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FOREST FIRE रोकने के लिए शीतलाखेत मॉडल अपनाएगी सरकार, हर जनपद में तैनात होंगे नोडल अधिकारी

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Published : May 2, 2022, 5:10 PM IST

उत्तराखंड के जंगलों में लगातार फैल रही आग के विकराल रूप से सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जंगल की आग से हुए नुकसान का आकलन करने के दिए निर्देश एवं वनाग्नि को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने का निर्देश अधिकारियों को दिया है.

FOREST FIRE
शीतलाखेत मॉडल अपनाएगी सरकार

देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में आग का कहर जारी है. अब इसी अग्नि तांडव को लेकर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक ली है. सीएम धामी ने सचिवालय में जंगल की आग की रोकथाम को लेकर देहरादून में अधिकारियों के साथ बैठक की. इस दौरान सीएम ने जंगल की आग से हुए नुकसान का आकलन करने के दिए निर्देश एवं वनाग्नि को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने का निर्देश अधिकारियों को दिया है.

मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि वनाग्नि को रोकने के लिए वनाग्नि से प्रभावित जनपदों में शीघ्र वन विभाग के उच्चाधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया जाए. जनपदों में डीएफओ द्वारा लगातार क्षेत्रों का भ्रमण किया जाए. वन विभाग, राजस्व, पुलिस एवं अन्य संबंधित विभागों के साथ ही जन सहयोग लिया जाए. महिला मंगल दल, युवक मंगल दल, स्वयं सहायता समूहों एवं आपदा मित्रों से भी वनाग्नि को रोकने में सहयोग लिया जाए. वनाग्नि को रोकने के लिए आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग किया जाए. रिस्पॉन्स टाइम कम से कम किया जाए. चारधाम यात्रा के दौरान वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए.

मुख्यमंत्री ने कहा कि वनाग्नि को रोकने के लिए शीतलाखेत (अल्मोड़ा) मॉडल को अपनाया जाए. शीतलाखेत के लोगों ने जंगलों और वन संपदा को आग से बचाने की शपथ ली है. उन्होंने संकल्प लिया कि वे पूरे फायर सीजन में वे अपने खेतों में कूड़ा और कृषि अवशेष नहीं जलायेंगे. इस क्षेत्र में ग्रामीणों, महिला मंगल दल और युवक मंगल दल ने ओण दिवस के रूप में जंगल बचाओ, पर्यावरण बचाओ की शपथ ली. वनाग्नि को रोकने के लिए दीर्घकालिक एवं अल्पकालिक दोनों योजनाएं बनाई जाएं. दीर्घकालिक योजनाओं के लिए अनुसंधान से जुड़े संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों से समन्वय स्थापित कर योजना बनाई जाए. इकोनॉमी और इकोलॉजी का समन्वय स्थापित करते हुए कार्य किए जाएं.

आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में अब तक 1,844 वनाग्नि की घटनाएं हो चुकी हैं. जिसमें कुल करीब 3,000 हेक्टेयर तक जंगल प्रभावित हो चुके हैं. जिससे करीब 77 लाख 5,079 रुपए का अबतक नुकसान वन विभाग को हो चुका है. राज्य में फायर सीजन के दौरान सबसे ज्यादा आग की घटनाएं 27 अप्रैल को हुई है. इस दिन कुल 227 आग लगने की घटना हुईं. जिसमें 561 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुए और 11 लाख 30 हजार का नुकसान हुआ. महीने के आखिरी 5 दिनों में भी आग लगने की घटनाएं काफी ज्यादा रहीं. इसमें 26 अप्रैल से लेकर 29 अप्रैल तक आग की 100 से ज्यादा घटनाएं हुईं और हर दिन करीब 150 हेक्टेयर से ज्यादा जंगलों में आग फैली.

पढ़ें: उत्तराखंड में नहीं थम रही जंगल की आग, बैठकों में सिर्फ खानापूर्ति, सब 'खाक' होने के बाद विभाग करेगा स्टडी

आंकड़ों पर नजर: अब जानिए कि उत्तराखंड में पिछले 12 सालों के दौरान वनाग्नि की घटनाएं किस रूप में देखने को मिलीं. रिकॉर्ड बताते हैं कि हर तीसरे या चौथे साल में जंगलों में लगने वाली आग का ग्राफ बढ़ा है और समय के साथ साथ वनाग्नि की घटनाएं नया रिकॉर्ड बना रही हैं. पिछले 12 सालों में 13,500 से ज्यादा वनाग्नि की घटनाएं हुईं हैं, जबकि 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल आग से प्रभावित हुए हैं.

साल 2020 में पिछले 12 सालों के दौरान सबसे कम घटनाएं हुईं. इस साल कुल 133 आग लगने की घटनाएं हुई जिसमें महज 172 हेक्टेयर जंगलों पर ही इसका असर पड़ा. साल 2020 इस साल कोरोना के चलते पूरी तरह से लॉकडाउन लगाया गया था और लोग इस दौरान अपने घरों से बाहर नहीं निकल पाए थे. लिहाजा, इसे इसकी बड़ी वजह माना गया.

इस साल 2022 में 15 फरवरी से अब तक यानी करीब 2 महीने में ही अब तक 1,443 आग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जिसमें 2432 हेक्टेयर जंगलों को नुकसान हुआ है. आर्थिक रूप से इस नुकसान को करीब ₹62 लाख की आर्थिक क्षति माना जा रहा है.

यह आंकड़ा जाहिर करता है कि किस तरह साल-दर-साल प्रदेश में बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो रही है. इसकी रोकथाम के लिए कुछ खास नहीं किया जा सका है. उधर, अभी 15 जून तक वनों में आग की घटनाओं के और भी तेजी से बढ़ने की आशंका जाहिर की जा रही है. जबकि जिस तरह इस बार करीब 60 फीसदी तक बारिश कम आंकी जा रही है. अचानक तापमान में भी कई डिग्री की बढ़ोत्तरी देखी गई है. उससे ऐसी घटनाओं में वृद्धि होने की उम्मीद बेहद ज्यादा है.

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