ETV Bharat / state

उत्तराखंड में कब थमेगा मानव वन्यजीव संघर्ष? करोड़ों खर्च कर दिए नतीजा फिर भी सिफर

author img

By

Published : May 27, 2022, 6:50 PM IST

Updated : May 28, 2022, 1:07 PM IST

इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का यूं तो पुराना इतिहास है, लेकिन अब यह लड़ाई और भी ज्यादा बढ़ गई है. कुछ दिन पहले ही पौड़ी में एक गुलदार को जिंदा जलाने की घटना सबसे ताजा उदाहरण है. इस घटना ने वन्यजीवों के इंसानों पर हमले और इसके विरोध स्वरूप इंसानों के आक्रोश एक बार फिर जाहिर कर दिया. मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर बिगड़ते हालतों को लेकर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

Reasons of Human wildlife conflict
मानव वन्यजीव संघर्ष

देहरादूनः उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की घटनाएं वन विभाग और सरकार के लिए चुनौती बनती जा रही है. इस संघर्ष से पार पाने के लिए वन विभाग की तरफ से कुछ कदम भी उठाए गए हैं, लेकिन धरातल पर उनका कोई खास असर नहीं दिख रहा है, बल्कि हालात हर साल बदतर होते जा रहे हैं. वन्यजीवों के हमले की घटनाओं ने इंसानों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को बढ़ा दिया है, लेकिन इसके लिए केवल वन्यजीव ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि देखा जाए तो इन घटनाओं के लिए इंसान ज्यादा दोषी है.

दरअसल, इंसानों का जंगलों की तरफ रुख करना और विकास के नाम पर पेड़ों का कटान ऐसी घटनाओं की बड़ी वजह है. साथ ही वनाग्नि भी बड़ा कारण है. वन्यजीवों के लिए जंगल उनका घर है और जिस तरह जंगलों को खत्म किया जा रहा है, उससे वन्य जीव रिहायशी क्षेत्रों की तरफ भोजन की तलाश में पहुंच रहे हैं. इसके साथ ही शुरू हो रहा है मानव वन्यजीव संघर्ष का सिलसिला.

उत्तराखंड में कब थमेगा मानव वन्यजीव संघर्ष

वन विभाग के मुखिया विनोद सिंघल भी मानते हैं कि मानव वन्यजीव संघर्ष तेजी से बढ़ रहा है. यह वन विभाग के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. वन क्षेत्रों में बाघों से लेकर हाथियों तक की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है और जंगल सिकुड़ रहे हैं, ऐसी घटनाओं में चाहे इंसान की जान जाए या वन्यजीव मारा जाए, दोनों ही स्थितियां बेहद बुरी है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में साल दर साल हिंसक हो रहे जंगली जानवर, आसान नहीं मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना

गुलदार और हाथियों के साथ सबसे ज्यादा मानव संघर्षः उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष की सबसे ज्यादा घटनाएं गुलदार और हाथियों के साथ सामने आई है. विनोद सिंघल कहते हैं कि गुलदार और इंसानों के बीच अक्सर ऐसी घटनाओं में या तो इंसान मारे जाते हैं या फिर गुलदार. इसी तरह बड़ी संख्या में लोग हाथियों के हमले में भी मारे जा रहे हैं.

हालांकि, भालू और बाघ के भी इंसानों पर हमले की गई घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसमें कई लोगों के घायल होने की भी जानकारी आती रहती है. मानव वन्यजीव संघर्ष में गुलदार और हाथियों को लेकर चिंता सबसे ज्यादा है. लिहाजा, इन दोनों वन्यजीवों को लेकर वन विभाग खासतौर पर अपने कार्यक्रम चलाता रहता है.

मानव वन्यजीव संघर्ष की यह होती है वजहः मानव वन्यजीव संघर्ष की मुख्य तौर पर वजह इंसानों के जंगलों के करीब जाने पर ही होती है बता दें कि प्रदेश में 14,000 गांव ऐसे हैं, जो वन सीमाओं के निकट हैं. इसके अलावा इंसानों के जंगलों के भीतर अपनी आवश्यकताओं को लेकर जाने या लापरवाही बरतने के कारण ऐसी घटनाएं होती है.

उधर, सिकुड़ते जंगलों और वन क्षेत्र के करीब आते इंसानों के कारण गुलदार आबादी क्षेत्र में आसानी से भोजन मिलने के चलते इंसानी बस्तियों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं. लिहाजा, गुलदार से इंसानों के संघर्ष की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं. इसी तरह हाथी भी भोजन की तलाश में आबादी क्षेत्र में कई बार आते हैं और यह संघर्ष बढ़ जाते हैं.

खाद्य श्रृंखला की गड़बड़ाने पर भी रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे हैं वन्यजीवः पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) के विभिन्न जीवों की परस्पर भोज्य निर्भरता खाद्य श्रृंखला (Food Chain) से प्रदर्शित होता है. किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी जीव भोजन के लिए सदैव किसी दूसरे जीव पर निर्भर होता है. भोजन के लिए सभी जीव वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं.

