहे वह गुप्तकाशी का मंदिर हो या फिर त्रियुगीनारायण। मंदिर में वर्षों से रह रहे बाबा चन्द्रा एवं महाराज अरचनी ने बताया कि बसुकेदार मंदि चालीस ग्राम सभाओं के आस्था का केन्द्र है और सालभर श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा रहता है। उनकी माने तो मंदिर के नीचे पानी है और लिंग के स्पर्श से महसूस हो जाता है कि यह पानी के ऊपर है। इसके अलावा गुप्त लिंग है, जो पानी के नीचे है और भगवान भोले को जल चढ़ाने के बाद नीचे लिंग में जाता है। भीष्म पितामाह ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी।
बाइट - चन्द्रा, बाबा
बाइट - अरचनी, महाराज Conclusion:वीओ 3- देवभूमि के नाम से उत्तराखण्ड की पहचान है। केदारखण्ड में भी भगवान बसुकेदार का वर्णन है और यहां पर मंदिर समूह भी है। यहां पर भूमिगत शिवलिंग है और इस पौराणिक मंदिर की दिव्यवा अपने आप में अद्भुत है। इनका संरक्षण किया जाना चाहिए। बसुकेदार केदारघाटी का प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन प्रशासन और सरकार का मंदिर की ओर कोई ध्यान नहीं है। मंदिर का रख-रखाव नहीं किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग को ऐसे मंदिरों के संरक्षण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। मंदिर में व्यवस्थाएं न होने से श्रद्धालुओं को भारी दिक्कतों से जूझना पड़ता है।
बाइट - देव राघवेन्द्र, छात्र, इको टूरिज्म
बाइट - भानुप्रकाश भट्ट, श्रद्धालु
Last Updated :Aug 13, 2019, 2:16 PM IST
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