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काली पलटन मन्दिर का कुंआ और पुजारी के हठ से 1857 में क्रांति की धधकी थी देश में ज्वाला

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Published : Aug 15, 2022, 2:10 PM IST

Updated : Aug 15, 2022, 2:19 PM IST

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काली पलटन मन्दिर का कुंआ

औघड़नाथ मन्दिर में स्थापित कुंए पर साधु बाबा ने सैनिकों को पानी पिलाने से मना कर दिया था. उन्होंने सैनिकों से कहा था कि, वे उन्हें इसलिए पानी नहीं पिलाएंगे क्योंकि वे चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलते हैं. इसके बाद धीरे -धीरे विद्रोह बढ़ना शुरू हुआ. देखिये यह रिपोर्ट

मेरठ: जिले में क्रान्तिधरा के औघड़नाथ मन्दिर में स्थित कुएं का देश की आजादी में अहम योगदान है. 1857 में जब क्रांति की शुरुआत हुई तो यहां स्थित कुंए की भी अहम भूमिका रही है. 1857 की क्रांति की पहली चिंगारी यही से फूटी थी. शहर में औघड़ नाथ मंदिर था, जिसे काली पलटन मंदिर भी कहा जाता है. इसी मंदिर के पुजारी ने भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के खिलाफ ऐसा जोश भरा कि अंग्रेजी हुकूमत को भारत छोड़ने के लिए विवश होना ही पड़ा.

देश की आजादी का मेरठ की धरती से गहरा नाता है. 1857 की क्रांति की पहली चिंगारी मेरठ से ही फूटी थी. शहर के सिद्ध पीठ औघड़नाथ मंदिर के पुजारी ने ही भारतीय सैनिकों को चर्बी लगे कारतूस का इस्तेमाल करने पर कुएं से पानी देने से मना कर दिया था. इसी पुजारी ने भारतीय सैनिकों के दिलों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का जोश भरा था.

स्थानीय निवासी और राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्राहलय के अधीक्षक ने दी जानकारी
शहर के औघड़ नाथ मंदिर को काली पलटन मंदिर भी कहा जाता है. यहां पर अंग्रेजी सेना की छावनी थी. देसी सैनिकों की टुकड़ी को काली पलटन कहा जाता था. बताया जाता है कि, मंदिर के पुजारी काली पलटन के जवानों को मंदिर में स्थित कुएं से पानी देते थे. एक दिन जब पुजारी को पता चला कि, काली पलटन के जवानों को अंग्रेज अधिकारी जो नए कारतूस दे रहे हैं, वह चर्बी से बने हैं. उन्होंने काली पलटन के जवानों को मंदिर के कुएं से पानी देने से इनकार कर दिया.

चर्बी लगे कारतूस को इस्तेमाल करने के लिए मुंह से खोला जाता था. इसी वजह से मंदिर के पुजारी ने सेना के जवानों को कुएं से पानी पिलाने से मना कर दिया था. इसी पुजारी ने सैनिकों के दिलों में विद्रोह की चिंगारी को जन्म दिया और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कहा. यही कारण रहा कि, मई 1857 में काली पलटन के जवानों ने विद्रोह का बिगुल बजाकर क्रांति की चिंगारी को हवा दी. काली पलटन के जवानों को विद्रोह करने पर अंग्रेज हुकूमत ने कोर्ट मार्शल किया था. पलटन में शामिल सभी 85 जवानों को कैद करने की सजा सुनाई गई थी.


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मंदिर प्रांगण में जिस स्थान पर कुआं था, आज वहां शहीदों की याद में एक स्मारक बना दिया गया है. इस शहीद स्मारक पर हर साल 10 मई को शहीदों की याद में श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. मंदिर समिति के अनुसार औघड़नाथ शिव मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है. अंग्रेजों के समय भारतीय जवानों की सेना को काली पलटन कहते थे. यह मंदिर काली पलटन क्षेत्र में होने की वजह से काली पलटन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मंदिर के पुजारी पंडित सुधांशु त्रिपाठी ने ईटीवी भारत को बताया कि, उनके परदादा शिवचरण दास मंदिर की सेवा करते थे. वह मंदिर में हिंदुस्तानी सैनिकों को कुएं से पानी पिलाते थे.


राजकीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के अध्यक्ष पी मौर्य बताते हैं कि, औघड़नाथ मन्दिर में स्थापित कुंए पर साधु बाबा ने सैनिकों को पानी पिलाने से मना कर दिया था. उन्होंने सैनिकों से कहा था कि, वे उन्हें इसलिए पानी नहीं पिलाएंगे क्योंकि वे चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलते हैं. इसके बाद धीरे -धीरे विद्रोह बढ़ना शुरू हुआ. कुंए से अंग्रेजों के खिलाफ जो चिंगारी फूंकी वक्त के साथ धीरे -धीरे शोला बन गई. पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत यही हुई थी. अब कुएं के पास शहीद स्मारक बना दिया गया है. यहीं से शुरू हुई विद्रोह की चिंगारी आसपास के क्षेत्र में फैली. इसके बाद पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हो गई. उन्होंने बताया कि इतिहास में 1857 की क्रांति में मंदिर के पुजारी का उल्लेख है.

इस स्थान पर देश के पीएम से लेकर प्रदेश के सीएम तक आकर शीश झुका चुके हैं. वहीं, इस धर्मस्थल पर जो भी आता है वह भी इस ऐतिहासिक कुंए पर आकर शहीदों और क्रांतिकारियों को याद जरूर करता है.

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Last Updated :Aug 15, 2022, 2:19 PM IST
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