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पीठसैंण में 23 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाएगा 'क्रांति दिवस', कैबिनेट मंत्री ने सीएम धामी को दिया निमंत्रण

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Published : Apr 9, 2022, 4:39 PM IST

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पीठसैंण में धूमधाम से मनाया जाएगा 'क्रांति दिवस'.

पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की जन्मभूमि पीठसैंण में आगामी 23 अप्रैल 2022 को क्रांति दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जन विकास समिति के तत्वाधान में पीठसैंण में भव्य मेले के आयोजन भी किया जाएगा.

श्रीनगर: पेशावर कांड के नायक रहे वीर चंद सिंह गढ़वाली की जन्मभूमि पीठसैंण में आगामी 23 अप्रैल का क्रांति दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा. इसके लिए कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत अभी से तैयारियों में जुट गए है. इस कार्यक्रम को भव्य रूप देने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी कार्यक्रम में आने के लिए निमंत्रण खुद धन सिंह रावत सहित पीठसैंण के लोगों द्वारा उनके आवास में जाकर दिया है.

श्रीनगर विधानसभा के विधायक एवं उत्तराखंड सरकार में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, सहकारिता मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने बताया कि पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की जन्मभूमि पीठसैंण में आगामी 23 अप्रैल 2022 को क्रांति दिवस धूमधाम से मनाया जाएगा.

ऐसे में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जन विकास समिति के तत्वाधान में पीठसैंण में भव्य मेले के आयोजन होगा, जिसमें बतौर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को निमंत्रित किया गया है. वहीं, इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि पेशावर कांड के नायक रहे वीर चंद सिंह गढ़वाली की जन्मभूमि पीठसैंण में क्रांति दिवस पर भव्य मेले और कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा. इसमें वह जरूर शामिल होंगे.

कौन है पेशावर कांड के नायक: चंद्र सिंह का जन्म 25 दिसंबर 1891 को पीठसैंण में जलौथ सिंह भंडारी के घर पर ​हुआ था. 3 सितंबर 1914 को वे सेना में भर्ती हुए. 1 अगस्त 1915 को उन्हें सैनिकों के साथ अंग्रेजों ने फ्रांस भेज दिया. 1 फरवरी 1916 को वे वापस लैंसडाउन आ गये. इसके बाद 1917 में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया युद्ध व 1918 में बगदाद की लड़ाई लड़ी.

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वहीं, प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने उन्हें हवलदार से सैनिक बना दिया. चंद्र सिंह की सेना से छुट्टी के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से मुलाकात हुई. 1920 में चंद्र सिंह को बटालियन के साथ बजीरिस्तान भेजा गया. जहां से वापस आने पर उन्हें खैबरदर्रा भेजा गया और उन्हें मेजर हवलदार की पदवी भी मिल गई. इस दौरान पेशावर में आजादी की जंग चल रही थी.

अंग्रेजों ने चंद्र सिंह को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेज दिया और इस आंदोलन को कुचलने के निर्देश दिए. 23 अप्रैल 1930 को आंदोलनरत जनता पर फायरिंग का हुक्म दिया गया, तो चंद्र सिंह ने 'गढ़वाली सीज फायर' कहते हुए निहत्थों पर फायर करने के मना कर दिया. वहीं, आदेश न मानने पर अंग्रेजों ने चंद्र सिंह व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया. उन्हें सजा हुई व उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली गई. अलग-अलग जेलों में रहने के बाद 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए.

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महात्मा गांधी ने दी थी 'गढ़वाली' की उपाधि: इसके बाद वे महात्मा गांधी से जुड़ गए व भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई. चंद्र सिंह भंडारी को 'गढ़वाली' की उपाधि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि मेरे पास गढ़वाली जैसे चार आदमी होते तो देश कब का आजाद हो जाता. वहीं, आजाद हिद फौज के जनरल मोहन सिंह ने कहा था कि पेशावर विद्रोह ने हमें आजाद हिद फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी.

22 दिसंबर 1946 में वामपंथियों के सहयोग से चंद्र सिंह ने गढ़वाल में प्रवेश किया. 1967 में इन्होंने कम्युनिस्ट के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा पर हार गए. एक अक्टूबर 1979 को उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. साल 1994 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया . उत्तराखंड राज्य गठन के बाद उनके नाम से कई योजनाएं चलाई गई. जिनमें पर्यटन, स्वरोजगार और मेडिकल कॉलेज के नाम से संचालित हैं.

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