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अब पटाखे और आतिशबाजी से दिवाली हो रही रोशन, पर 'जलता' है शहर, जानिए पटाखों का इतिहास

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Published : Oct 22, 2019, 6:35 PM IST

Updated : Oct 23, 2019, 6:25 PM IST

दीपावली

दीपावली खुशियों का त्योहार है, लेकिन इस आधुनिक दौर में पटाखों और आतिशबाजी से लोग खुशियां मना रहे हैं. जिस वजह से राजधानी की आबोहवा जहरीली होती जा रही है. पर्यावरण विद भी मानते हैं कि दीपावली के बाद 8 से 10 दिन तक हवा में PM10 और PM2.5 का स्तर बहुत ज्यादा रहता है, जो जान लेवा है.

देहरादून: इस आधुनिक दौर में खुशी जाहिर करने की एक परंपरा तेजी से बनती जा रही है. वो है पटाखे जलाकर और आतिशबाजी कर अपनी खुशी जाहिर करना. वर्तमान समय में खुशी जाहिर करने के लिए लोग दीपावली, शादी या फिर बड़े समारोह में पटाखे जलाकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं. आखिर क्या है पटाखों का इतिहास ? कब से भारत में शुरू हुआ पटाखों का इस्तेमाल ? इसका क्या असर होता है पर्यावरण पर?

जानिए पटाखों का इतिहास

सनातन धर्म में दीपावली पर्व का विशेष महत्व है. रामायण के अनुसार दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटे थे. राजा राम के लौटने पर अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आने से प्रफुल्लित हो उठा था. तब भगवान राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए. तब से आज तक पूरे देश में यह दिन दीपोत्सव के नाम से हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली पर्व का मुख्य उद्देश्य आपसी मतभेद को भूलकर हृदय में रोशनी भरना और समाज से जुड़ना है, लेकिन दीपावली का त्योहार मात्र आतिशबाजी तक ही सीमित रह गया है. ऐसे में हम अपनी प्राचीन दीये वाली दीपावली भी भूलते जा रहे हैं.

10वीं शताब्दी में हुई थी विस्फोटक पदार्थों की खोज

इतिहासकार प्रोफेसर गोसाईं की मानें तो विस्फोटक पदार्थ की खोज 10वीं शताब्दी के आसपास चीन से ब्लैक पाउडर के रूप में मिलती है और भारत में इस विस्फोटक पदार्थ को लाने का श्रेय मंगोलों को जाता है. उस दौरान मंगोल सभ्यता के लोग जब किसी अन्य राज्य को जीतते थे तो वह अपनी खुशी को पटाखे जलाकर और आतिशबाजी कर जताते थे. लेकिन साल 1667 में औरंगजेब शासनकाल में दीये जलाने और पटाखे जलाने पर पाबंदी लगा दी थी. इसके साथ ही ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश सरकार ने पटाखे के कानून को बहुत सख्त कर दिया था कि किसी भी तरह से पटाखे जलाना संभव नहीं था.

1940 के बाद भारत में शुरू हुआ पटाखों का प्रचलन

प्रो. गोसाईं की मानें तो देश में साल 1940 के बाद पटाखों का प्रचलन शुरू हुआ और विस्फोटक पदार्थों के कानून को सरल किया गया. इसके बाद देश में बहुतायत रूप में पटाखों का इस्तेमाल शुरू हुआ. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार देश में सबसे पहले शिव काशी निर्माता नाम से पटाखों की फैक्ट्री खोली गयी, लेकिन साल 1940 से पहले दीपावली में मात्र दीपोत्सव का प्रचलन था.

