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कारगिल शहीद रणजीत सिंह का गांव सड़क सुविधा से कोसों दूर, नेताओं के घोषणाएं और वादे अधूरे!

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Published : Apr 30, 2023, 1:05 PM IST

Updated : May 16, 2023, 1:05 PM IST

Kargil Martyr Ranjit Singh Village
कारगिल शहीद रणजीत सिंह का गांव

कारगिल शहीद रणजीत सिंह का गांव बासीसेम आज भी सड़क सविधा से कोसों दूर हैं. ग्रामीण बीती 22 सालों से सड़क की बाट जोह रहे हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है. इससे पहले शासन प्रशासन से लेकर नेता तमाम दावे कर चुके हैं, बावजूद इसके अभी तक एक अदद सड़क शहीद के गांव नहीं पहुंचा सके. इतना ही नहीं शहीद के परिजन और ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं, लेकिन नतीजा आश्वासन के अलावा सिफर ही रहा है.

कारगिल शहीद रणजीत सिंह का गांव सड़क सुविधा से कोसों दूर.

गैरसैंणः 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले', वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा' ये पंक्तियां अक्सर नेताओं के मुंह से मंचों पर सुनने को मिल जाते हैं. शहीदों के सम्मान में जहां एक ओर सरकारें और नेता बड़े-बड़े दावे और घोषणाएं करते हैं तो वहीं दूसरी ओर शहीद परिवारों के लिए की जानी वाली घोषणाएं कहीं फाइलों में दब कर रह जाती हैं. ऐसा ही स्थिति उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण ब्लॉक के बासीसेम गांव का है. जहां कारगिल शहीद रणजीत सिंह के गांव बीते 22 सालों से सड़क की बाट जोह रहा है. सड़क न होने की वजह से ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

दरअसल, ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर आगरचट्टी से कोयलख जाने वाली सड़क को शहीद के गांव बासीसेम तक पहुंचाया जाना था, लेकिन इन 22 सालों में महज सड़क 8 किलोमीटर बड़ियारी गांव तक ही पहुंच पाई है. जिसकी हालत भी जर्जर बनी हुई है और सड़क गड्ढों में तब्दील हो चुकी है. यहां से शहीद के गांव की दूरी महज 3 किलोमीटर रह गई है, लेकिन 22 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक विभाग न तो इस गांव में मोटर मार्ग पहुंचाने में कामयाब हो पाया है न ही आगरचट्टी से कोयलख ग्राम सभा तक खस्ताहाल सड़क को ही सुधार पाया है.

कारगिल युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद के नाम किया गया वादा दो दशक बाद भी अमल में नहीं लाया जा सका है. वादा खिलाफी से नाराज शहीद के परिजनों की ओर से भूख हड़ताल किए जाने पर एक और वादा किया गया, लेकिन गुजरते वक्त के साथ तीन महीने के भीतर सड़क निर्माण शुरू करने के दावे भी खोखले साबित हुए. इस बीच कई परिवार गांव से पलायन कर अन्यत्र जा बसे, जबकि गांव में कुछ ही लोग बच रह गए हैं. बुजुर्ग, महिलाओं और युवाओं ने समय से समझौता कर आवाज उठाना भी बंद कर दिया है.

गौर हो कि भारत पाकिस्तान के बीच साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बासीसेम के जवान लांस नायक रणजीत सिंह ने प्राणों को न्योछावर कर सर्वोच्च बलिदान दिया था. जिसके सम्मान में सरकार ने शहीद के गांव की सड़क को शहीद के नाम समर्पित कर मुख्य सड़क से जोड़ने की घोषणा की, लेकिन दो दशक बीत गए अभी तक सड़क पर काम शुरू नहीं हो सका. ग्रामीणों ने इस संबंध में हर सरकारी दफ्तरों पर गुहार लगाई, लेकिन आश्वासनों के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ. वहीं, शहीद रणजीत सिंह के परिजन अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
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नाराज ग्रामीणों ने साल 2018 में आंदोलन के माध्यम से सरकार के कानों तक आवाज पहुंचाने का प्रयास किया, जिस पर संबंधित विभाग और तत्कालीन गैरसैंण एसडीएम ने मोके पर पहुंच कर शहीद के परिजनों की भूख हड़ताल तोड़ा. हालांकि, इस बार दोबारा एक वादा किया गया, जिसे फिर से भुला दिया गया. अब शहीद के परिजनों के आंदोलन को पांच साल भी बीत गए. इस दौरान लोक निर्माण विभाग ने शहीद रणजीत सिंह मोटर मार्ग के शिलापट तो कई जगह लगा दिए, लेकिन सड़क एक इंच आगे नहीं बढ़ पाई. ऐसे में संबंधित विभाग भी असमंजस में है कि आखिर शहीद के गांव को किस सड़क से जोड़ा जाना है.

