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भक्तों से विदा लेकर कैलाश के लिए रवाना हुई मां नंदा, नंदा सप्तमी के दिन वेदनी और बालपाटा में पहुंची डोली

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Published : Sep 6, 2019, 9:02 AM IST

Updated : Sep 6, 2019, 12:06 PM IST

मां नंदा देवी लोकजात यात्रा गुरुवार को चमोली के वैदनी कुंड और बालपाटा में संपन्न हो गई. हिमालयी महाकुंभ के नाम से विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात यात्रा 12 वर्षों में आयोजित होती है और हर साल अगस्त महीने में कुरुड़ गांव से ही मां नंदा देवी लोकजात यात्रा आयोजित की जाती है.

मां नंदा देवी लोकजात यात्रा.

चमोली: हिमालयी महाकुंभ नाम से विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी लोकजात यात्रा वेदनी कुंड और बालपाटा में नंदा सप्तमी के दिन संपन्न हो गई. मां नंदा देवी की डोली जिले के 9 विकासखंडों में से 7 विकासखंडों के 800 से ज्यादा गांव भृमण किया. मां नंदा देवी राज राजेश्वरी की डोली गुरुवार सुबह अपने अंतिम पड़ाव गैरोली पातल से वेदनी बुग्याल में स्थित वैदनी कुंड पहुंची. वहीं मां नंदा राज राजेश्वरी की छोटी बहन मां नंदा देवी की डोली अपने अंतिम पड़ाव रामणी गांव से बालपाटा पहुंची.

मां नंदा देवी लोकजात यात्रा

वेदनी और बालपाटा पहुंचकर सबसे पहले देवियों की डोलियों ने अग्निकुंड की परिक्रमा की और नंदा की डोली को अपने नियत स्थान पर रखा गया. जिसके बाद मां नंदा की पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं ने मां नंदा को ककड़ी, अखरोट,चूड़ा खाजा, चूड़ी बिंदी और श्रृंगार की विभिन्न सामग्री भी भेंट की. देव डोलियों की पूजा वैदनी कुंड और बालपाटा में सम्पन्न होने के बाद श्रदालुओं ने छलकती आंखों से मां नंदा को कैलाश विदा किया और दूसरे साल की यात्रा का वचन देकर देव डोलियो में नंदाराजेश्वरी की डोली को वैदनी से रात्रि प्रवास के लिए देवाल विकासखंड के बांक गांव में लाया गया है. जबकि बालपाटा में सम्पन्न हुई नंदा लोकजात के बाद मां नंदादेवी की डोली को सुंग गांव में रात्रि प्रवास के लिए रखा गया.

बता दें, 12 वर्षों में आयोजित होने वाली हिमालयी महाकुंभ के नाम से विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात में शामिल मुख्य डोली चमोली के घाट विकासखंड स्थित कुरुड़ मंदिर से ही निकलती है और अगस्त महीने में हर साल कुरुड़ गांव से ही नंदा लोकजात आयोजित की जाती है, जिसको स्थानीय लोगो द्वारा छोटी जात यात्रा भी कहा जाता है. इस दौरान कुरुड़ मंदिर से लोकजात यात्रा के लिए दो डोलियां निकलती है. जिसमें एक डोली की लोकजात वैदनी और दूसरी डोली की लोकजात यात्रा बालपाटा में सम्पन्न होती है.

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वेदनी से मां नंदा राजराजेश्वरी की डोली को 6 महीने के लिए थराली विकासखंड के देवराडा गांव में पूजा अर्चना के लिए रखा जाता है. मान्यताओं के अनुसार मां नंदादेवी का देवराड़ा गांव में ननिहाल है. 6 माह अपने ननिहाल में बिताने के बाद नंदाराजेश्वरी कि डोली को कुरुड़ मंदिर में लाया जाता है, जंहा पर कि 6 महीने तक नंदा देवी की पूजा की जाती है.

