हल्द्वानी: उत्तराखंड की पारंपरिक लोककला और लोक संगीत की पहचान देश-दुनिया में है. उत्तराखंड के कई मशहूर लोक गायक और लोक गायिकाएं अपने सुरों के माध्यम से उत्तराखंड की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करा चुके हैं. लोकप्रिय गायक हीरा सिंह राणा हों या मशहूर लोक गायिका कबूतरी देवी हों, इन्हीं के नक्शे कदम पर उत्तराखंड की मशहूर लोक गायिका माया उपाध्याय चल रही हैं. माया उत्तराखंड के लोक संगीत को भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों तक पहचान दिला रही हैं.
दिल्ली में हुआ माया का जन्म: माया उपाध्याय का जन्म 28 मार्च 1983 को दिल्ली में हुआ. उनका पैतृक गांव ग्राम माला, सोमेश्वर सोनी रानीखेत में है. उनका बचपन से ही पहाड़ के प्रति प्रेम देखा गया. शुरुआत में जब माया उपाध्याय दिल्ली से उत्तराखंड पहुंची तो उनके मन में उत्तराखंड के लोक संगीत के प्रति रुचि दिखने लगी.
छह साल की उम्र में किया पहला स्टेज-शो: माया उपाध्याय ने अपना पहला स्टेज शो 6 वर्ष की उम्र में कुमाऊंनी भाषा में अपने पिता और मामा के सहयोग से अहमदाबाद गुजरात में किया था.
मालविका उपाध्याय है माया का असली नाम: दिल्ली में जन्मी और उत्तराखंड में पली-बढ़ी माया उपाध्याय का पूरा नाम मालविका उपाध्याय है. सात भाई-बहनों में सबसे छोटी मालविका उपाध्याय को घर में माया के नाम से पुकारा जाता है. आगे चलकर इनका नाम माया उपाध्याय से प्रसिद्ध हो गया. माया उपाध्याय ने गायिका बनने का सपना पहली क्लास में देख लिया था. उनके सपनों को पूरा करने में पिता केशव दत्त उपाध्याय ने कमी नहीं छोड़ी.
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दूसरे गायकों के गाने गाकर सीखी गायकी: शुरुआती दिनों में माया उत्तराखंड के लोक गायकों के गाने गाती थी. जब माया के पिता को अपनी बेटी का हुनर समझ में आया तो उन्होंने माया के लिए हिंदी फिल्मों के कैसेट लाना शुरू कर दिया. माया उपाध्याय ने इन कैसेटों के माध्यम से सुर से सुर मिलाना शुरू कर दिया. इसके बाद माया उपाध्याय ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपनी गायकी से खूब नाम कमाया.
DU से की है पढ़ाई: दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने श्रीराम भारतीय कला केंद्र दिल्ली से गायन के क्षेत्र में डिप्लोमा किया. संगीत विशारद प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से ताल्लुक रखते हुए लगातार संगीत के क्षेत्र में ऊंचाई हासिल की है.
एल्बम से की शुरुआत: माया ने अपने एल्बम से अपनी सुरीली आवाज और एक्टिंग की शुरुआत की. आगे सफलता मिलती रही. फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. उत्तराखंड में सफलता मिलने के बाद संगीत का सपना लिए दिल्ली के दौलत राम कॉलेज पहुंचीं. वहां वोकल संगीत में मास्टर डिग्री हासिल की.
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माया को मिल चुके हैं कई सम्मान: 2007 में संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित सारेगामापा में माया ने प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम किया. 2017 में मोहन उप्रेती लोक कला सम्मान, 2017 में उत्तराखंड उदय सम्मान, 2020 में उत्तराखंड राज्य तीलू- रौतेली पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी हैं.
पाकिस्तानी गानों को भी दी है आवाज: माया ने न केवल कुमाऊंनी गानों के लिए अपनी आवाज दी है, बल्कि भोजपुरी, राजस्थानी, पंजाबी और पाकिस्तानी गानों के लिए भी अपनी आवाज दी है. इसके अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूजीलैंड, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, मस्कट एवं गल्फ कंट्रीज में उत्तराखंड की लोक कला को पहुंचाने का काम किया है.
माया उपाध्याय के 2,000 से अधिक उत्तराखंडी गीत ऑडियो-वीडियो यूट्यूब पर धमाल मचा रहे हैं. माया उपाध्याय के पति रितेश जोशी हैं, जो उत्तराखंड के लोक-संगीत के इवेंट कराते हैं.
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पहाड़ की संस्कृति को संजोना है सपना: माया उपाध्याय का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य है कि किसी भी तरह अपनी युवा पीढ़ी को उनकी मदद के अनुसार अपनी बोली-भाषा के गीतों के माध्यम से जोड़े रखना. आधुनिक तकनीक के युग में उत्तराखंड के लोक संगीत को तकनीकी रूप से भी सर्वश्रेष्ठ बनाकर अंतरराष्ट्रीय पहचान देना. ताकि अन्य भाषा बोली की तरह लोग उत्तराखंड के गीत-संगीत की ओर आकर्षित हों और उसे सुनें. वर्तमान में इसी उद्देश्य के तहत लोक संस्कृति को समर्पित संस्था लोकवाणी एसोसिएशन उत्तराखंड के माध्यम से काम भी कर रही हैं.