वहीं, बासीसेम, अक्षवाड़ा, डंडियाल गांव, लखेड़ी, मासो सेरा, भेड़ियाणा, तल्ली गौल समेत अन्य गांवों की सैकड़ों की आबादी आज भी सरकार और विभाग की अनदेखी के चलते मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं. एक ओर जहां सरकार देहरादून में शहीदों के आंगन की मिट्टी लेकर सैन्य धाम बनाने जा रही है तो वहीं दूसरी ओर आज भी शहीदों के परिवारों को मूलभूत समस्याओं से दो चार होना पड़ रहा है. इसे देखकर लगता है कि शहीदों के सम्मान की हकीकत केवल भाषणों तक ही सीमित रह गई है.

क्या कहते हैं कारगिल शहीद रणजीत सिंह के बड़े भाई बलवंत सिंहः कारगिल शहीद रणजीत सिंह के बड़े भाई बलवंत सिंह बिष्ट कहते हैं कि सरकारें शहीदों के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो करती हैं, लेकिन हकीकत इससे जुदा हैं. बलवंत सिंह बताते हैं कि उनके छोटे भाई रणजीत सिंह साल 1999 में मातृभूमि की रक्षा करते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे. जिसके बाद मौजूदा सरकार ने आगरचट्टी से कोयलख जाने वाली सड़क का नाम उनके छोटे भाई के नाम पर रखा था. बासीसेम (शहीद रणजीत सिंह के गांव) तक मोटर सड़क पहुंचाने की घोषणा की थी, लेकिन यह घोषणा सफेद हाथी साबित हो रही है.

वे बताते हैं कि गांव में मोटर सड़क न होने के कारण आज भी गांव वालों को परेशानियों से दो चार होना पड़ रहा है. सड़क के न होने से सबसे ज्यादा परेशानी गांव के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को उठानी पड़ रही है. बीमार और डिलीवरी के समय अस्पताल तक पंहुचाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताता कि सड़क के आभाव में कई बार गर्भवती महिलाएं रास्ते में ही दम तोड़ देती हैं. उनकी सरकार से मांग है कि जल्द से जल्द बासीसेम तक सड़क का निर्माण कार्य शुरू करें.

कारगिल शहीद रणजीत सिंह की भाभी सुला देवी कहती हैं उनके देवर को शहीद हुए 23 साल बीत चुके हैं. उस समय उनके नाम से गांव तक सड़क पहुंचाने की बात की गई थी, लेकिन सड़क आज तक उनके गांव बासीसेम नहीं पहुंच पाई है. वे कहती हैं कि बिना सड़क के काफी परेशानी होती है. जब उनका देवर शहीद हुआ था, उस समय हुक्मरानों ने शहीद के घर तक सड़क पहुंचाने की बात कही थी, लेकिन आज तक सड़क गांव तक नहीं पहुंच पाई है. कई बार सड़क की मांग को लेकर नेताओं और विभागीय अधिकारियों के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है.
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आश्वासन के बाद भी मार्ग निर्माण नहीं: बासीसेम गांव के निवासी और पूर्व ग्राम प्रधान प्रताप सिंह कहते हैं कि कई सालों से ग्रामवासी सरकार और लोक निर्माण विभाग से सड़क की मांग कर रहे हैं. जिसके लिए साल 2018 में ग्रामीणों ने भूख हड़ताल भी की थी. उस समय शासन और प्रसाशन के लोगों ने गांव पहुंचकर 3 महीने के भीतर सड़क निर्माण का कार्य शुरू करने का आश्वासन दिया था, लेकिन 5 साल बीत जाने के बावजूद भी अब तक सड़क का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

प्रताप सिंह हैं कि सड़क के न होने से गांव से लगातार पलायन हो रहा है. बासीसेम गांव के इस समय देश सेवा (फौज) में 26 लोग कार्यरत हैं, लेकिन वो लोग भी सड़क न होने के कारण गांव नहीं आना चाह रहे हैं. उन्होंने कहा कि वो सरकार, क्षेत्रीय विधायक और लोकनिर्माण विभाग से गुहार लगा रहे हैं कि गांव तक सड़क पहुंचाई जाए. अगर गांव तक सड़क पहुंचाने का कार्य जल्द शुरू नहीं होता है तो आगामी 26 जून से ग्रामीण आंदोलन और भूख हड़ताल शुरू करेंगे.

जिम्मेदार दे रहे ये दलील: लोक निर्माण विभाग गैरसैंण के सहायक अभियंता सुरेश पाल ने कहा कि मैखोली से नलगांव होते हुए शहीद रणजीत सिंह के गांव तक सड़क को पहुंचना था, लेकिन मानकों के अनुसार पेड़ों की क्षतिपूर्ति के लिए वृक्षारोपण के लिए भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है. जिस कारण सड़क शहीद के गांव तक नहीं पहुंच पाई है. भूमि उपलब्ध हो जाने पर सड़क का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा. वहीं, आगरचट्टी से कोयलख जाने वाली जर्जर हो चुकी शहीद रणजीत सिंह मोटर मार्ग (जो अब तक शहीद के गांव नहीं पहुंच पाई है) को लेकर कहा कि 221.80 लाख रुपए का एस्टीमेट बना कर भेजा गया है. स्वीकृति मिलने के बाद सड़क सुधारीकरण और डामरीकरण का काम शुरू किया जाएगा.

Last Updated :May 16, 2023, 1:05 PM IST
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