वनस्पतियां अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा बनाती हैं. इस भोज्य क्रम में पहले स्तर पर शाकाहारी जीव आते हैं, जो कि पौधों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं. जिसमें वन्यजीव खरगोश, हिरण, थार, घुरड़, बंदर, जिराफ आदि जानवर शामिल होते हैं. जिन पर बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, गिद्ध आदि निर्भर रहते हैं, लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि अवैध शिकार के चलते हिरण आदि की संख्या घट रही है. साथ ही जंगलों में आग की वजह से उनका भोजन नष्ट हो रहा है.

ये भी पढ़ेंः भोजन की तलाश में आबादी की ओर आ रहे भालू, मानव-वन्यजीव संघर्ष में इजाफा

जब मांसाहारी जानवरों को भोजन में हिरण जैसे आदि जीव खाने को नहीं मिलते हैं तो वो भोजन की तलाश में आबादी की ओर रुख करते हैं. अकसर ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है कि बाघ या गुलदार गौशालाओं में घुसकर मवेशियों को निवाला बना लेते हैं. इतना ही नहीं आबादी वाले इलाकों में घुसकर कुत्तों को उठा ले जाते हैं. इसी दौरान मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं घटती है.

मानव वन्यजीव संघर्ष के क्या कहते हैं आंकड़ेः मानव वन्यजीव संघर्ष को आंकड़ों के लिहाज से देखें तो पिछले करीब 2 साल 2 महीने में ही 55 लोग गुलदार का शिकार बन चुके हैं. साल 2020 में गुलदार ने 30 लोगों की जान ली. साल 2021 में कुल 22 लोग गुलदार का शिकार हुए. जबकि, साल 2022 में फरवरी महीने तक ही 3 लोगों को गुलदार मार चुके थे.

हाथियों के लिहाज से देखें तो 2 साल 2 महीने में कुल 23 लोगों को हाथियों ने मार डाला. साल 2020 में कुल 11 लोगों की हाथियों ने जान ली. इसी तरह साल 2021 में कुल 12 लोगों को हाथियों के गुस्से का शिकार होना पड़ा. साल 2022 में फिलहाल 2 महीने में कोई घटना रिकॉर्ड नहीं की गई. राज्य में कुल मिलाकर देखें तो अब तक 128 लोग पिछले 2 साल 2 महीने में वन्यजीवों का शिकार हुए हैं. जबकि, घायल होने वाले लोगों का आंकड़ा 472 रहा है.

मानव वन्यजीव संघर्ष के चलते साल 2020 में 270.80 लाख रुपए मुआवजा मरने या घायल होने वाले लोगों को दिया गया. साल 2021 में घायल और मरने वाले लोगों को कुल 326 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया. जबकि, साल 2022 में वन विभाग की ओर से 347 लाख का मुआवजा दिया जा चुका है.

ये भी पढ़ेंः बाघों के गलियारों में 'रोड़ा' बने होटल और रिसॉर्ट, बढ़ा मनुष्यों और वन्यजीवों का संघर्ष

ऐसा नहीं है कि मानव वन्यजीव संघर्ष में केवल इंसानों की ही जान जाती है. बल्कि, इसमें कई वन्यजीव भी अपनी जान गंवा देते हैं. हालांकि इसके इक्का-दुक्का रिकॉर्ड ही सामने आ पाते हैं. कई वन्यजीवों की मौत को अज्ञात के रूप में दर्ज कर लिया जाता है. वैसे बता दें कि पिछले 13 सालों में 1663 वन्यजीवों की मौत रिकॉर्ड की गई है. इसमें 229 वन्यजीवों की मौत की वजह अज्ञात मानी गई है. जबकि, 498 वन्य जीवों का शिकार किया गया है. उधर, गुलदार के आंकड़ों को देखें तो पिछले 22 सालों में 15 गुलदार सेल्फ डिफेंस में इंसानों की ओर से मारे जाने के रूप में दर्ज किए गए हैं.

टोल फ्री नंबर से लोग अनजानः बता दें कि बीती 8 अक्टूबर 2020 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन एवं वन्यजीव हेल्पलाइन (Forest And Wildlife helpline) टोल फ्री नंबर 1926 की शुरुआत की थी. ताकि हिंसक वन्यजीवों व टकराव से जुड़ी सूचनाएं दर्ज कराए जाने पर त्वरित कदम उठाया जा सके. साथ ही वन्यजीवों से संबंधित शिकायतें या उनसे बचाव एवं सहयोग के लिए कॉल कर विभाग से मदद ले सकते हैं, लेकिन इस नंबर का व्यापक प्रचार न होने से अधिकांश पर्वतीय जिलों के ग्रामीण इससे अनजान हैं.

मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर जाएं तरफ वन विभाग चिंता जाहिर कर रहा है तो दूसरी तरफ वन विभाग की मानें तो विभाग की तरफ से लोगों को जागरूक करने के साथ ही कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. जिससे ऐसे संघर्ष को रोका जा सके. वन विभाग यह भी मानता है कि अधिकतर घटनाएं इंसानों के जंगलों में जाने के बाद हो रही हैं. लिहाजा लोगों के साथ कोआर्डिनेशन के जरिए ऐसी घटनाओं पर काबू करने की कोशिशें की जा रही है.

Last Updated :May 28, 2022, 1:07 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.