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World Environment Day 2023 : 'प्लास्टिक का कम से कम करें इस्तेमाल', जानिए क्या है इस बार की थीम

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Published : Jun 5, 2023, 8:19 PM IST

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विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है. इस बार इसकी थीम 'बीट द प्लास्टिक पॉल्यूशन' रखी गई है.

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लखनऊ : 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. 1972 में शुरू हुई यह मुहिम धीरे-धीरे दुनिया के सबसे बड़े पर्यावरण उत्सव में बदल चुकी है. बेहतर पर्यावरण हम सबकी जरूरत है. फिर भी लोग इसे लेकर गंभीर नहीं हैं. पर्यावरण संरक्षण के लिए दावे तो बहुत होते हैं, लेकिन हकीकत में इसके लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं. लोगों में भी जागरूकता का अभाव है. नतीजतन आज हमारे पास शुद्ध हवा और पेयजल की समस्या है. विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम इस बार 'बीट द प्लास्टिक पॉल्यूशन' रखी गई है.

एनबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरडी त्रिपाठी ने कहा कि 'लगातार पर्यावरण का दोहन हो रहा है. न सिर्फ वायु प्रदूषण बल्कि सभी प्रकार के प्रदूषण अपने चरम पर हैं. जंगलों का क्षरण हो रहा है और जल स्रोतों का विनाश. धरती का ताप निरंतर बढ़ता जा रहा है. जैव विविधता भी नष्ट होती जा रही है. शहरीकरण की होड़ में लोग गांवों से तेजी से पलायन कर रहे हैं. यदि गांवों का समुचित विकास किया जाता तो भीड़ रुक जाती. फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं अनेक रोगों का कारण बनता है.'

विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस

शरीर में जाते हैं प्लास्टिक के कण : ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि 'आमतौर पर हम देखते हैं कि लोग अपने रोजमर्रा के काम में भी प्लास्टिक का अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं. सड़कों पर भी आपको प्लास्टिक देखने को मिल जाएगी. यहां तक कि नदियों में भी सबसे अधिक प्रदूषण होता है, जिसमें प्लास्टिक की मात्रा अधिक होती है. प्लास्टिक नष्ट नहीं हो सकती है. कुछ समय के लिए जरूर लोग जागरूक होते हैं, लेकिन फिर से वह प्लास्टिक का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं. अगर सरकार चाहे तो थोड़ी सी सख्ती के साथ प्लास्टिक पर पूरी तरह से रोक लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि हर किसी के शरीर में प्लास्टिक किसी न किसी तरीके से जा रही है जो हम कप में पानी पीते हैं, चाय पीते हैं या फिर प्लास्टिक में पैक फूड्स खाते हैं, इन सब के कारण शरीर में प्लास्टिक के कण जाते हैं.'


उन्होंने आंकड़ों पर बात करते हुए कहा कि 'हर साल 400 मिलिटन टन प्लास्टिक का उत्पादन विश्व भर में होता है. इनमें से आधे का इस्तेमाल सिर्फ एक ही बार हो पाता है, जबकि सिर्फ 10 फीसदी की ही रिसाइकिलिंग हो पाती है. दूसरी तरफ लगभग 19-23 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे को हर साल तालाबों, नदियों और समुद्र में डाल दिया जाता है, जोकि 2,200 एफिल टॉवर के वजन के बराबर है. साथ ही, प्लास्टिक सूक्ष्म कण (5 मिमी व्यास तक) किसी न किसी रूप में हमारे भोजन, पानी और हवा में घुले होते हैं. उन्होंने कहा कि विश्व में सभी लोग किसी न किसी खाद्य पदार्थ के द्वारा प्लास्टिक का सेवन करते हैं.'

विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को

प्रदूषण से लंग्स प्रभावित : बलरामपुर अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन आनंद कुमार गुप्ता बताते हैं कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन का जो डाटा है और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है, उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव 2.5 माइक्रोन पार्टिकल, दूसरा 10 माइक्रोन पार्टिकल के दुष्परिणामों से होती है और आप देखेंगे कि पूरे शरीर में कोई ऐसा अंग अछूता नहीं है, जिसमें कोई भी नुकसान वायु प्रदूषण से न होता हो. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होते हैं. लंग्स में देखें तो अस्थमा, टीबी, ब्रोंकाइटिस, फेफड़े का कैंसर होता है. इसके साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारी हैं. अगर हम हार्ट की बात करें तो हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर है. अगर हम ब्रेन की बात करें तो ब्रेन स्ट्रोक यानी फालिज मार जाना है, माइग्रेन, नींद न आना है और अगर हम दूसरे अंगों की बात करें तो एसिडिटी से लेकर और छोटी-छोटी समस्या जैसे बालों का जल्दी सफेद हो जाना यह सब वायु प्रदूषण से लिंक है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में इस मौसम में मरीजों को समस्या हो जाती है, जब ऋतु परिवर्तन होता है उस समय पर मरीजों की संख्या अधिक होती है. आमतौर पर जो मरीज पहले से ही सांस संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं, उन्हें दिक्कत बढ़ जाती है.'

केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि 'सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स आपके शरीर के अंदर जाएंगे तो आपके फेफड़ों के अंदर की जो क्षमता है वह प्रभावित होगी और कैंसर जैसी बीमारी होगी. जब आपकी शारीरिक क्षमता गिरेगी तो आप जिस क्षेत्र में कार्य कर रहे होंगे इसका असर उस पर भी पड़ेगा. ऐसा अक्सर देखा गया है. अगर इसको भारतीय राज्यों के परिपेक्ष में देखा जाय तो 2019 का जो आंकड़ा दिखता है कि 1.67 मिलियन जो मृत्यु हुई है, वह पूरे भारतवर्ष में वायु प्रदूषण से हुई है. इसके पीछे जो कारण था वो सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर का ऑडिशन था, जिसे आप एसपीएम कहते हैं. अगर आप कंडे जला रहे हैं, उपले जला रहे हैं, लकड़ी जला रहे हैं और जो परिवहन व्यवस्था है हमारी उससे भी उत्सर्जित होता है. इसका यह असर हुआ कि अगर 2019 भारतीय अर्थव्यवस्था को 36.8 बिलियन डॉलर हानि हुई. यह भारतीय जीडीपी का 1.36% है, जो की बड़ी हानि है. यूनाइटेड नेशन के द्वारा एसडीजी गोल लांच किए गए हैं. इसके जरिए हम वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं.'

शहर में दौड़ रहे लाखों वाहन : वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली आवाजें ध्वनि प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 21,23, 813 पुराने वाहन और करीब 2,03,584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14,223, नॉन ट्रांसपोर्ट गाड़ियां 3,32,067 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3,46,290 है.


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