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गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने की कवायद, पहाड़ पर लगे स्थानीय भाषा में साइन बोर्ड

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Published : Apr 19, 2019, 1:06 PM IST

Updated : Apr 19, 2019, 1:49 PM IST

गढ़वाली भाषा

लोक निर्माण विभाग लैंसडाउन में सड़कों के किनारे स्थानीय भाषा (गढ़वाली) में साइन बोर्ड लगवा रहा है. जो आजकल काफी चर्चा का विषय बना हुआ है. इस सूचना बोर्ड में एक ओर तो स्थानीय भाषा को महत्व दिया गया है.

कोटद्वार: लोक निर्माण विभाग लैंसडाउन में सड़कों के किनारे स्थानीय भाषा (गढ़वाली) में साइन बोर्ड लगवा रहा है. जो आजकल काफी चर्चा का विषय बना हुआ है. इस सूचना बोर्ड में एक ओर तो स्थानीय भाषा को महत्व दिया गया है. तो वहीं, दूसरी तरफ ये पर्यटकों के लिए मुसीबत का सबक बना हुआ है. हालांकि इस साइन बोर्ड की लिखावट में कई प्रकार की खामियां भी देखने को मिल रही हैं. आपको बता दें कि ये साइन बोर्ड लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के निर्देश पर लगाएं गए हैं. ये लैंसडाउन क्षेत्र में फतेहपुर से लेकर ताड़केश्वर महादेव तक दर्जनों बोर्ड लगाएं गए हैं.

गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने की कवायद

लोक निर्माण विभाग लैंसडाउन के अधिशासी अभियंता प्रवीन बौखण्डी ने बताया इस बोर्ड को लगाने का मकसद है कि स्थानीय गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देना है. ताकि स्थानीय भाषा का महत्व ज्यादा हो सके. साइन बोर्ड के खामियों के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसको दिखाया जाएगा अगर कहीं कोई शब्द गलत अंकित हुआ है. तो उसे सही करवाया जाएगा.

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वहीं, कुछ लोगों ने इस पहल की सराहना की तो कुछ ने पर्यटकों के लिहाज से गलत बताया. स्थानीय निवास गंभीर सिंह बताते हैं कि ये विभाग और सरकार की अच्छी पहल है. इससे स्थानीय भाषा को महत्व मिल रही है. तो वहीं, विद्या दत्त कहते हैं कि हमारी दृष्टिकोण से ये सही है, लेकिन दूर-दराज से आए लोग ये भाषा समझ नहीं पाएंगे कि इसका मतलब क्या है. अगर ये हिंदी में लिखा होता तो बेहतर होता.

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आपको बता दें कि इस साइन बोर्डों में कई प्रकार की लिखावट में खामियां देखने को मिल रही है. जिससे ये बोर्ड हास्य का विषय बना हुआ है. जानिए गढ़वाली में क्या गलत है क्या सही होना था.

गलत सहीं
साबधान सावधान
भारें भारै
अग्नै इस्कूल चा, भारें अपनी गाड़ियूँ थैं मठू मठू चलावा अग्नै इस्कूल चा, भारै अपनी गाड़ियूँ तै मठू मठू चलावा
Intro:एंकर- लोक निर्माण विभाग लैंसडौन के अधिशासी अभियंता के निर्देशो पर सड़कों के किनारे (स्थनीय भाषा)गढ़वाली में लगे सूचना बोर्ड आजकल चर्चाओं का विषय बना हुआ है, सूचना बोर्ड में एक ओर तो स्थनीय भाषा गढ़वाली को महत्व दिया गया है तो वहीं दूसरी ओर यह सूचना बोर्ड बाहरी राज्य से आने वाले लोगों के लिए मुसीबत का सबब भी बन रहे हैं तो कहीं साइन बोर्डों में कई प्रकार की लिखावट में खामियां देखने को मिल रही है।


