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AAP की मांग, इगास बग्वाल पर्व पर घोषित हो सार्वजनिक अवकाश

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Published : Nov 10, 2021, 9:06 PM IST

Updated : Nov 10, 2021, 9:32 PM IST

उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद इगास-बग्वाल मनाया जाता है. यह प्रदेश का पारंपरिक पर्व है. ऐसे में आम आदमी पार्टी ने सरकार से इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की है.

igas bagwal
igas bagwal

देहरादूनः आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने प्रदेश सरकार से इगास पर्व (Igas Bagwal) पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की है. आप का कहना है कि विरान और खाली हो चुके घरों में इस पर्व के दिन उत्तराखंडवासी एक दिया जलाएंगे. ऐसे में उत्तराखंड के इस पावन पर्व पर भी सार्वजनिक अवकाश घोषित होना चाहिए.

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नवीन पिरशाली का कहना है कि आप सरकार से मांग करती है कि उत्तराखंड के पावन पर्व इगास पर भी सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाए. उन्होंने छठ पर्व पर सरकार की ओर से सार्वजनिक अवकाश घोषित किए जाने का स्वागत किया है. उनका कहना है कि इस त्योहार को उत्तराखंड में सदियों से मनाया जाता है. यह त्योहार दिवाली के 11 दिन बाद इगास के रूप में मनाते हैं.

इगास बग्वाल पर सार्वजनिक अवकाश की मांग.

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उन्होंने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस पारंपरिक पर्व के दिन राज्य सरकार को राजकीय अवकाश घोषित करना चाहिए. यह पर्व हमारे प्रदेश की संस्कृति से जुड़ा पर्व है, जो गढ़वाल और कुमाऊं दोनों ही जगह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसलिए सरकार को इस पर्व को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए.

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माना जाता है कि भगवान राम ने जब लंकापति रावण पर विजय प्राप्त कर आयोध्या वापसी की थी तो पूरे देश में सबसे दिवाली का पर्व मनाया जाने लगा, लेकिन विषम परिस्थितियों के कारण यह समाचार पहाड़ों में 11 दिन बाद पहुंचा. जिस कारण पहाड़ों में दीपावली के 11 दिन बाद इगास को दिवाली के रूप में मनाया जाता है.

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वहीं, आम आदमी पार्टी का कहना है कि राज्य सरकार ने छठ पूजा के लिए अवकाश घोषित किया. जिसका आप सम्मान करती है, लेकिन इस त्योहार पर अभी तक सरकार ने अवकाश घोषित करने का कोई निर्णय नहीं लिया है. ऐसे में प्रदेशवासियों और अन्य प्रवासियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार को इस दिन अवकाश दिया जाना चाहिए.

भैलो खेलने की परंपराः इगास या बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है. खासकर बड़ी बग्वाल के दिन यह मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है. भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है. भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है. रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है. जिसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं.

इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं. इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है. भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है.

Last Updated :Nov 10, 2021, 9:32 PM IST
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