10 से 15 गुना बढ़ जाता है PM10 और PM2.5 का स्तर

पर्यावरण विद डॉ. अनिल जोशी की मानें तो जिस तरह पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे स्वीकार भी किया जा सकता था, लेकिन पटाखे जलाने से वातावरण का जो हाल है वो प्राण घातक है. जिसका कारण यह है कि PM10 और PM 2.5 का स्तर बढ़ जाता है. पर्व की रात ज्यादा आतिशबाजी की होड़ शहर की आबोहवा को जहरीली बना देती है. जिसका सीधा दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. दीपावली पर पटाखे PM वैल्यू करीब 10 से 15 गुना बढ़ जाते हैं. जो वातावरण में करीब 8 से 10 दिन तक रहते हैं. जो हमारे शरीर के लिए बहुत घातक हैं.

पढ़ें- वनवास के दौरान शहडोल के लखबरिया धाम पधारे थे श्रीराम

क्या है PM10 और PM2.5 ?

PM एक तरह से पार्टिकल पॉल्यूशन है. जो ठोस और तरल रूप में हवा में मौजूद होता है. ये कण धूल, पत्थर या सल्फर आदि किसी के हो सकते हैं. PM10 और PM2.5 का आशय हवा में मौजूद कणों के साइज से है. हवा में PM 2.5 की मात्रा 60 और PM10 की मात्रा 100 होने पर हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है. इससे अधिक मात्रा होने पर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. जिससे स्वास संबधी तमाम बीमारियां होने लगती हैं.

देहरादून में पिछले साल दीपावली के बाद PM2.5 और PM10 की मात्रा

जगह PM2.5 PM10
पटेल नगर 859 1330
झंडा चौक 759 1131
सहारनपुर चौक 756 1089
घंटाघर 342 431
Intro:नोट- फीड ftp से भेजी गई है.....
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इस आधुनिक दौर में खुशी जाहिर करने की एक परंपरा तेजी से फैलती जा रही है। वो है बम-पटाखे जाकर और आतिशबाजी कर अपनी खुशी जाहिर करना। वर्तमान समय मे खुशी जाहिर करने का अब एक मात्र तरीका चलन में है। दीपावली पर्व हो, शादी हो, चुनाव जीतना हो या फिर बड़े फंक्शन हो, ऐसे में खुशी लोग बम -पटाखों को जलाकर अपनी खुशी जाहिर करते है। आखिर क्या है बम-पटाखों का इतिहास, कब से भारत मे शुरू हुआ बम-पटाखों का इस्तेमाल, और इसका क्या असर पड़ता है पर्यावरण पर? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.....


Body:सनातन धर्म मे दीपावली पर्व का विशेष महत्व है। यही वजह है कि हर साल भारत वर्ष में दीपावली का त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। क्योकि दीपावली पर्व का मुख्य उद्देश्य आपसी मत भेद को भूलकर अपने हृदय में रोशनी भरना और समाज से जुड़ना है। लेकिन दीपावली का त्यौहार मात्र बम-पटाखे जलाकर आतिशबाजी तक ही सीमित रह गया है। ऐसे में हम अपनी प्राचीन दीये वाली दीपावली भी भूलते जा रहे है। 


10वी शताब्दी में हुई थी विस्फोटक पदार्थों की खोज....

इतिहासकार की माने तो विस्फोटक पदार्थ की खोज 10 वीं शताब्दी के आसपास चीन से ब्लैक पाउडर के रूप में मिलती है। और भारत देश में इस विस्फोटक पदार्थ को  मंगोलो नहीं लाया था। क्योंकि उस दौरान मंगोल सभ्यता के लोग जब किसी अन्य राज्य को जीतते थे तो वह अपनी खुशी को पटाखे जलाकर और आतिशबाजी कर जताते थे। लेकिन साल 1667 का एक तथ्य है औरंगजेब शासनकाल में औरंगजेब ने दीये जलाने और पटाखे जलाने पर बंदिस्त लगा दिया था। यही नही ब्रिटिश काल मे भी ब्रिटिश सरकार ने पटाखे के कानून को बहुत शख्त कर दिया था। कि किसी भी तरह से पटाखे जलाना संभव नही था। 


1940 के बाद भारत मे शुरू हुआ पटाख़ों का प्रचलन......