Body:वीओ1- बता दें कि लैंसडाउन लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के निर्देशों पर लैंसडाउन क्षेत्र में फतेहपुर से लेकर ताड़केश्वर महादेव तक सड़क के किनारे कई दर्जनों सूचना बोर्ड लगाए गए जो कि स्थानीय भाषा गढ़वाली में अंकित है, कुछ लोगों ने अधिशासी अभियंता की इस पहल की सराहना की है तो कुछ लोगों ने कहां की यह गलत पहल है इससे बाहरी राज्यो से आने वाले पर्यटकों को इन सूचना बोर्ड पर लिखे शब्दों को पढ़ने में और समझने में कठिनाई होगी तो कई जगह सूचना बोर्ड पर अंकित शब्द गलत लिखे हुए हैं जिसके कारण बाहरी राज्य से आने वाले पर्यटक देव भूमि के बारे में गलत सोच रखेंगे, देवभूमि की छवि पर भी इसका असर पड़ेगा,
सरकार को इस संबंध में सोचना चाहिए साथ ही संबंधित विभाग को भी इन सूचना बोर्ड पर अंकित भाषा का जांच पड़ताल करनी चाहिए और कहीं गलत शब्द लिखे हुए हैं तो उनको सुधारना चाहिए।

गढ़वाली में क्या गलत है क्या सही होना था ......

साबधान जबकि सावधान होना चाहिए था

भारें जबकि सही शब्द भारै

साइन बोर्ड पर लिखा है

अग्नै इस्कूल चा, भारें अपनी गाड़ियूँ थैं मठू मठू चलावा।

जबकि सही

अग्नै इस्कूल चा, भारै अपनी गाड़ियूँ तै मठू मठू चलावा।


इस तरह और भी साइन बोर्डो पर कई गलतियां देखने को मिल रही है ऐसे में यह साइन बोर्ड अब हास्य का विषय बनते जा रहे है।


वीओ2- वहीं स्थानीय निवासी गंभीर सिंह का कहना है कि उत्तराखंड सरकार और लोक निर्माण विभाग की अच्छी पहल है जो सड़कों पर उन्होंने साइन बोर्ड लगाए हैं गढ़वाली भाषा में साइन बोर्ड लगाए हैं यह क्षेत्र की स्थानीय भाषा है जो यहां पर पर्यटक आएंगे उनके लिए यह एक नई पहल है वह देखना चाहेंगे कि यह कौन सी भाषा है हम इस समय गढ़वाल में है या कुमाऊं में है यह किसी और जगह पर हैं इससे हमारी जो गढ़वाली भाषा है इसकी समृद्धि होगी इसका प्रचार-प्रसार होगा

बाइट- गंभीर सिंह स्थनीय निवासी

वीओ3- वहीं विद्या दत्त का कहना है कि हमारी दृष्टिकोण से तो यह सही है लेकिन अगर दूसरी और से देखा जाए तो यह ठीक नहीं है इसलिए ठीक नहीं है हम तो अपनी भाषा को अपने आप अच्छी तरह से समझ लेते हैं लेकिन बाहरी राज्यों से आने वाले लोग या पर्यटक इस भाषा गढ़वाली भाषा को नहीं समझ पाएंगे जैसे इसमें लिखा है कि
अग्नै इस्कूल चा, भारै अपनी गाड़ियूँ तै मठू-मठू चलावा। तो उन लोगों को क्या पता कि मठु मठु किसे बोलते हैं अग्ने किसे बोलते हैं इससे अच्छा तो इन सूचना बोर्डों को हिंदी भाषा में लिखते तो बेहतर होता है उन्होंने कहा कि गढ़वाली भाषा में लिखे सूचना बोर्ड को पढ़ने वाला पढ़ तो सकता है लेकिन वह इस भाषा को समझ नहीं पायेगा इसका अर्थ क्या है

बाइट- विद्यादात्त






Conclusion:विओ4- वही पूरे मामले पर लोक निर्माण विभाग प्रांतीय खंड लैंसडाउन के अधिशासी अभियंता प्रवीन बौखण्डी से फोन पर बात की गई तो उन्होंने का कहना है कि फतेहपुर से लेकर ताड़केश्वर तक लगे साइन बोर्ड का स्थनीय भाषा गढ़वाली को बढ़ावा देना है जिससे कि स्थनीय भाषा का महत्व बढ़ सके। वहीं उन्होंने साइन बोर्ड पर अंकित शब्दों में खामियों के बारे में बताया कि इसको दिखाया जाएगा अगर कहीं कोई शब्द गलत अंकित हुआ है तो उसे सही करवाया जाएगा।

प्रवीन कुमार अधिशासी अभियन्ता लैंसडौन

पी टू कि सी विकाश वर्मा कोटद्वार
Last Updated :Apr 19, 2019, 1:49 PM IST
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