वहीं, घाट क्षेत्र के सुंग गांव में भी रात्रि प्रवास के बाद मां नंदा की डोली को दूसरे दिन कुरुड़ मंदिर में रखा जाता है और पूजा की जाती है. कुरुड़ गांव को मां नंदादेवी के मायके के नाम से भी जाना जाता है.

Intro:आखिरकार चमोली विकासखंड में घाट क्षेत्र के कुरुड़ गांव से कैलाश के लिए विदा हुई माँ नंदा की डोली चमोली जनपद स्थित 9 विकासखंडो में से 7 विकासखंडों के 800 से अधिक गांव से भृमण कर मां नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा आज गुरुवार को वैदनी कुंड और बालपाटा में नंदा सप्तमी के दिन संपन्न हो गई है। मां नंदा देवी राज राजेश्वरी की डोली बृहस्पतिवार सुबह अपने अंतिम पड़ाव गैरोली पातल से वैदनी बुग्याल में स्थित वैदनी कुंड पहुंची।वंही माँ नंदाराजराजेश्वरी की छोटी बहिन माँ नंदा देवी की डोली अपने अंतिम पड़ाव रामणी गांव से बालपाटा पहुंची ।

विस्वल बाईट मेल से भेजे है।


Body:वैदनी और बालपाटा पहुंचकर सर्वप्रथम देवियों की डोलियों ने अग्निकुंड की परिक्रमा की तथा नंदा की डोली को अपने नियत स्थान पर रखा गया। जिसके बाद मां नंदा की पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं ने मां नंदा को ककडी, अखरोट, चूड़ा खाजा, चूड़ी बिंदी ,श्रृंगार ,की विभिन्न सामग्री भी भेंट की।देवडोलियो की पूजा वैदनी कुंड और बालपाटा में सम्पन्न होने के बाद श्रदालुओ ने छलछलाती आंखों से माँ नंदा को कैलाश विदा किया,और दूसरे वर्ष की माँ नंदालोकजात यात्रा का वचन देकर देवडोलियो में नंदाराजेश्वरी की डोली को वैदनी से आज रात्रि प्रवास के लिए देवाल विकासखंड के बांक गांव में लाया गया है,जबकि बालपाटा में सम्पन्न हुई नंदालोकजात के बाद माँ नंदादेवी की डोली को आज सुंग गांव में रात्रि प्रवास के लिए रखा जाएगा।

बाईट-श्रदालू।


Conclusion:बता दे कि 12 वर्षो में आयोजित होने वाली हिमालयी महाकुम्भ के नाम से विश्वप्रसिद्ध नंदादेवी राजजात में शामिल मुख्य डोली चमोली जनपद के घाट विकासखंड स्थित कुरुड़ मंदिर से ही निकलती है।और अगस्त माह में प्रतिवर्ष कुरुड़ गांव से ही नंदालोकजात आयोजित की जाती है,जिसको कि स्थानीय लोगो के द्वारा छोटी जात यात्रा भी कहा जाता है,इस दौरान कुरुड़ मंदिर से लोकजात यात्रा के लिए दो डोलियां निकलती है।जिसमे कि एक डोली की लोकजात वैदनी और दूसरी डोली की लोकजात यात्रा बालपाटा में सम्पन्न होती है।वैदनी से माँ नंदा राजराजेश्वरी की डोली को 6 माह के लिए थराली विकासखंड के देवराडा गांव में पूजा अर्चना के लिए रखा जाता है।मान्यताओं के अनुसार माँ नंदादेवी का देवराडा गांव में नैनिहाल है।6 माह अपने नैनिहाल में बिताने के बाद नंदाराजेश्वरी कि डोली को कुरुड़ मंदिर में लाया जाता है ,जंहा पर कि 6 माह तक नंदा देवी की पूजा की जाती है।वंही घाट क्षेत्र के सुंग गांव में भी रात्रि प्रवास के बाद माँ नंदा की डोली को दूसरे दिन कुरुड़ मंदिर में रखा जाता है,और नित्य पूजा की जाती है।कुरुड़ गांव को माँ नंदादेवी के मायके के नाम से भी जाना जाता है।
Last Updated :Sep 6, 2019, 12:06 PM IST
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