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विधानसभा भर्ती मामले पर BJP प्रवक्ता हुए शब्दहीन, RSS नेता ने विधानसभा के पाले में डाली गेंद

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Published : Aug 31, 2022, 2:07 PM IST

Updated : Sep 5, 2022, 12:46 PM IST

uttarakhand assembly
उत्तराखंड विधानसभा

उत्तराखंड विधानसभा भर्ती मामले पर भाजपा और आरएसएस नेताओं ने मौन धारण कर लिया है. दूसरी तरफ कांग्रेस अटैकिंग मोड पर है. कांग्रेस ने खुली चुनौती देते हुए 2000 से 2022 तक की सभी भर्तियों की जांच की मांग की है. इसके अलावा कांग्रेस खोद खोद के भाजपा नेताओं के अपने करीबियों को नौकरी दिलाने के लिए लिखे गए खत निकाल सामने ला रही है.

देहरादूनः उत्तराखंड विधानसभा में मनमाफिक भर्ती मामले को लेकर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. आलम यह है कि जिस तरह भाजपा-आरएसएस के नेताओं के रिश्तेदारों और करीबियों के नाम इस भर्ती में आ रहे हैं, उसके बाद कांग्रेस लगातार हमलावर है. हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि भर्तियां कांग्रेस के समय में भी इसी तरह हुईं. लेकिन जिस तरह से बीजेपी सरकार में भर्तियों को लेकर अनियमितताएं बरती गईं, उसके बाद सरकार सवालों के कटघरे में खड़े हो गई है. हालांकि, खास बात ये है कि सीएम धामी विधानसभा भर्ती मामले की जांच करवाने की बात कह चुके हैं.

यूपी विधानसभा से ज्यादा कर्मचारी उत्तराखंड विधानसभा में: यूपी से अलग हुआ उत्तराखंड छोटा पहाड़ी राज्य है. यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है. अगर मौजूदा यूपी विधानसभा की बात की जाए तो सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद वहां उत्तराखंड विधानसभा से कम कर्मचारी मौजूद हैं. आंकड़े बताते हैं कि राज्य गठन 2000 से 2022 तक 600 से अधिक कर्मचारियों को विधानसभा में नौकरी दी गई. खास बात ये है कि उत्तराखंड में विधानसभा सत्र कितने दिन चलता है और साल में कितनी बार सत्र बुलाया जाता है, ये भी किसी से छिपा नहीं है. विधानसभा के अंदर हालातों की बात की जाए तो विधानसभा में दिए गए मंत्रियों के कमरे भी अमूमन खाली रहते हैं.

600 से ज्यादा कर्मचारियों का बोझ ढो रही उत्तराखंड विधानसभा: मंत्री या तो अपने सरकारी आवास से दफ्तर चलाते हैं या फिर विभागों में बैठकर कामकाज निपटाते हैं. ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि 600 से ज्यादा कर्मचारी विधानसभा में सरकारी सेवा ले रहे हैं, वह क्या करते हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा में भर्ती की बात करें तो सत्र आहूत होने के दौरान विधानसभा प्रशासन को अगर लगता है कि कर्मचारियों की जरूरत है तो वह विधानसभा के अंतराल में ही कुछ कर्मचारियों को सत्र के लिए हायर करते हैं. इसके बाद भविष्य में जब भी यूपी में किसी तरह की कोई भर्तियां की जाती हैं तो उन कर्मचारियों को पहली वरीयता दी जाती है. लेकिन उत्तराखंड विधानसभा में ऐसा नहीं है. यहां तो सिर्फ 'ना खाता ना बही, जो नेताजी ने कही, तो नौकरी मिली' की परिपाटी में काम होता है. मौजूदा सरकार में क्या मंत्री, क्या विधायक और क्या मुख्यमंत्री, हर किसी के खासम खास ड्यूटी कर रहे हैं.
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खास नेताओं वाली विधानसभाः मौजूदा समय में उत्तराखंड विधानसभा में देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा की पत्नी, सहदेव पुंडीर के रिश्तेदार, केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट, प्रेमचंद अग्रवाल, मदन कौशिक, स्व. प्रकाश पंत, स्व. नित्यानंद स्वामी, सतपाल महाराज, सहित आरएसएस के कई बड़े नेता और उनके रिश्तेदार भर्ती कर दिए गए हैं.

