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राजधानी का मोह नहीं छोड़ रहे अधिकारी, वन पंचायतों को बर्बाद कर देगी ये सोच

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Published : Oct 18, 2019, 5:39 PM IST

Updated : Oct 18, 2019, 7:08 PM IST

उत्तराखंड में अधिकारियों के राजधानी मोह का ये पहला मामला नहीं है. त्रिवेंद्र सरकार में ऐसे कई अधिकारी हैं जो मूल तैनाती राजधानी से बाहर होने के बावजूद राजधानी में अपना ज्यादा वक्त बिताना पसंद करते हैं. ऐसे में सवाल है कि वन पंचायतों की बदतर स्थिति को ऐसे हालातों में कैसे सुधारा जाएगा?

देहरादून

देहरादून: उत्तराखंड में वन पंचायतों की कागजी व्यवस्था को जब ईटीवी भारत ने अपनी पहली रिपोर्ट में दिखाया तो विभागीय मंत्री ने बदतर हालातों को स्वीकार किया था, लेकिन अब ईटीवी भारत वन पंचायत की सबसे बड़ी अधिकारी का राजधानी मोह दिखाने जा रहा है. देखिये ईटीवी भारत की की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश में वन पंचायतों के महत्व को समझते हुए 2005 में इसको लेकर नियमावली तो बनाई गई लेकिन न तो सरकारें और न ही अधिकारी वन पंचायतों की रूपरेखा को तैयार करने के हक में दिखे. शायद यही कारण था कि वन पंचायतों को आज तक स्थापित ही नहीं किया सका.

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ईटीवी भारत अपनी पहली रिपोर्ट में वन पंचायतों को लेकर उदासीनता के आंकड़े दिखा चुका है, लेकिन इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिरकार वन पंचायतों की यह हालत क्यों हुई.

दरअसल, वन पंचायतों की तैनाती को अधिकारी सजा के रूप में देखते हैं. यही कारण है कि न तो यहां अधिकारी मूल तैनाती पर अपना समय देते हैं और न ही पंचायतों को सक्रिय करने पर. यही हाल वन पंचायत की सबसे बड़ी अधिकारी प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत रंजना काला को लेकर भी दिखाई देता है.

वन पंचायतों को बर्बाद कर देगी ये सोच

बता दें कि वन पंचायत का मुख्यालय हल्द्वानी में है और प्रमुख वन संरक्षक रंजना काला की तैनाती भी मुख्यालय में ही की गई है, लेकिन मैडम ने देहरादून वन विभाग में ही कैंप कार्यालय स्थापित किया हुआ है. हैरानी इस बात को लेकर है कि रंजना काला मुख्यालय से ज्यादा राजधानी के मोह में देहरादून के कैंप कार्यालय पर ही ज्यादा समय बिताती हैं. इन बात को खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत भी मानते है कि अधिकारी वन पंचायत के पद को सजा के तौर पर देखते हैं.

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उत्तराखंड में अधिकारियों के राजधानी मोह का ये पहला मामला नहीं है. त्रिवेंद्र सरकार में ऐसे कई अधिकारी हैं जो मूल तैनाती राजधानी से बाहर होने के बावजूद राजधानी में अपना ज्यादा वक्त बिताना पसंद करते हैं. ऐसे में सवाल है कि वन पंचायतों की बदतर स्थिति को ऐसे हालातों में कैसे सुधारा जाएगा? जब अधिकारी वन पंचायतों में जाने के बजाय राजधानी में आराम पसंद कमरों में बैठना पसंद करेंगे. ऐसे अधिकारियों की जानकारी सरकार को भी है और विभाग को भी, लेकिन न जाने क्यों सरकारे भी ऐसे अधिकारियों के सामने नतमस्तक दिखाई देती है.

Intro:Summary- उत्तराखंड में वन पंचायतों की कागजी व्यवस्था को ईटीवी भारत ने अपनी पहली रिपोर्ट में दिखाया तो विभागीय मंत्री ने बदतर हालातों को स्वीकार किया..लेकिन अब ईटीवी भारत वन पंचायत की सबसे बड़ी अधिकारी का राजधानी मोह दिखाने जा रहा है..देखिये etv bharat की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..


Body:उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश में वन पंचायतों के महत्व को समझते हुए 2005 में इसको लेकर नियमावली तो बनाई गई लेकिन ना तो सरकारें और ना ही अधिकारी वन पंचायतों की रूपरेखा को तैयार करने के हक में दिखे...शायद यही कारण था कि वन पंचायतों को आज तक स्थापित ही नहीं किया सका..etv bharat अपनी पहली रिपोर्ट में वन पंचायतों को लेकर उदासीनता के आंकड़े दिखा चुका है.. लेकिन इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिरकार वन पंचायतों की यह हालत क्यों हो गई है.. दरअसल वन पंचायतों की तैनाती को अधिकारी सजा के रूप में देखते हैं... और यही कारण है कि ना तो यह अधिकारी मूल तैनाती पर अपना समय देते हैं और न ही पंचायतों को सक्रिय करने पर...यही हाल वन पंचायत की सबसे बड़ी अधिकारी प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत रंजना काला को लेकर भी दिखाई देता है... दरअसल वन पंचायत का मुख्यालय हल्द्वानी में है और प्रमुख वन संरक्षक रंजना काला की तैनाती भी मुख्यालय की ही है..लेकिन मैडम ने देहरादून वन विभाग में ही कैंप कार्यालय स्थापित किया हुआ है... हैरानी इस बात को लेकर है कि रंजना काला मुख्यालय से ज्यादा राजधानी के मोह में देहरादून के कैंप कार्यालय पर ही ज्यादा समय बिताती हैं... खुद वन मंत्री हरक सिंह रावत भी मानते हैं कि अधिकारी वन पंचायत के पद को सजा के तौर पर देखते हैं।।।


बाइट- रंजना काला, प्रमुख वन संरक्षक, वन पंचायत


उत्तराखंड में अधिकारियों के राजधानी मोह का ये पहला मामला नहीं है... त्रिवेंद्र सरकार में ऐसे कई अधिकारी हैं जो मूल तैनाती राजधानी से बाहर होने के बावजूद राजधानी में अपना ज्यादा वक्त बिताना पसंद करते हैं... ऐसे में सवाल है कि वन पंचायतों की बदतर स्थिति को ऐसे हालातों में कैसे सुधारा जाएगा, जब अधिकारी वन पंचायतों में जाने के बजाय राजधानी में आराम पसंद कमरों में बैठना पसंद करेंगे।।




Conclusion:ऐसे अधिकारियों की जानकारी सरकार को भी है और विभाग को भी, लेकिन न जाने क्यों सरकारे भी ऐसे अधिकारियों के सामने नतमस्तक दिखाई देती है।।


पीटीसी नवीन उनियाल ईटीवी भारत देहरादून
Last Updated : Oct 18, 2019, 7:08 PM IST
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