हालांकि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखे तो देश मे 1940 के बाद पटाखों का प्रचलन शुरू हुआ। और विस्फोटक पदार्थों के कानून को सरल किया गया। इसके बाद देश मे बहुतायत रूप में पटाखों का इस्तेमाल शुरू हुआ। साथ ही इतिहासकार ने प्रोफेसर गोसाईं ने बताया कि इतिहासिक दस्तावेजो के अनुसार देश मे सबसे पहले शिव काशी निर्माता नाम से पटाखों की फैक्ट्री खोली गयी। लेकिन 1940 से पहले दीपावली में मात्र दीपोत्सव का प्रचलन था।

बाइट - प्रोफेसर एम एस गोसाईं, इतिहास


पटाखे जलाने के बाद 10 से 15 गुना बढ़ जाता है पीएम वैल्यू......

वहीं पर्यावरण की माने तो जिस तरह पटाखों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसे स्वीकार भी किया जा सकता था, लेकिन जिस तरह के आज हालात हैं कि प्राणवायु, खुद प्राण लेने के लिए उतारू है। जिसका कारण यह है कि पीएम वैल्यू वातावरण में बढ़ती जा रही है। यही नहीं दिपावली त्यौहार में पटाखे जलने के बाद पीएम वैल्यूज करीब 10 से 15 गुना बढ़ जाते हैं और वातावरण में करीब 8 से 10 दिन तक रहते हैं। जो हमारे लिए बहुत घातक हैं।

पटाखे जलाकर, पर्व के विरोध में जा रहे है लोग....

साथ ही बताया कि जो प्रभाव बना रहे हैं उस पर्व का महत्व किस से बेहतर है उसे समझना बेहद जरूरी है और दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसमें हम उत्साह में रहते हैं। जिसमें उछंकलता की कोई जगह नहीं है। और पटाखे उसी का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। और लोग सोचते हैं कि पटाखे जलाकर आतिशबाजी कर पर्व को बेहतर बना रहे हैं बल्कि हम अपने ही पर्व के विरोध में जा रहे हैं। ऐसे में दिपावली पर्व को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। जिसमें लोगों से मिलना दीप जलाना और तमाम अन्य रास्ते भी हैं जिससे अपने पर्व को और बेहतर बनाया जा सकता है।

बाइट - डॉ अनिल जोशी, पर्यावरण विद्द


.......क्या है पीएम-2.5 और पीएम-10 .......

पीएम, दरअसल एक तरह से पार्टिकल पॉल्यूशन है। जो ठोस और तरल रूप में हवा में मौजूद होता है। ये कण महीन धूल, पत्थर या सल्फर आदि किसी के हो सकते हैं। और पीएम-10 और 2.5 का आशय हवा में मौजूद कणों के साइज से है। हवा में पीएम-2.5 की मात्रा 60 और पीएम-10 की मात्रा 100 होने पर हवा को सांस लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है। इससे अधिक मात्रा होने पर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। जिससे स्वास संबधी तमाम बिमारिया होने लगती है। 




Conclusion:देहरादून में पिछले साल दीपावली के बाद पीएम की मात्रा.....                              


• देहरादून के पटेल नगर में दीपावली के बाद वातावरण में पीएम 2.5 की मात्रा 859 और पीएम 10 की मात्रा 1330 पहुच गया था।

• देहरादून के झंडा चौक में दीपावली के बाद वातावरण में पीएम 2.5 की मात्रा 759 और पीएम 10 की मात्रा 1131 पहुच गया था।

• देहरादून के सहारनपुर चौक में दीपावली के बाद वातावरण में पीएम 2.5 की मात्रा 756 और पीएम 10 की मात्रा 1089 पहुच गया था।

• देहरादून के घंटाघर में दीपावली के बाद वातावरण में पीएम 2.5 की मात्रा 342 और पीएम 10 की मात्रा 431 पहुच गया था।


 

Last Updated :Oct 23, 2019, 6:25 PM IST
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