विधानसभा भर्ती मामले पर BJP प्रवक्ता हुए शब्दहीन.

अब सवाल यह खड़ा होता है कि यह उत्तराखंड के बेरोजगार युवाओं के साथ धोखा नहीं तो और क्या है. बिना प्रेस विज्ञप्ति के तमाम भर्तियों को अंजाम दिया गया. प्रेमचंद अग्रवाल के रहते जो भर्तियां हुईं, उनमें भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सवाल यह भी है कि क्या दूसरे विभागों में जिस तरह से भर्ती घोटालों की जांच सरकार द्वारा एसटीएफ से करवाई जा रही है, क्या विधानसभा में इन भर्तियों की जांच भी मुख्यमंत्री इतनी तत्परता से करा पाएंगे.

कांग्रेस बोली अभी तो लिस्ट की शुरुआतः कांग्रेस इस पूरे मुद्दे को लेकर बेहद मुखर है. कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना है कि कांग्रेस के पास ऐसी और लिस्ट मौजूद हैं, जिसमें 2000 से लेकर 2022 तक भाजपा और आरएसएस के 80 से ज्यादा नेताओं के करीबियों को भर्ती करवाया गया है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिस तरह से जांच की बात की है, वह काबिले तारीफ तो है लेकिन हकीकत यही है कि अगर सरकार ने इस पूरे मामले की जांच करवाई, तो भाजपा उत्तराखंड में आधी से ज्यादा खाली हो जाएगी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस पूरे मामले को बड़े स्तर पर उठाना चाहती है. हालांकि, खास बात ये है कि कांग्रेस गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा भर्ती किए गए कर्मचारियों को लेकर आज भी खामोश है.
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भाजपा नेताओं के पास नहीं जवाबः लगातार हमलावर कांग्रेस और सोशल मीडिया पर जिस तरह से भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल बन रहा है, उसको देखते हुए भाजपा भी अब असमंजस की स्थिति में आ गई है. भाजपा नेता मीडिया से बात करते हुए सिर्फ और सिर्फ रटा रटाया बयान दे रहे हैं. भाजपा महामंत्री आदित्य कोठारी का कहना है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे मामले की जांच की बता कहकर सरकार और अपना पक्ष रख दिया है.

संघ प्रचारक युद्धवीर ने भी साधी चुप्पी: इस मामले पर ईटीवी भारत ने आरएसएस के प्रांत प्रचारक युद्धवीर सिंह जिनके करीबियों के नाम भी सामने आए हैं, से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि फिलहाल वह कुछ नहीं कहना चाहते हैं, जो भी कहेगी विधानसभा कहेगी. ETV भारत ने उनसे कई बार जानने की कोशिश की कि कांग्रेस लगातार आरोप लगा रही है. इस पर उन्होंने कहा कि इन आरोपों का जवाब वह फिलहाल नहीं देंगे और ना ही कुछ कहना चाहते हैं. जो भी कहना है विधानसभा आपको समय पर बताएगी. इसके बाद उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

42 शहादतों का अपमान हैं ये रेवड़ी वाली नौकरियां: बहरहाल अपनों के नौकरी बांटने के इस खेल में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही आगे चल रही हैं. 2000 से 2022 तक अपने खास लोगों को रेवड़ी बांटने का ये गोरखधंधा बे रोकटोक चलता रहा. हालांकि, इस खुलासे के बाद सीएम धामी मामले की जांच कराने की बात कह रहे हैं. अब सवाल ये खड़ा होता है कि जिस प्रदेश के पाने के लिए 42 शहादत दी गईं. जिस प्रदेश में बेरोजगारों की फौज खड़ी हो, नौकरी पाने के लिए सड़कों पर आंदोलन हो रहे हों, ऐसे प्रदेश में नेताओं द्वारा अपने खास और रिश्तेदारों को इस तरह नौकरी रेवड़ी के रूप में बांटना क्या सही है ?

Last Updated :Sep 5, 2022, 12:46 PM IST
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